बागेश्वर में मौत को दावत देता 6 इंच चौड़ा जानलेवा पुल, मगर प्रशासन है बेखबर

Update: 2018-02-27 10:18 GMT

शासन किसी अनहोनी का इंतजार कर रहा है, उसके बाद इस अस्थायी पुल को हटाया जाएगा, क्योंकि अभी तक लोग खासकर स्कूली बच्चे इससे लगातार आवाजाही कर रहे हैं...

बागेश्वर, उत्तराखण्ड। शासन—प्रशासन के लिए आम आदमी की जिंदगी कितनी सस्ती है, इसका अंदाजा लगाना हो तो यह चित्र देखिए। उत्तराखण्ड के बागेश्वर बाजार के पास बने बागनाथ मंदिर में हर साल उत्तरायणी मेला लगता है, जिसके लिए बागेश्वर की सरयू नदी पर आवाजाही के लिए अस्थायी पुल बनाया जाता है और बाद में उसे हटा दिया जाता है।

मगर इस बार उत्तरायणी मेला खत्म हुए एक महीने से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है, अस्थायी पुल बनाने के रखे गए लोहे के गार्डर जस के तस पड़े हुए हैं, जबकि उनके बीच में चलने के लिए लगाई गई लकड़ियां हटा दी गई हैं। लोहे के दोनों गार्डरों के बीच में इतना ज्यादा गैप है कि कोई भी उसमें आसानी से संतुलन खोकर नीचे नदी में गिर सकता है।

इस फोटो को फेसबुक पर शेयर करने वाले उत्तर उजाला के संपादक चंद्रशेखर जोशी लिखते हैं, 'पहाड़ में इन पटरियों पर भी चलती है जिंदगी। उत्तराखंड के बागेश्वर बाजार के पास सरयू नदी पर छह इंच चौड़े लोहे के गार्डरों के ऊपर से सैकड़ों स्कूली बच्चे भी रोज नदी को आरपार करते हैं।'

शायद पहाड़ में ऐसे ही चलती है जिंदगी। उत्तराखंड के बागेश्वर बाजार के पास सरयू नदी पर छह इंच चौड़े लोहे के गार्डरों के ऊपर से स्कूल जाने वाले अनगिनत छोटे—छोटे स्कूली बच्चे भी रोज नदी को आर—पार करते हैं। एक लोहे के गार्डर पर नियंत्रण बनाकर वो किसी तरह पुल पार करते हैं।

गौरतलब है कि बागेश्वर के बागनाथ मंदिर में 12 जनवरी से 20 जनवरी तक उत्तरायणी मेला लगा था। उस दौरान सरयू नदी में अस्थाई पुल बनाया गया, लेकिन बाद में लोहे के गार्डरों के बीच लगी लकड़ियां हटा ली गईं। मगर ये जानलेवा पुल अभी भी जस का तस बना हुआ है।

फोटो को देखकर साफ—साफ महसूस किया जा सकता है कि यह किस हद तक जानलेवा है। उत्तरायणी मेला बीते एक माह से भी ज्यादा होने के बाद भी अभी तक इन्हें नहीं हटाया जाना प्रशासनिक लापरवाही की तरफ इशारा करता है। लगता है प्रशासन किसी अनहोनी का इंतजार कर रहा है, उसके बाद इस अस्थायी पुल को हटाया जाएगा, क्योंकि अभी तक लोग खासकर स्कूली बच्चे इससे लगातार आवाजाही कर रहे हैं।

सरयू में उत्तरायणी के दौरान कई पुल बनाए गए थे। लकड़ी के बने सभी पुलों को बाद में हटाया जाना था, लेकिन एक पुल को ऐसे ही छोड़ दिया गया है, जिससे लोग आर पार जा रहे हैं। पुल से लकड़ियां तो हटा ली गई हैं लेकिन आधार स्तंभ को नहीं हटाया गया है। जिस पर छोटे बच्चे नदी पार कर रहे हैं।

बड़ों समेत छोटे बच्चे दिनभर इस रास्ते से नदी पार करने जोखिम उठा रहे हैं, मगर प्रशासन का ध्यान इस तरफ बिल्कुल भी नहीं है। वहां से नदी में गिरने का खतरा लगातार बना हुआ है। पुल के नाम पर यहां सिर्फ लोहे के दो खंभे हैं, जिस पर चढ़कर छोटे—छोटे स्कूली बच्चे अकेले रास्ता पार कर रहे हैं।

यदि इस पुल की तरफ अभी भी ध्यान नहीं दिया गया तो कोई भी दुर्घटना कभी भी घट सकती है। शायद प्रशासन की आंखें तभी खुलेंगी जब कोई इसका शिकार हो जाएगा।

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