भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर का हिंदुस्तान अखबार ने उड़ाया मजाक

Update: 2018-09-18 08:42 GMT

हिंदी अखबारों में दलित विरोधी मानसिकता इतनी गहरी पैठी है कि वे किसी उभरते दलित आदर्श का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते और साहस देखिए कि बाकायदा उस खबर को प्रमुखता से स्थान देते हैं

अखबार ने यह बदमाशी तब की है जबकि भीम आर्मी चीफ कह चुके हैं कि मैं रावण नहीं, चंद्रशेखर आजाद हूं, अगर किसी मीडिया ग्रुप ने नाम बिगाड़कर विलेन बनाया तो कोर्ट ले जाऊंगा....

वरिष्ठ पत्रकार एस. राजू का विश्लेषण

17 सितंबर को हिंदी अखबारों में सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले अखबार हिंदुस्तान के पेज 13 पर एक अखबार छपी। शीर्षक था, 'मायावती बोलीं तो रावण की तबियत खराब'। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर की तबियत का तो पता नहीं, लेकिन अखबार की इस खबर को पढ़कर पाठकों की तबियत जरूर खराब हो जाएगी।

खबर का इंट्रो है बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ में रविवार की दोपहर 12 बजे प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि मैं किसी की बुआ नहीं हूं, इस बयान के बाद भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर की अचानक तबीयत बिगड़ गई। वह फिलहाल घर में आराम कर रहे हैं।

आगे की खबर है, 'रविवार को छुटमल पुरी स्थित घर पर चंदशेखर दूर-दराज से आए भीम आर्मी कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर रहे थे। जेल से छूटने के बाद भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर से तीसरे दिन भी मिलने जुलने वालों का तांता लगा रहा। हालांकि कोई नामचीन व्यक्ति नहीं पहुंचा, लेकिन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष मोहम्मद कामिल और बसपा के पूर्व नेता एहसान कुरैशी छुटमलपुर जाकर उनके हालचाल लिए।'

इस बीच दोपहर में चक्कर आने से वह बेहोश हो गए। यह देखते ही समर्थकों में खलबली मच गई। आनन-फानन में उन्हें कंधों पर उठाकर कमरे में ले जाया गया। लोगों के मिलने जुलने पर रोक लगा दी गई। भीम आर्मी चीफ के भाई कमल किशोर ने इसकी पुष्टि की। उधर, प्रशासन खुफिया टीमों के जरिए चंद्रशेखर की प्रत्येक गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं।

हिंदुस्तान अखबार की कटिंग

गौरतलब है कि भीम आर्मी संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद पहले ही कह चुके हैं कि मैं चंद्रशेखर आज़ाद हूं, रावण नहीं। अगर किसी मीडिया ग्रुप ने रावण लिखा और कहा तो उसे कोर्ट ले जाऊंगा। चंद्रशेखर ने कहा कि रावण ब्राह्मण थे और चंद्र शेखर आजाद भी ब्राह्मण थे। कुछ लोगों ने रावण लिखकर मेरी नेगेटिव छवि बनाई और बदनाम किया। चंद्रशेखर के इस कड़े बयान के बावजूद हिंदुस्तान का यह दलित विरोधी रवैया उसके मसखरेपन को ही उजागर करता है।

क्या हिंदुस्तान की पूरी खबर पढ़ने के बाद​ किसी को लग सकता है कि सच में चंद्रशेखर की तबियत खराब होने का कारण मायावती का बयान ही था। बेहद हास्यापद तरीके से लिखी गई यह खबर सहारनपुर के मुख्य संवाददाता ने फाइल की है। कसूर अकेले उनका नहीं हो सकता, क्योंकि रिपोर्ट फाइल होने के बाद संपादकों की 'पैनी' नजरों से गुजरी होगी, तब जाकर अखबार में खबर प्रकाशित हुई होगी। यह बात अलग है कि छपने के बाद भी इस खबर को किसी संपादक ने देखा होगा।

इस खबर से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अखबारों खासकर हिंदी अखबारों में खबरों से कैसे खिलवाड़ किया जा रहा है। अखबार के कर्मचारी जिसमें संपादक भी शामिल हैं, इसे संवाददाता की लापरवाही या किसी उप संपादक की संपादकीय लापरवाही बता सकते हैं, लेकिन क्या इसे केवल लापरवाही मान लेना चाहिए। ऐसे समय में, जब रावण देश में दलित आंदोलन का नया चेहरा बनकर उभर रहे हैं, क्या उनके साथ मसखरी जानबूझकर की गई।

दरअसल हिंदी पत्रकारों की दलित विरोधी सोच उनके पत्रकारीय कर्म पर हावी हो जाती है और वह इस तरह की खबर लिखकर अपनी खीझ मिटाने का काम करते रहते हैं। हाँ, कभी-कभी इसे गलती मानकर सुधार दिया जाता है, जो कि उपरोक्त खबर में नहीं किया गया।

यह भी हो सकता है कि केवल चटखारे लेने के लिए यह खबर लिखी गई।

अगर यह खबर चटखारे लेने के लिए लिखी गई तो इसको संपादकीय नजरिए से थोड़ा मजबूत बनाने का काम तो किया ही जाना चाहिए था। जैसे कि चंद्रशेखर ने जैसे ही यह सुना कि मायावती ने उनके बारे में क्या कहा है तो वह उसी समय गश खाकर गिर गए। जो शीर्षक और इंट्रो में लिखा है, उसे स्थापित तो करना ही चाहिए था। पर कहते हैं न झूठ के पांव नहीं होते।

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