कवि ने कविता में नीतीश को लबार और रंगल-सियार कहा

Update: 2017-08-03 12:36 GMT

नीतीश कुमार के बदले स्वरूप पर भोजपुरी कवि संतोष सहर का ऐसा मारक प्रहार कि तिलमिला जाए हर वो समर्थक जो नीतीश के सांप्रदायिक सांठगांठ में साथ खड़ा है। बिहार में कमजोर के हक़ में जो सबसे बड़ा जनवादी-क्रांतिकारी संघर्ष 70 के दशक में शुरू हुआ था,उस संघर्ष में जनकवियों की शृंखला उभर कर आई। भोजपुर इलाके के उसी क्रांतिकारी विप्लव की गर्भ में विकसित कवि संतोष सहर पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। संतोष सहर की यह कविता बिहार के मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम के मुतल्लिक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है। हमारी जानकारी के अनुसार नीतीश कुमार के जनविरोधी-साम्प्रदायिक चेहरे को उजागर करनेवाला कविता में यह पहला सशक्त हस्तक्षेप है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री के चित्त-चरित्र पर अब तक अख़बारों में आई ख़बरों, संपादकीय और चैनलों पर हुई तमाम बहस-मुहाविशों से ज्यादा ताकतवर-मारक संतोष सहर की यह कविता है। देश के हर सचेतन नागरिक को इस कविता का पाठ करना चाहिए। - पुष्पराज, स्वतंत्र पत्रकार और चर्चित पुस्तक नंदीग्राम डायरी के लेखक

भोजपुरी कवि संतोष सहर की कविता 'अबकी सावन के कजरी'

तनी लीला देखीं नीतीश कुमार के,
वोट के गद्दार के ना।

खइलें मोदी मोदक गोला, ओढलें रामनामी चोला
चाकर बनि गईलें संघ परिवार के,
भाजपा सरकार के ना।

आईल पिछला जब चुनाव,चढलें सेकुलर नाव
कहलें रक्छा करब भाजपा से बिहार के,
आई दिन बहार के ना।

लोगवा रहलें निराश, तब्बो कइलें विसवास
इनका वोट मिलल गांवा-गाईं झार के,
कुर्सी बिहार के ना।

सभे कहे सांची बात, इनका अँतड़ी में दाँत
मनवा लागत नाहीं रहे बिना यार के,
मोदी हतेयार के ना।

जब भईल नोटबन्दी, तुरते कईलन जुगलबन्दी
संगे नाचे लगलें सारा तन उघार के
दिल्ली दरबार के ना।

देखी सावन के फुहार, गरमी चढ़ल कपार
रट धईलन भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार के,
देखीं एह लबार के ना।

मेधा, बियाडा, खजाना, बा ना लूट के ठेकाना
ब्यापमं-पनामा से भेंटे अँकवार के
सोझे संसार के ना।

जेपी-लोहिया हैरान, चेला निकलल शैतान
राह धइलस गोलवलकर-हेडगवार के,
संग ग़द्दार के ना।

कजरी गावे सन्तोष, एह में कवनो ना दोष
कारिख पोत मुंह में रँगल सियार के,
'कपूत' बिहार के ना।

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