एक बार फिर सुर्खियों में बीएचयू, छात्रों ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा में जाति के आधार पर लगाए भेदभाव के आरोप
जिसके बाद छात्रों ने लंका स्थित सिंह द्वार से प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय तक मार्च निकालने की असफल कोशिश भी की। इसके पश्चात छात्रों का मार्च काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार से होते हुए सभी विभागों से गुजरकर सेंट्रल आफिस पहुंचा जहां यह धरने में तब्दील हो गया। इसके बाद में छात्रों ने केंद्रीय कार्यालय का घेराव किया।
क्या है विवाद ?
बीएचयू में मास्टर के छात्र और धरने में शामिल राहुल यादव बताते हैं कि, 'बीएचयू प्रशासन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देशानुसार विश्वविद्यालय की पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया की चयन कमेटी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का प्रतिनिधि नियुक्त नहीं करता है। जबकि एससी-एसटी वर्ग के प्रतिनिधि की नियुक्त की जाती है। इससे प्रवेश प्रक्रिया के दौरान रिसर्च प्रपोजल और साक्षात्कार में ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को जानबूझकर कम अंक दिये जाते हैं। इससे वे मेरिट से बाहर हो जाते हैं। इसलिए हमारी मांग है कि, 'ओ.बी.सी. वर्ग के लिए प्रतिनिधि नियुक्त किया जाये।'
धरने में शामिल बीएचयू में मास्टर के एक अन्य छात्र शिवम कहते हैं कि, 'पीएचडी प्रवेश परीक्षा के दौरान लिखित एवं साक्षात्कार की प्रक्रिया में छात्र-छात्राओं के नाम औक उनकी श्रेणी का उपयोग होता है। इससे उच्च वर्ग से आने वाले विशेषज्ञ एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव करते हैं। परीक्षकगण उन्हें जानबूझकर कम अंक देते हैं जबकि उनकी शिक्षा की उपाधियों के कुल अंको का योग सर्वाधिक या फिर सामान्य वर्ग के छात्र-छात्रों से अधिक होता है।'
सुनीता यह भी कहती हैं कि 'विश्वविद्यालय के किसी भी पाठ्यक्रम में पढ़ने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं को छात्रावास आबंटन में आरक्षण प्रणाली का पालन नहीं किया जाता है।' हमारी मांग है कि प्रत्येक पाठ्यक्रम में अध्यनरत छात्र-छात्राओं के लिए छात्रावास आबंटन में सविंधान प्रदत्त 27 प्रतिशत आरक्षण अविलंब लागू किया जाए।'
छात्रों के इस धरने के बारे में बीएचयू के प्रशासनिक अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई लेकिन कोई बात नहीं हो पाई। बीएचयू के पीआरओ राजेश सिंह से भी बात की गई। राजेश सिंह कहते हैं कि मैं उस धरने के बारे में टू द पॉइंट तो नहीं बता पाऊँगा लेकिन हाँ, उन लोगों ने कोई ज्ञापन दिया था और लोगों से बात हुई थी।'
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बीएचयू पीआरओ कहते हैं कि, 'जो हम लोग एडमिशन लेते हैं वो बीएचयू का अपना रूल नहीं होता। बीएचयू, गवरमेंट ऑफ इंडिया और यूजीसी के गाइडलाइन के एक्ट के आधार पर एडमिशन प्रोसेस को करता है, हमारी तरफ से कुछ नहीं होता है। भारत सरकार के रूल को तो हम उनके (छात्रों) कहने से बदल नहीं सकते। वहाँ (यूजीसी) से कोई ऑर्डर आएगा तो हम उसे फ़ालो करेंगे।'
क्या है यूजीसी?
भारत का विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) केन्द्रीय सरकार का एक आयोग है जो विश्वविद्यालयों को मान्यता देता है। यही आयोग सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को अनुदान भी प्रदान करता है। भारत का विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा (नेट) का भी आयोजन करता है जिसे उत्तीर्ण करने के आधार पर विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति होती है।
बीएचयू की वर्तमान स्थिति
गौरतलब है कि बीएचयू में हर सत्र में पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया के दौरान गड़बड़ी और जाति के आधार पर भेदभाव की शिकायतें आती हैं। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन अभी तक कोई ठोस पारदर्शी प्रक्रिया लागू नहीं कर सका है जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सभी विश्वविद्यालय के कुलपतियों और कुलसचिवों को पत्र लिखकर निर्देश दे चुका है कि पीएचडी पाठ्यक्रम के लिए चयनित शोधार्थियों की सूची नोटिस बोर्ड पर प्रकाशित करने के साथ-साथ विश्वविद्यालय और विभाग की अधिकारिक वेबसाइट पर भी प्रकाशित एवं प्रसारित किया जाए
लेकिन विश्वविद्यालय के अधिकतर विभागों के नोटिस बोर्ड या अधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं की गई है। जिन विभागों के नोटिस बोर्ड पर चयनित शोधार्थियों की सूची प्रकाशित है, उनमें केवल आरईटी प्रक्रिया के दौरान चयनित शोधार्थियों का नाम ही शामिल है।