ब्राह्मणवादी हों या दलितवादी खोट सबमें

Update: 2017-11-29 13:36 GMT

लोग भाग रहे हैं कि मत बोलो भैया यह एससी है! एक दूसरा पहलू यह भी है कि इनकी आड़ लेकर अन्य जातियां अपनी राजनीति कर रही हैं...

अभिषेक प्रकाश, पुलिस अधिकारी 

मान लीजिए आपका सफाईकर्मी यह कहे कि उसे तीन महीनों से तनख़्वाह नही मिली तो फिर आप क्या सोचेंगे या फिर गटर में दम घुटने से किसी सफाईकर्मी की मौत की खबर आपको मिले तब।

मैं तो सिस्टम को गरिया दूंगा। शायद थोड़ा मानसिक लिज़लिजापन कम हो जाए, लेकिन ये कोई बात तो नहीं हुई न, न ही कोई हल निकला इससे! हां ये सब मुद्दे हमारे समाज की सामाजिक न्याय के प्रति अपनी नज़रिया, पूर्वाग्रह, संवेदनहीनता को ही स्पष्ट करते हैं।

तब मुझे बाबा की याद आती है। बाबा मने बाबा अम्बेडकर साहब, ये अलग बात है कि बाबा के बाद मेरा टाइपिंग कीपैड बाबा रामदेव ही समझता है!

ऐसे गम्भीर मुद्दों के आलोक में जब भी बाबा अम्बेडकर साहब को समझने की कोशिश करता हूं तो आज़ादी के आंदोलन में उनकी हर प्रतिक्रिया उनका हर प्रतिरोध उनकी मान्यता, शिक्षा, मत सब वाज़िब लगने लगता है और लगता है कि उनका स्टैंड तार्किक था और उनकी लड़ाई भी।

बाबा साहब ने कहा कि जब भी स्वयं और देश में किसी को चुनना हो तो मैं देश को चुनूंगा, लेकिन जब दलित और देश के बीच की बात हो तो वह दलित मुद्दों के प्रति ज्यादा संवेदनशील दिखे। सही है जो समस्या सैकड़ों वर्षों में नही सुलझ पाई वह केवल आज़ादी की चाबी मिलने से कैसे सुलझ पाती! हां, लेकिन उन्होंने जो चेतना जागृत की आज वह फल-फूल रही है।

खैर, हिन्दू समाज का एक बड़ा भाग अभी भी उनको वोट के हथियार से ज्यादा नहीं समझ पाया है। लेकिन इश्क़ और प्यार में थोड़ा इंतज़ार का अलग ही आनंद होता है!आशान्वित हूं कि एक दिन भारत अपने इस पुत्र को बेहद मोहब्बत करेगा!

एक अन्य मज़ेदार बात कहूं या स्याह पहलू कहूं, यह भी सच है कि तमाम कानूनों और आयोग का प्रयोग अब स्वार्थ सिद्धि के औज़ार के रूप में भी किया जा रहा है। जाति का एंगल न भी हो तो लोगों ने एक सामान्य पैटर्न अपना रखा है जैसे कि अगर कोई अनुसूचित जाति का है तो उसके लगभग हर तहरीर में यह लिखा होगा कि 'फ़लाने ने मुझे चमार-सियार कहा और गालीगुप्ता दी, मेरे को मारा और औरत रहे तो कहेगी कि मेरे कपड़े फाड़ डाले और इधर उधर हाथ लगाया!'

अजीब है लोग भाग रहे हैं कि मत बोलो भैया यह एससी है! एक दूसरा पहलू यह भी है कि इनकी आड़ लेकर अन्य जातियां अपनी राजनीति कर रही हैं। इनके ओट में पेशबंदी की जा रही है। लोग अपने-अपने दुश्मनों पर फ़र्ज़ी आरोप लगा मुकदमा लिखवा रहे हैं।

खैर, ब्राह्मणवादी हो या दलितवादी सबमें कमोबेश खोट हैं। अम्बेडकर के सपनों का भारत बने, ये जरूरी है और जरूरत है कि इन 'वाद' चलाने वालों से सावधान रहा जाए। ज़मीन पर काम किया जाए। अपने घर को इसकी प्रयोगशाला बनाया जाए।

(पुलिस अधिकारी अभिषेक प्रकाश सामाजिक मसलों पर लगातार लिखते हैं।)

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