धर्म परिवर्तन की हिम्मत नहीं कर पाएंगी मायावती

Update: 2017-10-27 17:37 GMT

मायावती का धर्म परिवर्तन व्यक्तिगत आस्था से नहीं बल्कि राजनीति से जुड़ा हुआ है। मायावती अगर धर्म परिवर्तन करना चाहती हैं तो उन्हें कौन रोक रहा है, पर उनमें साहस बचा नहीं कि कर सकें, क्योंकि राज्यसभा छोड़ने का स्वाद वह चख चुकी हैं...

लखनऊ से आशीष वशिष्ठ की रिपोर्ट

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने बीती 18 जुलाई को संसद में बोलने न देने के आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था। लगभग पांच महीने बाद बीते 24 अक्टूबर को मायावती ने आजमगढ़ में कार्यकर्ता सम्मेलन में भाजपा को खुली चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उसने दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के प्रति अपनी सोच नहीं बदली तो वह हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लेंगी।

मायावती ने सहारनपुर हिंसा के बाद उपजे माहौल और दलितों के मुद्दे पर न बोलने देने की आड़ में इस्तीफे का जो दांव चला था। वो कारगर साबित नहीं हुआ। अब एक बार फिर मायावती ने अपनी पूरी तरह बेपटरी हो चुकी सियासत को दुरूस्त करने की नीयत से धर्म परिवर्तन का पासा फेंका है।

कभी दिल्ली की सत्ता को हिला देने वाली मायावती की धमकी से कहीं कोई कंपन या हलचल होती नहीं दिखती। धार्मिक जनगणना 2011 के आंकड़ों के मुताबिक देश में बौद्ध आबादी 84.42 लाख है। यूपी में यह आंकड़ा 2 लाख 6 हजार 285 है। इसमें भी दलित बौद्ध 1 लाख 37 हजार 267 हैं। यूपी में दलितों की कुल आबादी 21 फीसदी है।

मायावती ने दलित वोट बैंक को एकजुट रखने के लिये यह बयान दिया है। लेकिन जानकारों के मुताबिक मायावती का ये दांव उल्टा पड़ सकता है। उनके इस बयान से उनकी पार्टी के नेता ही परेशान हो गए हैं। उनकी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि उन्होंने भाजपा की ओर दलितों के बढ़ते रूझान को देख कर यह बयान दिया है।

मायावती को उनको अपना वोट बैंक पूरी तरह से खिसक जाने की चिंता सता रही है। तभी उन्होंने प्रदेश के दलितों को यह मैसेज देना चाहा है कि भाजपा उनके साथ बुरा बरताव कर रही है और उनको भाजपा के साथ नहीं जाना चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी ने के प्रदेश अध्यक्ष डाॅ. महेन्द्र पाण्डेय ने मायावती के बयान को कुण्ठा और अवसाद से ग्रसित बताया। पाण्डेय के अनुसार, बहिन जी कुछ छोड़े या न छोड़े उन्हें राजनीति छोड़ देनी चाहिए। जिससे प्रदेश में जातिवादी और टिकट विक्रय की राजनीति का अंत होगा।

मायावती की चिंता वाजिब भी है। 2009 के चुनाव में यूपी में बसपा को 27.42 फीसदी वोट की बदौलत 20 सीटें हासिल हुईं। 2014 के लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत गिरकर 19.6 फीसदी पर पहुंच गया। बसपा का एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाया। हालंकि बसपा के 34 उम्मीदवार दूसरे स्थान पर जरूर रहे।

पूर्व आईपीएस एवं जनमंच के संयोजक एसआर दारापुरी के अनुसार, मायावती का धर्म परिवर्तन का बयान राजनीति से प्रेरित है। मायावती की धर्म परिवर्तन की धमकी के पीछे उसके दो मकसद हैं। एक तो भाजपा जो हिंदुत्व की राजनीति कर रही है पर दबाव बनाना और दूसरे हिन्दू धर्म त्यागने की बात कह कर दलितों को प्रभावित करना।

मायावती को यूपी विधानसभा चुनाव से बड़ी उम्मीदें थीं। लेकिन मोदी सुनामी में ‘हाथी’ के पांव उखड़ गये। बसपा का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। मायावती की सोशल इंजीनियरिंग पूरी तरफ फेल दिखी। बसपा का दलित-मुसलिम गंठजोड़ कमोबेश असफल रहा। बीएसपी को 22.2 प्रतिशत वोट मिले और पार्टी महज 19 सीटों पर सिमट गई।

विधानसभा चुनाव में वोट बैंक पार्टी 28 वर्ष पहले की स्थिति से भी पीछे चली गयी है। 1985 में 17 सीटों पर जीत मिली थीं। 1993 में यह 67 हो गयी। 2012 में बसपा को झटका लगा, मायावती को यूपी की सत्ता गवांनी पड़ी थी। उत्तर प्रदेश की 17वीं विधानसभा में बसपा की नुमाइंदगी 1989 के बाद सबसे कम है।

लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव के लगातार हार ने मायावती की चिंता बढ़ाई है। दलित वोट का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ गया है। इससे चिंतित मायावती बौद्ध बनने की धमकी दी है। बकौल दारापुरी, मायावती की इस धमकी से बीजेपी और हिन्दुओं पर कोई असर होने वाला नहीं है क्योंकि हिन्दू तो बुद्ध को विष्णु का अवतार और बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म का एक पंथ मानते है।

दारापुरी याद दिलाते हैं कि, मायावती ने इसी प्रकार की घोषणा 2006 में भी की थी। उस समय उसने कहा था कि वह धर्म परिवर्तन की स्वर्ण जयंती के अवसर पर नागपुर जा कर धर्म परिवर्तन करेगी। परन्तु उसने वहां धर्म परिवर्तन नहीं किया। बल्कि वह अपने अनुयायियों से यह कह कर चली आई थी कि वह धर्म परिवर्तन तभी करेगी जब केंद्र में बसपा की बहुमत की सरकार बनेगी।

युवा पत्रकार विष्णुमाया के अनुसार, यह भी देखना चाहिए कि सत्ता में रहकर मायावती ने बौद्ध धर्म के लिए क्या किया है? हां उन्होंने बुद्ध की कुछ मुर्तियां तो जरूर लगवायीं परन्तु बुद्ध की विचारधारा को फैलाने के लिए कुछ भी नहीं किया।

यह बात दीगर है कि 2001 से 2010 के दशक में जब मायावती तीन बार मुख्यमंत्री रही उसी दशक में उत्तर प्रदेश में बौद्धों की जनसख्या एक लाख कम हो गयी जैसा कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों से स्पष्ट है। दारापुरी के मुताबिक, क्या यह बौद्ध धर्म आन्दोलन पर सर्वजन की राजनीति के कुप्रभाव का परिणाम नहीं है?

बसपा के 2007 से लेकर अब तक चुनाव नतीजों को देखा जाये तो यह बात स्पष्ट तौर पर उभर कर आती है कि जब से मायावती ने बहुजन की राजनीति के स्थान पर सर्वजन की राजनीति शुरू की है तब से बसपा का दलित जनाधार बराबर घट रहा है। 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 30.46 फीसदी, 2009 के लोकसभा चुनाव में 27.42 फीसदी (-3.02 फीसदी), 2012 के विधानसभा चुनाव में 25.90 फीसदी (-1.52 फीसदी) तथा 2014 के लोक सभा चुनाव में 19.60 फीसदी (-6.3 फीसदी) वोट मिले। इस से साफ है कि मायावती का दलित वोट बैंक में भाजपा व अन्य दलों ने ठीकठाक सेंध लगायी है। बसपा नेताओं का मानना है कि मायावती के धर्म परिवर्तन के बयान से उनका वोट और घटेगा।

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप उपाध्याय की राय में मायावती का धर्म परिवर्तन व्यक्तिगत आस्था से नहीं बल्कि राजनीति से जुड़ा हुआ है। मायावती अगर धर्म परिवर्तन करना चाहती हैं तो उन्हें कौन रोक रहा है।

बसपा नेताओं का मानना है कि, उनकी पार्टी के आदर्श बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बौद्ध बने थे, तो उनका यह कदम बौद्धिक और वैचारिक था। उनके साथ बहुत कम लोग गए थे और उनको इससे चुनावी लाभ नहीं लेना था, बल्कि व्यापक हिंदू समाज को एक संदेश देना था।

जबकि मायावती का मकसद चुनावी फायदा लेने का है। सो, धर्म परिवर्तन की चेतावनी का दांव उलटा भी पड़ सकता है। राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार, आक्रामक हिंदुत्व की राजनीति कर रही भाजपा मायावती के बयान का जमकर फायदा उठाना चाहेगी।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डाॅ महेन्द्रनाथ पाण्डेय कहते हैं, मायावती को दलितों से कभी हमदर्दी नहीं रही। दलितों को वोटबैंक बनाकर उनके वोटों का सौदा करके अपनी तिजोरी भरने वाली मायावती चुनावी मौसम में अपने महल से निकलती है और दलित प्रेम का प्रदर्शन करती हैं। निकाय चुनाव में मायावती अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की आखिरी कोशिश में छटपटा रही है।

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