चम्बल नदी गंगा-यमुना जैसी देवी तो नहीं, मगर पानी लाख गुना साफ-सुथरा

Update: 2019-05-19 10:28 GMT

चम्बल को मिले अभिशाप और कुख्यात बीहड़ के कारण देश की एक नदी कम से कम साफ़ है, जलीय जीवन से लदी है और बह रही है। यही अभिशाप इसके लिए वरदान है और यकीन मानिए चम्बल के अभिशप्त होने के कारण ही गंगा भी इलाहाबाद के आगे बढ़ पाती है...

महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक

हमारे देश में बहुत कुछ ऐसा है जो यहाँ के मीडिया की समझ से परे है, पर विदेशी मीडिया इन मुद्दों पर बड़े-बड़े लेख प्रमुखता से छापते हैं। यहाँ के मीडिया में नदियों की चर्चा गंगा से शुरू होकर इसी पर ख़त्म भी हो जाती है। हाल में ही लन्दन से प्रकाशित, द गार्डियन, में एक बड़े लेख का सार यह है कि गंगा देवी है लेकिन बहुत प्रदूषित है, जबकि चम्बल एक अभिशप्त लेकिन साफ़-सुथरी नदी है। चम्बल के लिए उसका अभिशप्त होना ही वरदान है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चम्बल का पुराना नाम चर्मावती है। इस नाम का कारण यह है कि पुराने जमाने में इस नदी के तट पर भारी मात्रा में जानवरों को मार कर उनकी खाल को सुखाया जाता था। यह भी कहा जाता है कि कोई पुराने राजा ने इसके किनारे किसी यज्ञ के लिए इतने जानवरों की बलि दी थी कि इसके पानी में खून मिल गया था। इसमें गाय का खून भी शामिल था इसीलिए किसी ऋषि ने चम्बल को हमेशा अशुद्ध रहने का श्राप दिया था।

महाभारत में भी इस नदी की चर्चा है। इसके अनुसार द्रौपदी ने चीर-हरण के बाद चम्बल को श्राप दिया था कि इसका पानी कोई भी नहीं पिएगा। शायद यही कारण है कि चम्बल के किनारे बड़ी आबादी नहीं बसी और बड़े धार्मिक शहर नहीं आबाद हो पाए। इसी कारण चम्बल आज देश की सबसे साफ़ सुथरी नदी है और इसमें भारी मात्रा में जलीय जंतु पनप रहे हैं।

दूसरी तरफ गंगा और यमुना दोनों देवी मानी जाती हैं और देश की सबसे प्रदूषित नदियाँ हैं। चम्बल नदी यमुना की सहायक नदी है और जब यह यमुना में मिलाती है तो इसके साफ़ पानी से यमुना में प्रदूषण काफी हद तक कम हो जाता है। यमुना में मिलाने के समय इसमें पानी की मात्रा भी यमुना से अधिक होती है। यही कारण है कि जिस यमुना जिस यमुना को नाले जैसा हम दिल्ली, मथुरा या आगरा में देखते हैं, वैसी यमुना इलाहाबाद में नहीं दिखती।

चम्बल नदी की कुल लम्बाई 965 किलोमीटर है और यह मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बहती है। इसका उद्गम स्थल इंदौर के पास विन्ध्य पर्वतमाला है, जिसकी ऊंचाई 843 मीटर है। चम्बल का जलग्रहण क्षेत्र 143219 वर्ग किलोमीटर है। अपने उदगम से लेकर 346 किलोमीटर आगे तक यह नदी मध्य प्रदेश में बहती है, इसके बाद 225 किलोमीटर राजस्थान में बहती है, फिर 217 किलोमीटर लम्बी सीमा राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच बनाती है, 145 किलोमीटर लम्बी सीमा मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच बनाती है और फिर 32 किलोमीटर का रास्ता उत्तर प्रदेश में तय करने के बाद जालॉन के पास यमुना में मिल जाती है।

चम्बल विकास परियोजना के तहत चम्बल पर गांधी सागर डैम, राणा प्रताप सागर डैम और जवाहर सागर डैम स्थापित किये गए हैं, जिनसे पनबिजली परियोजनाएं जुडी हैं। कोटा के पास कोटा बैराज भी स्थापित किया गया है। चम्बल नदी के एक लम्बे क्षेत्र को वर्ष 1979 से चम्बल वन्यजीव अभयारण्य के तौर पर घोषित किया गया है, जहां मछली पकड़ना भी मना है। इसके फलस्वरूप चम्बल में घड़ियाल, मगरमच्छ, 8 प्रजाति के कछुए, रिवर डॉलफिन के साथ साथ तमाम प्रजाति के पक्षियों का बसेरा है।

चम्बल नदी का अधिकतर क्षेत्र ऐसा है जहां नदी बहुत गहराई से बहती है, या फिर बीहड़ों के बीच बहती है। इन बीहड़ों का उपयोग आजादी के पहले स्वतंत्रता सेनानियों ने किया और फिर डाकुओं ने। इसलिए, बीहड़ आज भी सुरक्षित हैं और यह नदी भी। आज के दौर में जब नदियों पर सरकारें और किनारे रहने वाले अपना पूरा अधिकार मानते हैं, चम्बल इन सबसे अछूती एक साफ़-सुथरी बहती हुए नदी है। इसके किनारों पर शहरों और उद्योगपतियों का अधिकार नहीं है।

कुल मिलाकर चम्बल को मिले अभिशाप और कुख्यात बीहड़ के कारण देश की एक नदी कम से कम साफ़ है, जलीय जीवन से लदी है और बह रही है। यही अभिशाप इसके लिए वरदान है और यकीन मानिए चम्बल के अभिशप्त होने के कारण ही गंगा भी इलाहाबाद के आगे बढ़ पाती है। चम्बल से मिलाने के पहले यमुना में अधिकतर समय इतना पानी नहीं होता ही यह इलाहाबाद तक पहुँच पाए। चम्बल का पानी इसे इलाहाबाद तक पहुंचाता है। इलाहाबाद में गंगा का पानी इतना कम होता है कि यह इससे आगे जा ही नहीं पाती, यदि यमुना नहीं मिलती।

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