हरियाणा से 94 मजदूरों को ले जा रहे ट्रक को यूपी पुलिस ने पकड़ा, ट्रक मालिक और ड्राइवर के खिलाफ केस दर्ज
फरीदाबाद से वापस बिहार लौट रहे प्रवासी मजदूरों से भरे ट्रक को यूपी पुलिस ने पकड़ा, सभी को क्वारंटीन में रखा गया, ट्रक मालिक और ड्राइवर के खिलाफ केस दर्ज....
जनज्वार ब्यूरो। देशव्यापी लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूर जहां थे वहीं फंसे हुए हैं। ऐसे में दिहाड़ी मजदूरों की रोजी-रोटी पर संकट आ गया है और वह किसी भी तरह अपने गांव तक पहुंचना चाहते हैं। ताजा खबर यह है कि यूपी पुलिस ने हरियाणा से 94 प्रवासी मजदूरों को ले जा रहे एक ट्रक को पकड़ लिया। उसके बाद ट्रक के मालिक और ड्राइवर के खिलाफ केस दर्ज कर लिया।
'द हिंदू' की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस का कहना है कि बिहार के मुंगेर और वैशाली जिले के प्रवासी हरियाणा के फरीदाबाद से आ रहे थे, सोनभद्र में झारखंड सीमा पर उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा महिलाओं सहित 94 प्रवासी मजदूरों को बिहार ले जा रहे एक ट्रक को रोक लिया गया।
इस मामले को लेकर पुलिस अधीक्षक सोनभद्र आशीष श्रीवास्तव ने कहा, 'महामारी रोग अधिनियम के तहत ट्रक के मालिक, उसके चालक और डेकार्ड के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।' ये प्रवासी मजदूर बल्लभगढ़ के हयाना में कारखानों में काम करते थे जो उस स्थान से लगभग 1,000 किमी दूर है जहां ट्रक को जब्त किया गया था।
ट्रक कुछ दिनों पहले पाइप की आपूर्ति के साथ झारखंड के टाटा नगर से हरियाणा गया था। 17 अप्रैल को लॉकडाउन का विस्तार होने के बाद मजदूरों ने कथित तौर पर ट्रक को घर छोड़ने के लिए कहा। श्रीवास्तव ने कहा, 'सभी 94 व्यक्तियों का चिकित्सा निरीक्षण (मेडिकल टेस्ट) किया गया। उन्हें सोनभद्र में एक स्कूल में क्वारंटीन के तहत रखा गया है और उन्हें भोजन दिया जा रहा है।'
'कोई काम नहीं, कोई रोजगार नहीं'
इन प्रवासी मजदूरों में से एक नंद किशोर रजक ने बताते हैं कि उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था। वह एक बेडशीट फैक्ट्री में एक मजदूर के रुप में काम करते थे जो लॉकडाउन के कारण बंद हो गया था। रजक कहते हैं, कोई काम नहीं था, कोई रोजगार नहीं था। रजक ने यह भी दावा किया कि मजदूरों ने बिहार में कई नेताओं से संपर्क किया, जिनमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद नेता तेजस्वी यादव शामिल थे, लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली।
वह कहते हैं, 'किसी नेता ने कहा कि पैसा हमारे खाते में जमा होगा, दूसरे ने कहा कि राशन भेजा जाएगा। दूसरे लॉकडाउन के साथ ही हमारा अपना सारा सामान और पैसा खत्म हो गया था। उन्होंने बताया कि चूंकि सभी मजदूरों ने एकसाथ वापस चलने का फैसला किया इसलिए उन्होंने खुद को एक ही ट्रक में पैक कर दिया, जिससे सामाजिक दूरियों का मानदंड अलग हो गया। हम वहाँ भूख से मर गए होते इसलिए हमने सड़क से चलने का फैसला किया।