घरवालों ने 15 हजार कर्ज लेकर बिहार से तमिलनाडु भेजा तब लौट पाया मजदूर

Update: 2020-06-05 12:14 GMT

प्रवासी मजदूर बॉबी ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से घरवालों ने 15,000 रुपए कर्ज लेकर पैसे दिए। लिए हुए कर्ज को कैसे चुकाएंगे इसका पता नहीं है..

हिमांशु सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन किया गया। लॉकडाउन की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कत प्रवासी मजदूरों को झेलना पड़ा है। प्रवासी मजदूरों का रोजगार छिन गया है। कोरोना पर काबू पाने के लिए प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की थी कि जो जहां है वहीं रहें, लेकिन सबसे बड़ी समस्या तो उन प्रवासी मजदूरों के सामने थी, जिनके पास खाने-पीने का कोई ठिकाना नहीं था। दो वक्त की रोटी की तलाश में मजदूर अपने घर को छोड़कर दूसरे राज्य में बेहतर जिंदगी जीने की चाह रखकर कमाने खाने निकले थे लेकिन उनको क्या पता था कि कोरोना नामक मुसीबत उनके रोजी-रोटी का साधन ही छीन लेगी।

जदूरों की समस्या तो तब दोगुनी हुई जब सरकार की ओर से उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिली। मजदूरों की समस्या और ना बढ़े इसलिए प्रवासी मजदूर शहर छोड़कर गांव वापस लौटने पर मजबूर हो गए और पैदल ही हजारों मील भूखे प्यासे बिलखते हुए कठिन सफर पर निकल पड़े। आज ऐसी कोई सड़कें खाली नहीं बची है जिसमें मजदूर रेंगता नजर ना आए। साथ ही ऐसे कई मजदूर हैं जो अन्य राज्यों में अभी भी मदद मिलने के इंतजार में फंसे हुए हैं।

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बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मरुआँहा गांव थाना सकरा पोस्ट कटेश्वर के रहने वाले बॉबी कुमार बताते हैं कि तमिलनाडु के परलम में उनके साथ कुल 200 से अधिक लोग फंसे हुए थे जिनमें से कुछ मजदूर मुजफ्फरपुर जिले के रतनपुर, बरियारपुर, मनियारी व सबहा गांव के हैं और कुछ मजदूर वैशाली जिले के चेहराकला, कोआही, पातेपुर, टेकनारी व मधौल के निवासी हैं जिनमें से लगभग 100 लोग किसी से कर्ज लेकर जैसे-तैसे अपने घर पहुंच गए हैं। 100 से अधिक लोग अभी भी फंसे हुए हैं।

बॉबी कहते हैं कि रोजगार की तलाश में तमिलनाडु आए थे जहां उनको बच्चों के कपड़ा बनाने वाली कंपनी में हेल्पर का काम मिल गया था लेकिन कोरोना महामारी के चलते जिस कंपनी में काम करते थे वह बंद हो गई। उनका रोजगार छिन गया, जिससे उनके पास खाने के लिए पैसे और अन्य व्यवस्थाएं नहीं थी। आगे क्या होगा सब भगवान भरोसे था। वह आगे बताते हैं कि वह सारे लोग घर जाना चाहते हैं। घर वापसी के लिए कई दफा ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी किए लेकिन उससे कुछ ना हो सका। साथ ही 2- 4 फॉर्म भी घर वापसी के लिए भर चुके थे लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

बॉबी ने बताया कि गांव के मुखिया से मदद मांगने पर उन्होंने कहा कि गांव में अभी कोई गाड़ी नहीं आ रही है जिससे हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। बॉबी आगे कहते हैं कि घर जाने के लिए पैदल जाने का प्रयास किया लेकिन भुखमरी के साथ पुलिस की मार भी हमको झेलनी पड़ी है। 2 महीने पहले कलेक्टर ऑफिस में पुलिस स्टेशन में घर वापसी के लिए फॉर्म भरे थे लेकिन हमारी किसी भी तरह से मदद नहीं की गई।

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में कलेक्टर ऑफिस जाकर पता करते थे कि घर वापसी कब तक हो सकती है लेकिन हर बार यह कहकर टाल दिया जाता था कि 2 दिन रुको। खाने के लिए और मकान मालिक को किराए देने के लिए पैसे नहीं थे। मकान मालिक किराए के लिए परेशान कर रहा था। बचे खुचे पैसे भी खत्म हो गए थे। जब पैसे खत्म हो गए और प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं मिली तो घर से पैसे मंगाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था। घर से पैसे मंगाकर मकान का किराया और राशन दुकान से उधार में लिए राशन का पैसा दुकानदार को देकर साथियों के साथ ट्रेन बैठकर घर की ओर निकल पड़े।'

बॉबी ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से घरवालों ने 15,000 रुपए कर्ज लेकर पैसे दिए। लिए हुए कर्ज को कैसे चुकाएंगे इसका कोई ठिकाना नहीं है। आगे उन्होंने बताया कि 3 दिन का सफर 4 दिन में पूरा किया लेकिन सबसे चौकाने वाली बात उन्होंने यह बताया कि ट्रेन में 4 दिन के सफर में केवल 3 से 4 टाइम का ही खाना दिया गया। साथ ही सबसे बुरी चीज तो तब घटी जब उनको और उनके साथियों को उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जंक्शन में बिना सब्जी के पूड़ी दिया गया।

बॉबी ने बताया कि पूड़ी से गंध आ रही थी जिससे उनके पास पूड़ी को फेंकने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। खराब पूड़ी मिलने पर बॉबी और उनके साथी गोरखपुर स्टेशन में मौजूद अधिकारियों से बात करने गए तो वहां मौजूद पुलिसकर्मी गाली देकर भगा देते हैं साथ ही डंडे मारने की बात भी पुलिस के द्वारा कही गई।

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बॉबी आगे कहते हैं कि घर में खेती किसानी करूंगा लेकिन तमिलनाडु काम करने के लिए कभी वापस नहीं जाऊंगा। हम लोगों को सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिली जिससे हम सब दोबारा तमिलनाडु लौटकर नहीं जाना चाहते। तमिलनाडु में फंसे बॉबी के साथी नवल वैशाली जिले के चेहराकला गांव के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि हमारी स्थिति दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है। हमारे पास खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं है। हमें जल्द ही मदद नहीं मिली तो कहीं हम भूखे ना मर जाए।

ताजा आंकड़े के मुताबिक बेरोजगारी दर 27.1 फ़ीसदी तक पहुंच गई है। शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर ज्यादा बढ़ी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) ने देश में बेरोजगारी पर रिपोर्ट जारी किया है। सीएमआईई का अनुमान है कि अप्रैल में दिहाड़ी मजदूर और छोटे कारोबारी सबसे ज्यादा बेरोजगार हुए हैं। सर्वे के अनुसार 12 करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी है सीएमआईई के प्रमुख महेश व्यास का कहना है, कि लॉकडाउन बढ़ने से बेरोजगारी और बढ़ सकती है यानी हर 4 में से 1 व्यक्ति बेरोजगार हो गया है। लॉकडाउन से पहले 15 मार्च तक बेरोजगारी दर 6.74 फ़ीसदी थी।

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