वरिष्ठ वामपंथी नेता गुरुदास दासगुप्ता का लंबी बीमारी के बाद निधन

Update: 2019-10-31 07:02 GMT

जन्मदिन से मात्र 3 दिन पहले वरिष्ठ वामपंथी नेता गुरुदास दासगुप्ता ने अपने घर कोलकाता में ली अपनी अंतिम सांस, हमेशा अपनी तल्ख टिप्पणियों के लिए रहे चर्चित

जनज्वार। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के वरिष्ठ नेता गुरुदास दास गुप्ता का आज सुबह लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। 3 बार राज्यसभा सांसद, 2 बार लोकसभा सांसद रहे गुरुदास दासगुप्ता ने 83 साल की उम्र में कोलकाता में अंतिम सांस ली।

जानकारी के मुताबिक गुरुदास दासगुप्ता पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे और किडनी तथा हार्ट से संबंधित कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। दिग्गज वामपंथ्ज्ञी नेताओं में शामिल दासगुप्ता कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे हैं।

राजनीतिक कैरियर में गुरुदास दासगुप्ता 2 बार लोकसभा तथा तीन बार राज्यसभा के सदस्य रहे। पहली बार वे 1985 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। 1988 में दूसरी तथा 1994 में वह तीसरी बार वे राज्यसभा के सांसद बने। 2004 और 2009 में गुरुदास दासगुप्ता लोकसभा चुनाव जीते। लोकसभा में वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संसदीय दल के नेता भी रह चुके हैं।

नके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए श्चिम बंगाल सीपीआई (एम) ने अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से ट्वीट किया है, 'हम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता और प्रसिद्ध सांसद, कॉमरेड गुरुदास दासगुप्ता के निधन पर शोक व्यक्त करते हैं। वामपंथी और श्रमिक वर्ग आंदोलन में उनका योगदान युवा पीढ़ी को प्रेरित करेगा।'

3 नवंबर, 1936 में जन्मे वामपंथी नेता दासगुप्ता की क्रिकेट और संगीत में गहरी रुचि रही। बंगाल क्रिकेट संघ के सदस्य के रूप में भी उन्होंने कार्य किया। यानी 3 दिन बाद उनका जन्मदिवस था।

यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान वे तब चर्चा में आये थे जब उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति का सदस्य रहते हुए 2जी स्पेक्ट्रेम मामले में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर टिप्पणी करते हुए इसे उनकी कर्तव्य की बड़ी चूक बताया था। तब कई वरिष्ठ नेताओं ने इसके लिए उनकी आलोचना भी की थी।

दासगुप्ता तब भी चर्चा में आये थे जब उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल में वित्त वर्ष 2012-13 के बजट पर तीखी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था, ‘यह पूरी तरह लिपिकीय (क्लर्किल) बजट है। इसे वित्त मंत्रालय के क्लर्क भी तैयार कर सकते थे, इसके लिए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की कोई जरूरत ही नहीं थी।’

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