मध्य प्रदेश में CAA-NRC के विरोध 15,000 दलित-आदिवासियों ने निकाली रैली, वक्ता बोले गोडसे नहीं गांधी की संतानें हैं हम

Update: 2020-01-28 08:47 GMT

योगेंद्र यादव बोले, प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि विरोध करने वालों को कपड़े से पहचाना जा सकता है। काश वो इस ऐतिहासिक सभा को देख पाते, तो आज यहां तो आज यहां नौजवान, आदिवासी महिलाओं के कपड़े देख पाते, मगर अफसोस कि उनको सिर्फ सिर पर टोपी और हिजाब ही दिखता है...

रोहित शिवहरे

बडवानी, जनज्वार। मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में सोमवार 27 जनवरी को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ दलित, आदिवासी तथा अन्य नागरिक समूहों द्वारा ‘संविधान बचाओ जन आन्दोलन’ के नाम से एकजुट होकर, मध्य प्रदेश सरकार से प्रदेश सरकार से प्रदेश में NPR नहीं लागू करने के सम्बन्ध में विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने की मांग भी उठाई।

रैली में शामिल नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े रोहित सिंह बताते हैं कि दूरदराज़ ग्रामों से आए आदिवासी महिला-पुरुष सहित लगभग पंद्रह हज़ार से ज्यादा लोगों ने रैली एवं जनसभा में भाग लिया, जिसमें जागृत आदिवासी दलित संगठन, आदिवासी मुक्ति संगठन, आदिवासी छात्र संगठन, भीम आर्मी, नर्मदा बचाओ आंदोलन, सेंचुरी मिल संघर्ष जैसे संगठनों ने भाग लिया।

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वे आगे कहते हैं कि NPR तथा NRC से गरीब एवं आम नागरिकों को प्रताड़ित किया जाएगा तथा धर्म आधारित भेदभाव करने वाला CAA संविधान विरोधी है। इसलिए ये तीनों किसी एक समाज का मुद्दा नहीं है, बल्कि हर नागरिक का है। CAA-NRC और NPR को एक ही कड़ी का हिस्सा बताते हुए उन्होंने इनको हर नागरिक के संवैधानिक और लोकतान्त्रिक अधिकारों पर एक बड़ा खतरा हैं। सरकार नगरिकों से बनती है, सरकार से नागरिक नहीं।

ई जनसंगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा जनसभा को संबोधित किया गया। विशाल जनसभा में स्वराज्य इंडिया के नेता योगेन्द्र यादव, पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर और जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेत्री माधुरी बेन ने भी विरोध जनसभा में भाग लेकर सभा ने संबोधित किया।

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रैली में शामिल योगेन्द्र यादव कहा, "प्रधानमंत्री कहते हैं कि विरोध करने वालों को कपड़े से पहचाना जा सकता है। काश प्रधानमंत्री इस एतिहासिक सभा को देख पाते, तो आज यहां तो आज यहां नौजवान, आदिवासी महिलाओं के कपड़े देख पाते, कैसे सब आज यहां है। पर अफसोस कि प्रधानमंत्री को सिर्फ सिर पर टोपी और हिजाब ही दिखता है, काश एक और कपड़ा देख लेते, पर उन्हें तिरंगे का कपड़ा नहीं दिखता।"

CAA-NRC और NPR के बारे में उन्होंने कहा कि गांधी जी के रास्तों पर चलते हुये हमें एनपीआर की प्रक्रिया में असहयोग करना है, बहिष्कार करना है। बाबासाहब का संविधान हमारे साथ है।"

ड़वानी के पूर्व अनुविभागीय अधिकारी रह चुके हर्ष मंदर ने असम के नज़रबंदी केन्द्रों (डिटेंशन सेंटर) के अपने अध्ययनों के अनुभव को बांटा और कहा कि NRC की प्रक्रिया में केवल एक समाज के लोग नहीं निकाले गए, जिसमें 14 लाख हिन्दू एवं आदिवासी थे, सिर्फ इसी कारण की वह अपने काग़ज़ से अपनी भारतीयता साबित नहीं कर पाए। आज बड़वानी में हमने साबित कर दिया किया कि हम आज भी गांधी के संतान हैं, गोडसे के नहीं और हम इसी तरह संविधान के बचाव में डटे रहेंगे।

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र्मदा बचाओ आन्दोलन की नेता मेधा पाटकर ने कहा कि जब वोट मांगने आए थे, तब हमसे कोई काग़ज नहीं मांगे थे। आज असम जल रहा है इस कानून के विरोध में, धर्म के आधार पर देश को बांटने वाला CAA-NRC और NPR हमें नामंजूर है। धरने में विरोध कर रहे आदिवासी किसान-मजदूरों ने केंद्र सरकार के द्वारा खेती, रोजगार तथा पलायन के मौजूदा संकट को नज़रंदाज़ कर CAA-NRC और NPR के जरिए आम जनता के नागरिकता पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। सरकार का यह कदम जनविरोधी और बेतुका है।

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जागृत आदिवासी दलित संगठन की नासरी बाई ने रैली को संबोधित करते हुए कहा, हमारे मूलभूत अधिकारों एवं ज़रूरतों, जैसे स्वास्थ, शिक्षा, रोजगार, कृषि संकट और विकास पर क्यूँ नहीं ध्यान देती है? जाति-प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, आधार, जैसे सरकारी कागज़ में आने वाली समस्याओं से आम जनता अच्छी तरह वाक़िफ़ है। सरकारी कागज़ बनाने में दफ्तरों और कमीशन कि ताक में बैठे दलालों से पहले से परेशान आम जनता कि नागरिकता ही किसी भ्रष्ट बाबू के मनमर्ज़ी पर टिके, यह हमें मंज़ूर नहीं, हम काग़ज नहीं दिखाएंगे!"

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रैली का हिस्सा रहे नितिन वर्गिस बताते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा धर्म के आधार पर भेदभाव कर नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के ज़रिए नफ़रत और साम्प्रदायिकता कि राजनीति करने के इस गैर संविधानिक प्रयास को खारिज करना ज़रूरी है। संविधान के आजादी, बराबरी तथा भाईचारे के मौलिक सिद्धांतों के ऊपर CAA के हमले का पुरजोर विरोध करने के लिए सभी संविधान तथा देश प्रेमी नागरिक खड़े हैं। अगर संविधान पर इस हमले का विरोध नहीं किया जाएगा तो आगे चल हमारे सभी लोकतांत्रिक तथा संवैधानिक अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे। इस विरोध प्रदर्शन को CAA-NRC औश्र NPR के खिलाफ संविधानिक मूल्यों को बचाने के लिए एक लम्बे आन्दोलन कि शुरुआत बताई।

संवैधानिक मूल्यों को बचाने का प्रण लेते हुए उपस्थित सभी आन्दोलनकारियों ने संविधान की प्रस्तावना को पढ़ संविधान पर होने वाले हमलों के खिलाफ आवाज उठाने की शपथ ली।

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