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राजनीति

CAA-NRC के खिलाफ प्रदर्शनों में हुई हिंसा में 2 दर्जन मौतों को लेकर कोर्ट का निर्देश, योगी सरकार सौंपे परिजनों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट

Prema Negi
28 Jan 2020 7:39 AM GMT
CAA-NRC के खिलाफ प्रदर्शनों में हुई हिंसा में 2 दर्जन मौतों को लेकर कोर्ट का निर्देश, योगी सरकार सौंपे परिजनों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट
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कोर्ट ने किया यूपी की योगी सरकार से सवाल किया कि आखिर कोर्ट यह कैसे मान ले सभी मीडिया रिपोर्ट हैं झूठी और सरकार और उसकी पुलिस ही बोल रही है सच, हिंसा में मारे गये लोगों की पोस्टमार्टम सौंपी जाये पीड़ितों के परिजनों को...

जेपी सिंह की टिप्पणी

लाहाबाद हाईकोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) विरोधी आन्दोलन के दौरान हिंसा में मारे गए 23 प्रदर्शनकारियों की मौत के मामले में दर्ज एफआईआर और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तलब कर ली है। कोर्ट ने राज्य सरकार से घायलों की मेडिकल रिपोर्ट और हिंसा में घायल पुलिसकर्मियों का भी ब्यौरा मांगा है।

कोर्ट ने मृतकों के परिजन को पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने का निर्देश सरकार को दिया है। देश में CAA लागू होने के बाद यूपी के कई शहरों में हुई हिंसा को लेकर दाखिल सभी याचिकाओं पर सोमवार 27 जनवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक साथ सुनवाई हुई। कोर्ट ने यूपी सरकार से मृतकों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के साथ ही पुलिसकर्मियों की मेडिकल ट्रीटमेंट की भी जानकारी तलब की है।

याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से हलफनामे के साथ जवाब दाखिल किया गया। राज्य सरकार की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे पर कोर्ट पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिखी। चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर व जस्टिस श्री सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कई बिन्दुओं पर राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा को लेकर कितनी शिकायतें प्रदर्शनकारियों की ओर से अब तक की गई हैं और कितनी शिकायतों पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है?

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खंडपीठ ने यह भी पूछा है कि प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए की गई कार्रवाई में कितने पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की गई है। हिंसा में मारे गए 23 प्रदर्शनकारियों की मौत के मामले में दर्ज एफआईआर और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी तलब कर ली है। राज्य सरकार से घायलों की मेडिकल रिपोर्ट और हिंसा में घायल पुलिसकर्मियों का भी ब्यौरा मांगा। परिजनों को हिंसा में मारे गये लोगों की पीएम रिपोर्ट देने का निर्देश सरकार को दिया है।

सके साथ ही खंडपीठ ने उस वक्त प्रदेश में धारा 144 लगाए जाने की पूरी प्रक्रिया की भी जानकारी मांगी है। याचिकाओं में मीडिया रिपोर्ट के हवाले से पुलिस की बर्बरता का आरोप लगाया गया है। जिस पर राज्य सरकार की ओर से सभी मीडिया रिपोर्ट को नकारते हुए झूठा बताया गया। कोर्ट ने राज्य सरकार से सवाल किया कि आखिर कोर्ट यह कैसे मान सकती है कि सभी मीडिया रिपोर्ट झूठी हैं और सरकार ही सच बोल रही है। अब इन सभी अर्जियों पर अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी।

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस उत्पीड़न की शिकायतों पर सरकार ने क्या कार्रवाई की है। खंडपीठ ने जानना चाहा है कि विभिन्न समूहों और संगठनों द्वारा की गई शिकायतों के आधार पर पुलिस वालों और प्रशासनिक अधिकारियों पर कितने मुकदमे दर्ज किए गए। यदि नहीं किए गए तो क्यों।खंडपीठ ने अगली सुनवाई पर पूरा ब्योरा मांगा है।

कोर्ट ने यह भी जानना चाहा है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान कितने लोग मरे या घायल हुए। पुलिस के खिलाफ कितनी शिकायतें दर्ज की गईं। घायलों के इलाज के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। मीडिया में प्रकाशित हो रही खबरों की सत्यता की जांच की गई या नहीं।खंडपीठ ने राज्य सरकार को 17 फरवरी तक पूरे ब्योरे के साथ हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

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हाईकोर्ट में मुंबई के वकील अजय कुमार के ईमेल पर कायम पीआईएल और पीएफआई संगठन की ओर से दाखिल की गई याचिका समेत कुल 14 अर्जियों पर हाई कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इन याचिकाओं में पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए सीएए के विरोध को लेकर हुई हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की गई है। याचिका में पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की गई है। घटना की जांच हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश या एसआईटी से कराने और पुलिस कार्रवाई में घायल हुए लोगों का इलाज कराने की मांग की गई है।

की मोदी सरकार ने सरकार की तरफ से कहा गया कि केंद्रीय सुरक्षा बल योगी सरकार के बुलाने पर यूपी में भेजी गयी। कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए उचित कार्रवाई की गई है। वहीं योगी सरकार का कहना था कि विरोध प्रदर्शन में हुई हिंसा में भारी संख्या में पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं। पुलिस पर फायरिंग की गई। प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ और आगजनी कर सरकारी तथा व्यक्तिगत संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसकी विवेचना की जा रही है। व्यक्तिगत रूप से किसी ने पुलिस के खिलाफ शिकायत नहीं की है। इस पर याची पक्ष के वकीलों का कहना था कि लोग डर के मारे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।

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स बीच कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के दौरान पुलिस द्वारा कथित तौर पर की गई बर्बरता के खिलाफ सोमवार 27 जनवरी को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचे और उचित करवाई की मांग की। कांग्रेस नेताओं ने यूपी पुलिस की कथित ज्यादतियों से संबंधित एक विस्तृत रिपोर्ट व कुछ विडियो क्लिप व फोटो भी आयोग को सौंपे। इनमें दावा किया गया है कि यूपी पुलिस ने CAA के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों पर तरह-तरह के जुल्म किए थे।

योग के सदस्‍यों से मिलने के बाद राहुल ने कहा कि भारत ऐसा देश नहीं बन सकता, जहां खुद सरकार जनता के ऊपर अत्‍याचार करे। हमने मानवाधिकार आयोग के सामने जो सबूत पेश किए हैं, अगर उनकी जांच हो तो पता चल जाएगा कि यूपी में बहुत गलत हुआ है। कांग्रेस ने यूपी पुलिस के साथ काम करने वाले पुलिस मित्रों पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ जबर्दस्‍त बल प्रदर्शन का भी आरोप लगाया।

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स मामले में राहुल ने कहा कि देशभर में यह व्‍यवस्थित तरीके से किया जा रहा है। वे लोगों पर अत्‍याचार करने के लिए पुलिस मित्रों की भर्ती कर रहे हैं। जो कुछ भी हो रहा है वह देश और संविधान की भूल भावना के खिलाफ है।कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि यूपी में पुलिस मित्र के तौर पर संघ व बीजेपी के लोगों की भर्ती हुई हैं, जिन्होंने इन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ जमकर बलप्रयोग किया। कांग्रेस ने तंज करते हुए कहा कि वास्तव में ये मित्र पुलिस के दोस्‍त और जनता के विरोधी हैं।

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हीं कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हमने यूपी में पुलिस की ज्यादतियों पर एक विस्तृत रिपोर्ट के साथ दस्तावेजों के तीन पुलिंदे व वीडियो क्लिप सौपीं हैं। इनमें ज्यादतियों की फोटो, विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में मारे गए लोगों के नाम जैसी तमाम जानकारियां शामिल हैं।

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