डीयू का एडमिशन बुलेटिन जिस लूट को कर रहा उजागर वास्तविकता उससे कहीं ज्यादा वीभत्स

Update: 2018-06-23 17:40 GMT

सुरसा की तरह मुंह फाड़ती दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों की फीस मामले में अफसरों से झूठ बोलते कॉलेज और क्यों चुप्पी साधे हुए हैं छात्र, शिक्षक, कर्मचारी, नेता

दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक रवींद्र गोयल कर रहे हैं डीयू में फीस के नाम पर मची लूट को उजागर

दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा ज़ारी किये गए एडमिशन बुलेटिन 2018-19 में बताया गया है कि DU में BA दाखिले के लिये सबसे कम फीस 3046 रुपये सालाना है, तो अधिकतम फीस 38105 रुपये सालाना है। बाकि कॉलेज इन दो सीमाओं के भीतर फीस वसूलते हैं।

अब जब दाखिले की प्रक्रिया शुरू हुई तो पता चला कुछ कॉलेजों के मामले में बुलेटिन में बताई गयी फीस सच नहीं है। वो सरासर झूठ है। वास्तविकता और भी वीभत्स है। कुछ कॉलेजों के आंकड़े आये हैं, जिन्हें देखने से पता चलता है कि वास्तविक फीस बतायी गयी राशी से कहीं ज्यादा है।

कालेज

बुलेटिन में फीस

वास्तविक फीस

बढ़ोतरी

दीन दयाल उपाध्याय कालेज

Humanities stream

11460

15610

Ø 36%

दीन दयाल उपाध्याय कालेज

B mgt. studies

14460

18610

Ø 28%

श्यामा प्रसाद मुख़र्जी कालेज

BA (Hons) Applied Psychology

4490

9885

Ø 120%

दयाल सिंह कालेज

(कुछ शिक्षकों के अनुसार)

Ø 50% over last year

तय है इन कॉलेजों के और कोर्सेज तथा और कॉलेजों में भी यही स्थिति होगी। फीस किन कारणों की वजह से बढ़ायी गयी है, उसकी एक बानगी के तौर पर दयाल सिंह कॉलेज के एक अध्यापक प्रेमेन्द्र कुमार परिहार बताते हैं, “हमारे यहाँ गार्डन शुल्क 25 रुपये से बढ़ाकर 300 रुपये कर दिया गया है, वार्षिक शुल्क 30 रुपये से 300 रुपये और खेल शुल्क 600 रुपये से 1500 रुपये कर दिया गया है।”

ये बेतहाशा बढ़ी फीस किस मानवीय त्रासदी का सबब बनती है, उसके उदहारण स्वरुप देखिये एक अध्यापक दीपक भास्कर का निम्न तज़रबा जो उन्हें इस साल दाखिले के दौरान हुआ, “दो बच्चों ने आज ही एडमिशन लिया और जब उन्होंने फीस लगभग 16000 और होस्टल फीस लगभग 120000 सुना तो एडमिशन कैंसिल करने को कहा।

गार्जियन ने लगभग पैर पकड़ते हुए कहा कि ‘सर मजदूर हैं राजस्थान से। सुना था कि JNU की फीस कम है, उसी से सोच लिए थे कि डीयू में भी कम होगी। हमने सोचा कि सरकारी कॉलेज है तो फीस कम होगी, होस्टल की सुविधा होगी सस्ते में, इसलिए आ गए थे।’ इन दो बच्चों में एक बच्चा हिन्दू और दूसरा मुसलमान था, दोनों ओबीसी। लगभग ऐसे कई बच्चे डीयू के तमाम कॉलेजों में एड्मिसन कैंसिल कराते होंगे”

इसी तर्ज़ पर जाकिर हुसैन कालेज के एक भूतपूर्व छात्र, अशरफ रेज़ा बताते हैं, जब मैं 2005 में बिहार से दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने के लिए आया था तब मुझे जाकिर हुसैन कॉलेज में प्रवेश मिला। 2 साल मैं कॉलेज के छात्रावास में रहा, उस समय छात्रावास प्रवेश शुल्क 8500 रुपये था और भोजन के लिये शुल्क था प्रतिमाह लगभग 1300 रुपये।

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रों से फीस लेता है या हफ्तावसूली करता है

फिर 2 साल पूरे होने के बाद हॉस्टल प्रवेश शुल्क 8500 से 25000 रुपये तथा भोजन शुल्क 1300 से 2000 प्रतिमाह कर दिया गया। वह राशि मेरे और मेरे कमरे के साथी जफर के लिए देना संभव न था, क्योंकि हम कमजोर वर्ग से हैं। हमने प्रिंसिपल साहब से बात की, लेकिन नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। छात्रावास खाली करना पड़ा। अनजान शहर अनजान लोग जायें तो कहाँ जायें, हम 2 महीने कमला मार्किट के पास मस्जिद में सोये। उसके बाद हमने जीबी रोड के पीछे एक कमरा किराए पर लिया, किराया था प्रतिमाह 1500 रुपये।

हाँ, यह पता चला है कि सत्यवती कॉलेज (संध्या) में फीस 300 रुपये प्रति छात्र कम की गयी है। पहले फीस 8095 रुपये प्रतिवर्ष थी, लेकिन इस बार 7795 रुपये प्रतिवर्ष है। मैं उस कॉलेज के शिक्षकों और प्रशासन को इसके लिए बधाई देता हूँ।

दुःख की बात तो यह है कि इन सवालों पर प्रगतिशील शिक्षक/ शिक्षक नेता या छात्र नेता चुप हैं। इस चुप्पी को देख कैफ़ी याद आते हैं। उन्होंने सही ही कहा था,

कोई तो सूद चुकाए कोई तो ज़िम्मा ले

उस इंक़लाब का जो आज तक उधार सा है

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