हिंदी साहित्य के प्रेमचंद के बाद की पीढ़ी है, उसमें सबसे प्रतिभाशाली अगर किसी साहित्यकार का नाम होगा, वह दूधनाथ सिंह है...
जनज्वार। 'सिर्फ एक कहानीकार या उपन्यासकार के रूप में दूधनाथ सिंह की चर्चा करना उनके साथ नाइंसाफी है। सही मायनों में तो वे एक बहुत बड़े आलोचक थे और जब आप यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि वह बहुत बड़े आलोचक थे तभी लगता है कि वह बहुत बड़े संपादक थे बहुत बड़े संस्मरण लेखक थे। उनको किसी खांचे में फिट कर पाना जो साहित्य के मानदंड है या साहित्य की विधाओं में बन पाना बहुत कठिन है।'
बाँदा जिला सहकारी संघ में बने कवि केदार सभागार में बोलते हुए जलेस के राज्यसचिव नलिन रंजन सिंह ने कहा कि दूधनाथ सिंह अपनी प्रतिभा से चकित करते हैं। मुझे लगता है कि हिंदी साहित्य के प्रेमचंद के बाद की पीढ़ी है, उसमें सबसे प्रतिभाशाली अगर किसी साहित्यकार का नाम होगा, वह दूधनाथ सिंह है। एक इंद्रधनुषी रंग है उनके साहित्य में।
बाँदा में दूधनाथ जी की पुण्यतिथि (स्मृति दिवस) 12 जनवरी पर उन्हें याद करने के लिए जलेस के संयोजकत्व में एक अच्छी गोष्ठी हुई। दूधनाथ जी के लेखन पर दो युवा आलोचकों ने मन से गुरु के लिखत-पढ़त की चर्चा की। यहां के कई वरिष्ठ लेखकों और साहित्यप्रेमियों ने दोनों को एकाग्र होकर सुना और सराहा।
कथाकार के रूप में दूधनाथ जी की विशिष्टताओं पर बोलते हुए डॉ शशि भूषण मिश्रा ने अपने व्यवस्थित वक्तव्य में कहा कि दूधनाथ जी साठोत्तरी कथा की उपलब्धि हैं। उन्होंने साठोत्तरी कथा के भीतर रहते हुए उसका अतिक्रमण भी किया। अपने समकालीनों में भाषा का जो जीवंत तेवर और कहन का जो ठसकपना उनकी कहानियों में जो मौजूद है वह विरल है। उनकी कहानी का मूर्तिभंजक तेवर हमारी पूरी कथापरम्परा का एक नया बिंदु है।
उनके उत्तरार्ध दौर की कहानियों में 'नपनी' कहानी को इस रूप में उल्लेखनीय माना जाना चाहिए कि वह हमारी पारंपरिक पारिवारिक व्यवस्था के भीतर विवाह की समूची प्रक्रिया को प्रश्नांकित करती है, इसे वामपंथी जीवनशैली के साथ स्त्री के भीतर पनप रहे नए आत्मविश्वास के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।
इसके पूर्व दूधनाथ जी के विद्यार्थी रहे सुधीर सिंह ने उनकी 'नपनी' कहानी और डायरी के अप्रकाशित अंशों का पाठ किया।जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि केशव तिवारी ने की और दूधनाथ जी की कविताओं का उल्लेख किया।
कार्यक्रम में डॉ चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित, रणवीर सिंह चौहान, आनन्द सिन्हा, बाबूलाल गुप्त, राम विशाल सिंह,डॉ राम गोपाल गुप्त, प्रेम सिंह, डॉ अंकिता तिवारी, अरुण खरे,विमल पाण्डेय, विजय शंकर परमार प्रमुख थे। प्रारम्भ में इलाहाबाद के धर्मेंद्र यादव ने केदार जी के गीत को गाकर शुरुआत की।