एक तरफ बर्बाद बस्तियाँ एक तरफ हो तुम

Update: 2019-07-26 07:12 GMT

ख्यात रंगकर्मी, लोकविद, राज्य आंदोलनकारी और जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' की प्रसिद्ध कविता

एक तरफ बर्बाद बस्तियाँ – एक तरफ हो तुम।

एक तरफ डूबती कश्तियाँ – एक तरफ हो तुम।

एक तरफ हैं सूखी नदियाँ – एक तरफ हो तुम।

एक तरफ है प्यासी दुनियाँ – एक तरफ हो तुम।

अजी वाह! क्या बात तुम्हारी,

तुम तो पानी के व्योपारी,

खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी,

बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी,

सारा पानी चूस रहे हो,

नदी-समन्दर लूट रहे हो,

गंगा-यमुना की छाती पर

कंकड़-पत्थर कूट रहे हो,

उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी,

चलेगी कब तक ये मनमर्जी,

जिस दिन डोलगी ये धरती,

सर से निकलेगी सब मस्ती,

महल-चौबारे बह जायेंगे

खाली रौखड़ रह जायेंगे

बूँद-बूँद को तरसोगे जब -

बोल व्योपारी – तब क्या होगा?

नगद – उधारी – तब क्या होगा??

गिरीश तिवारी 'गिर्दा'

आज भले ही मौज उड़ा लो,

नदियों को प्यासा तड़पा लो,

गंगा को कीचड़ कर डालो,

लेकिन डोलेगी जब धरती – बोल व्योपारी – तब क्या होगा?

वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी – तब क्या होगा ?

योजनकारी – तब क्या होगा ?

नगद-उधारी तब क्या होगा ?

एक तरफ हैं सूखी नदियाँ – एक तरफ हो तुम।

एक तरफ है प्यासी दुनियाँ – एक तरफ हो तुम।

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