फैक्ट फाइंडिंग टीम का आरोप मुजफ्फरनगर हिंसा के गवाह को मारने की थी साजिश

Update: 2019-06-21 13:09 GMT

प्रतिनिधिमंडल ने सफीपुर पट्टी की दंगा पीड़ित बस्ती बुढ़ाना में इकराम के परिजनों से की मुलाकात, कहा भाजपा विधायक उमेश मलिक की सरपरस्ती में सांप्रदायिक हिंसा के गवाहों पर बनाया जा रहा है दबाव

लखनऊ। मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के गवाह इकराम पर किए गए कथित पुलिस के जानलेवा हमले के बाद सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने सफीपुर पट्टी की दंगा पीड़ित बस्ती बुढ़ाना में परिजनों से मुलाकात की। फैक्ट फाइंडिंग टीम में इलाहाबाद हाईकोर्ट अधिवक्ता संतोष सिंह, रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, बाकेलाल यादव और स्थानीय अफकार इंडिया फाउंडेशन के रिजवान सैफी, नदीम खान, अस्तित्व सामाजिक संस्था के कोपिन और कविता शामिल रहीं।

प्रतिनिधि मंडल को इकराम की पत्नी हसीना ने बताया कि उस घटना के बाद से वह छह बेटियों और दो बेटों के साथ बहुत असुरक्षित महसूस कर रही हैं। उन्हें डर है कि कब पुलिस आ जाए। उन्होंने बताया कि 17 जून को शाम लगभग 5 बजे तीन पुलिस वाले दोबारा आयी। कहा कि वे पुलिस पर हुए हमले की जांच करने आए हैं। इकराम की पत्नी ने कहा कि उनके पति पर गोलियां पुलिस ने चलायीं, उनके कपड़े फाड़े और अब कह रहे हैं कि पुलिस पर हमला किया।

इकराम की बेटी सलमा बताती हैं कि उसके पिता और दादा मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा मामले में गवाह हैं और उन पर लगातार गवाही बदलने का दबाव बनाया जा रहा था। उस दिन (12 जून) सादे ड्रेस में एक आदमी आया और पापा को पूछते हुए घर में घुस गया। मोहल्ले में नूर हसन के यहां वलीमा था। बहुत से मिलने-जुलने वाले भी घर आए थे। पापा ऊपर वाले कमरे में थे। ऊपर से वो पापा को खींचकर लाने लगा तो अफरा-तफरी का माहौल हो गया। हम सब बहनें रोने लगीं और अपने पापा को ले जाने का कारण पूछने लगीं तो पुलिस वाले हमें भी मारने-पीटने लगे।

यह पूछने पर कि कोई महिला पुलिस थी तो सलमा ने ‘नहीं’ में जवाब दिया और साथ ही यह भी बताया कि पुलिस वाले महिलाओं तक को मार रहे थे। उन्होंने बताया कि उनकी अम्मी और उन लोगों ने जब विरोध किया तो पुलिस वालों ने उनके कपड़े तक फाड़ दिए। 60 वर्षीय बुजुर्ग महिला हसीना के पैर और उनकी बहन रुबीना के गर्दन में आज भी चोटों के जख्म साफ—साफ देखे जा सकते हैं। इसके बाद पुलिस वाले उनके पिता को जबरन ले जाने लगे। जब उन्होंने विरोध किया तो गोलियां भी चलायीं जिसमें एक गोली तो ऐसे मारी जैसे उनको पकड़ना तो केवल बहाना था, वे तो पापा को मारने के लिए ही आए थे। सलमा ने रोते हुए बताया कि 25 जून को उसकी शादी है और पुलिस वालों ने तो हमारे घर में गम का माहौल पैदा कर दिया है।

इकराम के पिता नफेदिन बताते हैं कि वे रहीसू की हत्या का गवाह है और 24 जून को अदालत में उनकी गवाही है। इसलिए उन पर पिछले पांच-सात महीने से बहुत दबाव बनाया जा रहा है। करन, मदन, प्रवीण, फेरु, विक्की आरोपियों का नाम लेते हुए कहते हैं कि ये सब विधायक उमेश मलिक के आदमी हैं। किसे मालूम था कि वह पुलिस वाले हैं जो सादी वर्दी में आए और घर में घुस गए। घर में कोई बदमाश छिपाए होते तो थोड़े कोई इस तरह जाने देता। पुलिस वाले जब इकराम को नहीं ले जा पाए तो उन लोगों ने यह कहानी बनाई। वो तो मेरे बेटे को उस दिन मार ही देते।

मोहल्ले वाले प्रतिनिधिमंडल से हुई बातचीत में बताते हैं, सादी वर्दी वाला नितिन सिपाही था जिसके साथ तीन मोटर साइकिल पर लोग आए थे। थोड़ी ही देर में एक बोलेरो और दो जीप भी आ गयी। रहीसू हत्याकांड मामले में शमशेर भी उनके साथ एक गवाह हैं। उन पर भी लगातार दबाव है। वो बताते हैं कि आरोपी पक्ष ने साढ़े चार लाख रुपए देकर अन्य गवाहों को अपने पक्ष में कर लिया है जिनमें अफरोज, प्रवीन और यहां तक कि रहीसू का लड़का हनीफ भी शामिल है।

रहीसू हत्याकांड मामले के अहम गवाह शमशेर उस दिन इकराम के साथ हुई घटना की बात करते हुए कहते हैं कि करन ने छह लाख रुपए तक गवाही बदलने पर देने को कहा। ये लोग लगातार सर्दियों से उन पर दबाव बना रहे हैं। इस घटना के पन्द्रह-बीस दिन पहले भी सुरेश और रहीसू का बेटा हनीफ आए थे। दो महीने से इनका दबाव बहुत बढ़ गया है। वे बताते हैं कि करन, सुरेश, भूरा, फेरु, विक्की, मदन, संहसर, प्रवीण, श्यामत ये सभी दो-दो, तीन-तीन साल तो कोई छह महीना जेल काटकर निकले हैं।

इकराम और उनके भाई आदिल भी फेरी के काम से परिवार पालते रहे हैं। सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों के इस मोहल्ले में मुहम्मदपुर रायसिंह, खेड़ा, फुगाना और अन्य जगहों से सांप्रदायिक तत्वों के डर-भय से विस्थापित साठ-सत्तर परिवारों का बसेरा है।

प्रतिनिधि मंडल के मुताबिक ग्राम मुहम्मदपुर रायसिंह थाना भौराकलां में 8 सितंबर, 2013 को हुई सांप्रदायिक हिंसा में रहीसुद्दीन पुत्र कपूरा की हत्या हो गई थी, जिसके गवाह इकराम के पिता नफेदीन हैं। इकराम सहित कई लागों के घरों में आगजनी हुई थी, जिसको लेकर मुकदमा दर्ज हुआ था।

फैक्ट फाइंडिंग टीम को पीड़ित लोगों ने बताया कि इस घटना के बाबत स्पेशल टीम ने जांच की थी, जिसके बाद फेरु, करन, संहसर, मदन, प्रवीण, विजय, संजीव, विनोद, प्रवीण आदि को आरोपी बनाया गया था। इस मुकदमे में इकराम की गवाही होनी है जिसको लेकर सुरेश, विक्की और अन्य इकराम पर छह-सात महीने से अपने पक्ष में गवाही देने का दबाव बना रहे थे। सुरेश और अन्य 10 जून 2019 को लगभग 10 बजे सुबह इकराम के घर आए और समझौते के लिए दबाव बनाने लगे। सुरेश का कहना था कि विधायक उमेश मलिक के मन मुताबिक फैसला कर लो, तुमको छह लाख रुपए मिलेगा, लेकिन गवाही दोगे तो तुम्हारा इनकाउंटर करा दिया जाएगा। इकराम लालच और धमकी के सामने नहीं झुके।

प्रतिनिधिमंडल का कहना है कि हमें अपनी जांच में पता चला, राजनीतिक संरक्षण प्राप्त आरोपियों के हौसले बुलंद थे। 12 जून 2019 को दोपहर बाद करीब ढाई बजे इकराम घर में मेहमानों के साथ बैठा था कि एक व्यक्ति आया और उसने पूछा कि इकराम कौन है। इकराम की पहचान होते ही वह उन्हें घसीटते हुए ऊपर से नीचे की ओर ले आया। तब तक आठ-दस पुलिसकर्मी और आ गए थे। उन लोगों ने कहा कि थाने चलो, सीओ साहब ने बुलाया है। इनमें बुढ़ाना थाने के सिपाही नितिन, सतीश, शिवकुमार व दरोगा ओमकार पाण्डेय व अन्य शामिल थे। इकराम को वे जबरदस्ती थाने ले जाने लगे, जबकि उनके पास कोई वारंट नहीं था।

इकराम की पत्नी हाजरा, लड़कियां गुलफशा, रुबी, सलमा, आशमा छुड़ाने लगीं तो उनको डंडों, लात मुक्कों से मारा। इकराम बहुत डरा हुआ था। पुलिस से जान बचाने की कोशिश की तो सामने से एक पुलिसकर्मी ने गोली चला दी। इकराम तुरंत जमीन पर लेट गया और गोली से बच गया। फिर पुलिस द्वारा दो और हवाई फायर किए गए और फिर राइफल के कुंदे से मारा।

इकराम की पत्नी ने पति को पिटता देख उसे बचाने की कोशिश की तो उसे और उसकी बेटियों तक को मारा। पुलिसवालों ने उसकी पत्नी के कपड़े तक फाड़ दिए। आस-पड़ोस के काफी लोग इकट्ठा हो गए, पर पुलिस कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। पुलिस इलियास उर्फ मिंटू और इंतजार फौजी को पीटते हुए थाने ले गई और बिना कसूर के हवालात में बंद कर दिया। थाने पर आम जनता ने पहुंचकर निर्दोषों को छोड़ने की मांग की तो रात आठ बजे के करीब उन्हें छोड़ा।

प्रतिनिधिमंडल का कहना है हमें पीड़ितों ने बताया कि पुलिस थाना बुढ़ाना पर सत्ता पक्ष का दबाव साफ-साफ दिखा जो मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के आरोपियों को बचाने के लिए किसी भी हद तक उतरने पर उतारू दिखी। जो लोग दंगे के बाद अपना घर-गांव छोड़ने को विवश हुए, एक बार फिर राजनीतिक बदले की भावना से भरे पुलिसिया हिंसा का शिकार हो रहे हैं। पुलिस अपने ऊपर उठ रहे सवालों से बचने के लिए कह रही है कि वो वहां बदमाश को पकड़ने गई थी।

सवाल उठता है कि इकराम पर पुलिस ने फायरिंग क्यों की। सादी वर्दी में इकराम को मारते-पीटते पुलिस का जो वीडियो सामने आया है, उसे देख कोई भी कह सकता है कि पुलिस इकराम का इनकाउंटर करने आई थी। अपने बचाव में पुलिस ने यह कहानी गढ़ी कि वो राजा नाम के किसी बदमाश को पकड़ने के लिए गयी थी, जिसे इकराम ने सरंक्षण दिया था। ऐसे में पुलिस ने उसको भगाने के एवज में इकराम को निशाना बनाया।

फैक्ट फाइंडिंग टीम के मुताबिक ऐसा करके पुलिस यूपी में हो रही फर्जी मुठभेड़ों में एक और मुठभेड़ को न सिर्फ शामिल करती, बल्कि मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के आरोपी भाजपा विधायक उमेश मलिक के समर्थकों की गर्दन कानून के हाथों से छुड़ा लेती। अगर ऐसा नहीं था तो क्यों पुलिस बार-बार वीडियो में भी कह रही है कि सीओ साहब बुला रहे हैं।

किसी को बिना वारंट के उठाने में सीओ साहब की इतनी दिलचस्पी क्यों थी कि उसके ऊपर तीन-तीन गोलियां चलाई गईं। अगर कोई अप्रिय घटना हो जाती तो उसका दोषी सीओ साहब और उनके कहने पर आए पुलिसकर्मी नहीं होते। प्रतिनिधिमंडल ने मांग की है कि इस आपराधिक घटना के दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कारवाई की जाए।

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