फोटो फीचर : कोरोना लॉकडाउन के बीच संकट में कश्मीर में खानाबदोशों की जिंदगी

Update: 2020-06-04 01:30 GMT

कोरोना लॉकडाउन के कारण कश्मीर के अपनी-अपनी जगहों पर सामान के साथ फंसे खानाबदोश परिवार, न पर्यटक आ रहे- न प्रवासी, आजीविका का संकट भी खड़ा हुआ सामने...

कश्मीर से फैजान मीर की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। वसंत आने के साथ ही कश्मीर में प्रकृति का नजारा और भी खूबसूरत हो गया है। लेकिन इन सबके बीच जो चीज गायब हैं वो हैं पर्यटक और प्रवासी। कोरोना वायरस संकट ने कारण स्थानीय व्यवसायी पर्यटकों का इंतजार कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन के कारण खानाबदोश की जिंदगी जीने वाले लोगों के लिए स्थिति और खराब हो गई है। इन खानाबदोशों के लिए जीवन और कठिन हो गया है।

फोटो : फैजान मीर/ जनज्वार

ये स्थानीय लोग अपने खानाबदोश घरों में अपने सामानों के साथ फंस गए हैं और सभी इस कोरोना महामारी के खत्म होने की दुआ कर रहे हैं।

फोटो : फैजान मीर/ जनज्वार

फिजिकल डिस्टेंसिंग कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए जरूरी है, लेकिन इसने आम लोगों के लिए संकट खड़ा कर दिया है। वहीं केंद्रशासित प्रदेश की सरकार और केंद्र सरकार की ओर से बड़ी बड़ी घोषणाओं के बाद भी यहां के अधिकांश लोगों को कुछ मदद नहीं मिली है।

फोटो : फैजान मीर/ जनज्वार

लॉकडाउन से पहले पर्यटक इन जगहों पर आते थे तो लोगों का रोजगार बना रहता था और वे कुछ पैसा कमा लेते थे। वहीं दूसरी ओर सरकार की ओर से जो राहत सामग्री वितरित हो रही है वो आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। सरकार की ओर से इसकी भी जांच नहीं हो रही है कि जरूरतमंद को मदद मिल पा रही है या नहीं।

फोटो : फैजान मीर/ जनज्वार

लॉकडाउन के कारण सड़कें अवरूद्ध हैं, कोई भी गांव से बाहर नहीं जा पा रहा है। वहीं बाहरी लोगों को भी यहां आने की अनुमति नहीं है। इन खानाबदोश परिवारों का कोई सहारा नहीं है, इनके लिए सरकार की ओर से कोई योजना भी नहीं है। बता दें कि अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद से कश्मीर में लॉकडाउन है। वहीं कोरोना महामारी के बाद आम लोगों का संकट और बढ़ गया है।

फोटो : फैजान मीर/ जनज्वार

ब जनज्वार संवाददाता ने जानना चाहता कि महामारी में कैसे जी रहे हैं, आजीविका कैसे चल रही है तो 24 वर्षीय फैयाज अहमद भावुक हो गए। वो बताते हैं, इस तालाबंदी के कारण कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। बेशक लॉकडाउसन वायरस के प्रकोप को रोकने के लिए सराहनीय और अच्छा कदम है लेकिन हम यहां बहुत सारी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। सरकार ने हमारी मदद करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। सरकार दावों और वादों में बिजी है, मगर इसके पीड़ित हम आम लोग हैं। हमें अभी तक सरकार की तरफ से किसी तरह की कोई सहायता नहीं मिली है। सरकार की तरफ से अब तक चावल और दाल वितरित किए गये हैं, मगर इसका फायदा सिर्फ 3 फीसदी लोगों को मिला है। हम खादाबदोशों की 97% आबादी कठिन परिस्थितियों का सामना कर रही है। हमें सरकारी मदद की सख्त दरकार है।

खानाबदोश मोहम्मद इस्साक लॉकडाउन के बाद की स्थितियों के बारे में बताते हैं, "मैं चाय बनाने जैसे साधारण काम से अपनी रोजी-रोटी चला रहा था। इससे छोटी-मोटी जरूरतें भी पूरी कर ले थे, कुछ कमाई घोड़ों से हो जाती थी। यहां जो पर्यटक आते थे वे घुड़सवारी करते थे। इससे हमारी आजीविका चल जाती थी, मगर अब स्थिति पूरी तरह से अलग है। अब हमारे पास लॉकडाउन के कारण यहां कुछ भी नहीं है। हमारी देखभाल करने के लिए कोई नहीं है। हम दूरदराज के क्षेत्रों से हैं। कोई भी हमें देखने के लिए आना पसंद नहीं करता है। हमारे पास पैसे कमाने का कोई जरिया नहीं है, भूखों मरने की हालत आ चुकी है।

खानाबदोश महिला फातिमा कहती हैं, "हमारे पास खाने का सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं बचे हैं। भोजन की अनुपलब्धता के कारण हम यहाँ भूखे रह रहे हैं। हम पिछले महीने से चावल का आटा खा रहे हैं। हम लॉकडाउन के कारण बाहर नहीं जा पा रहे हैं। सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर रही है। ऐसी स्थितियों में हमारे हालात भुखमरी जैसे हो जायेंगे।

कोरोना के बाद हुए लॉकडाउन से जहां देश के अलग—अलग हिस्सों में जनता भूखों मरने की हालत में है, वहीं सरकार सिर्फ वादे और भाषणों में व्यस्त है। आखिर भाषण और वादों से तो पेट नहीं भरता।

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