असम की स्थानीय 'मियां बोली' में लिखने वाले कवि हफीज अहमद समेत 10 कवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सलीम एम हुसैन, रेहाना सुल्ताना, अब्दुल रहीम, अशरफुल हुसैन, अब्दुल कलाम आजाद, काजी सरवर हुसैन, करिश्मा हजारिका, बाना मल्लिका चौधुरी और फोरहाद भुयान पर कविता लिखने, शेयर करने और उस पर टिप्पणी करने के आरोप में दर्ज हुआ मुकदमा...
जनज्वार। देश में बात-बात पर मुकदमा दर्ज होने में एक और इजाफा हुआ है और अब देश के पूर्वी राज्य असम से सूचना मिली है कि राजधानी गुवाहाटी में दस कवियों, लेखकों और विद्यार्थियों पर मुकदमा दर्ज हुआ है। मुकदमा दर्ज कराने वाले को चिंता है कि इनकी कविताओं और सोशल मीडिया पर इनके द्वारा प्रकाशित की जा रही टिप्पणियों से राष्ट्र कमजोर हो रहा है। यह मुकदमा कवि हफीज अहमद की कविता 'लिखो' को आधार बनाकर दर्ज किया गया है।
यह मुकदमा हफीज अहमद की असम की स्थानीय 'मियां बोली' में लिखी गई कविता 'लिखो' के आधार पर दर्ज किया गया है। जिन 10 कवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर मुकदमा दर्ज हुआ है उनमें हफीज अहमद समेत सलीम एम हुसैन, रेहाना सुल्ताना, अब्दुल रहीम, अशरफुल हुसैन, अब्दुल कलाम आजाद, काजी सरवर हुसैन, करिश्मा हजारिका, बाना मल्लिका चौधुरी और फोरहाद भुयान शामिल हैं।
इनमें से करिश्मा हजारिका गुवाहाटी विश्वविद्यालय में जूनियर फेलो और रेहाना सुल्ताना शोधार्थी हैं, जबकि अब्दुल कलाम आजाद सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने मीडिया से हुई बातचीत में कहा है कि क्या हमें अब अपनी तकलीफ लिखने का भी हक नहीं रहा।
गुवाहाटी के डिप्टी पुलिस कमिश्नर धर्मेंद्र कुमार दास के मुताबिक आईपीसी की धारा 420 और 406 समेत कॉपीराइट एक्ट 1957 में भी मुकदमा दर्ज हुआ है। उन्होंने कहा कि इस मामले में अभी किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। मुकदमा पत्रकार प्रनबजीत दोलोई की शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया है, जिन्होंने इन लोगों द्वारा लिखी कविताओं और फेसबुक-ट्वीटर पोस्टों को राष्ट्रविरोधी माना है।
प्रनबजीत दोलोई ने पुलिस को दिए अपनी शिकायत में हफीज अहमद की कविता 'लिखो' के हर्फ दर हर्फ कर जिक्र करते हुए बताया कि कैसे यह कविता राष्ट्रीय सुरक्षा और खासकर असम के संदर्भ में कितनी खतरनाक है। उनकी शिकायत है कि हफीज अहमद की कविता देश ही नहीं पूरा दुनिया में वायरल है, जो उन्होंने असम के नागरिकता विवाद भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर लिखी है।
आइये पढ़ते हैं हफीज अहमद द्वारा लिखी वो कविता, जिसे सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों से प्रसारित करने पर 10 कवियों-कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज कर दी गई है असम पुलिस द्वारा एफआईआर, यह कविता असम के एक हिस्से में बोली जाने वाली भाषा मिया बोली में लिखी गयी है, जिसे पत्रकार महताब आलम ने अपने फेसबुक पर अंग्रेजी में लगाया है और इसका अनुवाद लेखक चंदन पांडेय ने किया है :
लिखो
दर्ज करो कि
मैं मिया हूँ
नाराज* रजिस्टर ने मुझे 200543 नाम की क्रम संख्या बख्शी है
मेरी दो संतानें हैं
जो अगली गर्मियों तक
तीन हो जाएंगी,
क्या तुम उससे भी उसी शिद्दत से नफरत करोगे
जैसी मुझसे करते हो?
लिखो ना
मैं मिया हूँ
तुम्हारी भूख मिटे इसलिए
मैंने निर्जन और नशाबी इलाकों को
धान के लहलहाते खेतों में तब्दील किया,
मैं ईंट ढोता हूँ जिससे
तुम्हारी अटारियाँ खड़ी होती हैं,
तुम्हें आराम पहुँचे इसलिए
तुम्हारी कार चलाता हूँ,
तुम्हारी सेहत सलामत रहे इसलिए
तुम्हारे नाले साफ करता हूँ,
हर पल तुम्हारी चाकरी में लगा हूँ
और तुम हो कि तुम्हें इत्मिनान ही नहीं!
लिख लो,
मैं एक मिया हूँ,
लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, गणतंत्र का नागरिक
जिसके पास कोई अधिकार तक नहीं,
मेरी माँ को संदेहास्पद-मतदाता** का तमगा मिल गया है,
जबकि उसके माँ-बाप सम्मानित भारतीय हैं,
अपनी एक इच्छा-मात्र से तुम मेरी हत्या कर सकते हो, मुझे मेरे ही गाँव से निकाला दे सकते हो,
मेरी शस्य-स्यामला जमीन छीन सकते हो,
बिना किसी सजा के तुम्हारी गोलियाँ,
मेरा सीना छलनी कर सकती हैं.
यह भी दर्ज कर लो
मैं वही मिया हूँ
ब्रह्मपुत्र के किनारे बसा हुआ दरकिनार
तुम्हारी यातनाओं को जज्ब करने से
मेरा शरीर काला पड़ गया है,
मेरी आँखें अंगारों से लाल हो गई हैं.
सावधान!
गुस्से के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं
दूर रहो
वरना
भस्म हो जाओगे।
*नाराज रजिस्टर : नागरिकों की राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर
**संदेहास्पद मतदाता: डी वोटर