प्रयागराज विकास प्राधिकरण के भ्रष्टाचार के कारण बाढ़ की चपेट में 30 हजार परिवार
हाईकोर्ट की रोक के बाद भी कछारी क्षेत्र में लाखों अवैध भवनों का हुआ निर्माण, बाढ़ में फंसे 30 हजार परिवार...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
प्रयागराज आजकल भीषण बाढ़ की चपेट में है। गंगा और यमुना के साथ इनकी सहायक नदियां टोंस और ससुर खदेरी उफान पर हैं। गंगा-यमुना के उफान से शहर में बाढ़ के हालात काफी बिगड़ गए हैं। फाफामऊ में गंगा खतरे के निशान को पार गई है, वहीं यमुना लाल निशान के काफी करीब है। मंगलवार 17 सितंबर को पूरे दिन जलस्तर में बढ़ोतरी से बाढ़ की चपेट में हजारों परिवार आ गए हैं।
कछार के एक दर्जन से अधिक मोहल्लों के करीब 30 हजार घरों में पानी घुस गया है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? यदि इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का कड़ाई से अनुपालन किया जाता तो ऐसी स्थिति नहीं आती। गंगा और यमुना के कछारी क्षेत्रों में प्रयागराज विकास प्राधिकरण के अफसरों की धनउगाही से बड़े पैमाने पर रिहायशी बस्तियों का अवैध निर्माण हो रहा है, नगर निगम पैसा लेकर मकान नंबर देता है, जन प्रतिनिधि वोट के लिए सड़क गलियां और बिजली के ट्रांसफार्मर लगाये हैं तथा बिजली विभाग पैसे लेकर कबिजली के कनेक्शन देता है।
अब जब बाढ़ के पानी को फैलने से अतिक्रमण रोकेगा तो बस्तियाँ तो डूबेंगी ही। जानकारों का कहना है अवध निर्माण न होते तो अभी गंगा का जलस्तर कम से कम एक से डेढ़ मीटर नीचे होता।
गौरतलब है कि संख्या 4003/2006 में गंगा प्रदूषण मामले में 20 अप्रैल 2011 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सख्त आदेश पारित किया था कि कछारी क्षेत्र में गंगा एवं यमुना नदी के उच्चतम बाढ़ बिंदु से 500 मीटर के भीतर किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं होगी। गंगा और यमुना की बाढ़ इलाहाबाद में लगभग प्रति वर्ष आती है और यह आदेश जनता के बड़े हित में पारित किया गया था।
लेकिन यह चिंताजनक तथ्य है कि प्रशासन ने आदेश का पालन नहीं किया, विशेष रूप से इलाहाबाद विकास प्राधिकरण (प्रयागराज विकास प्राधिकरण) और नगर महापालिका ने दोनों नदियो के डूब क्षेत्र में 50000 से अधिक मानचित्रों को पारित किया है, जो घर के नंबर, गलियों, सड़कों और बिजली के ट्रांसफार्मरों तथा खंभों से भर गए हैं । इनमें अवैध धन उगाही से बिना मानचित्र पारित किये मकान बनवाये गए हैं।
अब यह प्रश्न है कि सरकारी अधिकारियों ने इस स्थिति को उत्पन्न करने की अनुमति क्यों दी है और उच्च न्यायालय के निर्देशों का खुला उललंघन क्यों किया है? इस मामले में न्यायमित्र अरुण गुप्ता एडवोकेट ने मांग की है कि सभी जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाय और उन्हें दंडित किया जाए।
गंगा-यमुना के उफान से शहर में बाढ़ के हालात काफी बिगड़ गए हैं। फाफामऊ में गंगा खतरे के निशान को पार गई है, वहीं यमुना लाल निशान के काफी करीब है। मंगलवार को पूरे दिन जलस्तर में बढ़ोतरी से बाढ़ की चपेट में हजारों परिवार आ गए हैं। लोग सामान समेट कर राहत शिविरों में पहुंचे हैं। हर घंटे बढ़ रहा नदियों का जल शहरवासियों के लिए आफत बना है।
एक दर्जन से अधिक मोहल्लों के करीब 30 हजार घरों में पानी घुस गया है। बिजली कटौती और पेयजल आपूर्ति ठप हैं। सड़क और गलियों में नावें चल रही हैं। ज्यादा प्रभावित मोहल्लों में द्रौपदी घाट, राजापुर, गंगानगर, नेवादा, ऊंचवागढ़ी, सरकुलर रोड का निचला हिस्सा, बेली कछार, मऊसरइयां, शंकरघाट, स्वामी सदानंद नगर, मेंहदौरी, छोटा बघाड़ा, बड़ा बघाड़ा, दारागंज, बक्शी कला, गऊघाट, करेलाबाग आदि शामिल हैं।
गौरतलब है कि जनवरी 2019 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि प्रयागराज में गंगा के अधिकतम बाढ़ बिंदु से 500 मीटर तक निर्माण पर रोक के आदेश के चलते स्थाई निर्माण नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा था कि यदि आदेश अब भी प्रभावी है तो प्रयागराज विकास प्राधिकरण उसका पालन करने के लिए बाध्य हैं। यह आदेश जस्टिस पीकेएस बघेल तथा जस्टिस प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने दारागंज निवासी भालचंद्र जोशी व दो अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था।
याची का कहना है गंगा प्रदूषण मामले में हाई कोर्ट ने 22 अप्रैल 2011 को गंगा से 500 मीटर के क्षेत्र में स्थाई निर्माण पर रोक लगा रखी है। इसके विपरीत अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध निर्माण किया जा रहा है। राज्य सरकार ने 24 अप्रैल 2018 का शासनादेश हाईकोर्ट में पेश किया, जिसमें सभी संस्थाओं और विभागों को अधिकतम बाढ़ जल स्तर के दृष्टिगत व नियमों, आदेशों का पालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है।
मगर अब यक्ष प्रश्न यह है कि कछारी क्षेत्रों में लाखों अवैध भवन निर्माण के किम्मेदार अफसरों पर क्या कार्रवाई होगी?