गंगा सफाई के लिए 111 दिन से अनशन पर बैठे जीडी अग्रवाल का निधन, सहयोगियों ने लगाया प्रशासन पर हत्या का आरोप
आईआईटी प्रोफेसर जीडी अग्रवाल गंगा एक्ट लागू करने की मांग को लेकर 111 दिन से मातृसदन आश्रम में बैठे हुए थे आमरण अनशन पर, अपनी मांगों की तरफ सरकार की बेरुखी के बाद लिया 9 अक्टूबर से जल भी त्यागने का निर्णय....
जनज्वार। गंगा एक्ट को लेकर 22 जून यानी 111 दिन से उत्तराखंंड के हरिद्वार में आमरण अनशन पर बैठे 86 वर्षीय प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का निधन हो गया है। अपनी मांगों को लेकर मौत से पहले यानी मंगलवार 9 अक्टूबर को उन्होंने अन्न के साथ—साथ जल भी त्याग दिया था। जल त्यागने के अगले दिन बुधवार 10 अक्टूबर की दोपहर को पुलिस प्रशासन ने प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ ज्ञानस्वरूप सानंद को जबरन स्वामी शिवानंद सरस्वती के हरिद्वार स्थित आश्रम मातृ सदन से उठाकर ऋषिकेश स्थित एम्स अस्पताल में भर्ती करवा दिया था।
गंगा सफाई के लिए 111 दिन से अनशन पर बैठे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल यानी स्वामी सानंद की मौत को उनके सहयोगियों ने हत्या करार दिया है। कहा है कि स्वामी सानंद की मौत के लिए केंद्र और राज्य में सत्तासीन भाजपा सरकार के अलावा प्रशासन भी बराबर का जिम्मेदार है।
कल 10 अक्टूबर की दोपहर को जब जिला प्रशासन द्वारा जीडी अग्रवाल को जबरन स्वामी शिवानंद सरस्वती के हरिद्वार स्थित आश्रम मातृ सदन से एम्स ऋषिकेश ले जाया गया तब जीडी अग्रवाल अधिकारियों से बाकायदा बहस करते रहे। हालांकि उन्होंने अनशन के 108वें दिन जल भी त्याग दिया था, पर जब कल 110वें दिन एम्म में भरती हुए तब उनके शरीर में सिर्फ पोटैशियम 3.5 के मुकाबले 1.7 था, जिसको वह डॉक्टरी सलाह पर लेने को तैयार हो गए। यह बात खुद जीडी अग्रवाल ने अपने हस्तलिखित एक पत्र में कही है।
आज 11 अक्टूबर की सुबह 6.45 बजे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने यह प्रेस विज्ञप्ति खुद जारी की थी, जिसमें वह बता रहे हैं उनका सिर्फ पोटैशियम लेवल कम है, फिर अचानक हुई उनकी मौत संदेह पैदा करती है।
ऐसे में 24 घंटे से भी कम समय बीतने से पहले हुई जीडी अग्रवाल की मौत को मातृ सदन के मुखिया स्वामी शिवानंद सरस्वती प्रशासन द्वारा की गयी हत्या बता रहे हैं। इससे पहले गंगा के लिए मातृ सदन के स्वामी नित्यानंद की भी जान जा चुकी है।
गौरतलब है कि स्वामी सानंद सिर्फ धार्मिक व्यक्ति नहीं हैं। संन्यास लेने से पहले वे प्रोफेसर गुरु दास अग्रवाल के रूप में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में अध्यापन व शोध कार्य कर चुके हैं व केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य-सचिव भी रह चुके हैं। प्रदूषण नियंत्रण के कई महत्वपूर्ण मानक उन्हीं के तय किए हुए हैं।
स्वामी सानंद का कहना था कि जैसे गंगा एक्शन प्लान में रुपए 500 करोड़ खर्च हो गए और गंगा पहले से ज्यादा प्रदूषित ही हुई है, वैसे ही नमामि गंगे परियोजना के रुपए 20,000 करोड़, जिसमें से रु. 7,000 करोड़ खर्च हो चुके हैं, भी खर्च हो जाएंगे और गंगा रत्ती भर भी साफ नहीं होगी, क्योंकि नमामि गंगे भी गंगा एक्शन प्लान की तर्ज पर ही चल रहा है।
उनके आंदोलनों के समर्थन में लगातार लिखते रहे सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय कहते हें, 'ताज्जुब की बात है कि हिंदू हितैषी बताई जाने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार स्वामी सानंद के अनशन को गम्भीरता से नहीं लिया और मीडिया भी ने भी, और यह मौत उसी का नतीजा है।'
वे आगे कहते हैं, 'नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का निर्णय लेते हुए घोषणा की थी कि उन्हें मां गंगा ने बुलाया है और प्रधानमंत्री बनने के बाद जल संसाधन मंत्रालय के नाम में ही गंगा संरक्षण को शामिल करा दिया, मानो देश में दूसरी नदियां ही न हों। क्या यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भारतीय संस्कृति है कि जैसे नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर अप्रासंगिक बना दिया है उसी तरह स्वामी सानंद जैसे विद्वान साधु को मरने के लिए छोड़ दिया गया? गाय बचाने की चिंता करने वाली इस सरकार के लिए एक वैज्ञानिक चिंतन वाले साधु की जान बचाना प्राथमिकता क्यों नहीं रही?'
गौरतलब है कि आईआईटी प्रोफेसर जीडी अग्रवाल गंगा एक्ट लागू करने की मांग को लेकर 22 जून से मातृसदन आश्रम में आमरण अनशन पर बैठे हुए थे। अपनी मांगों की तरफ सरकार की बेरुखी के बाद उन्होंने जल भी त्यागने का निर्णय लिया और 9 अक्टूबर से जल भी त्याग दिया था।
भाजपा सरकार की तरफ से दिखावे के लिए पिछले 4 महीनों से आमरण अनशन पर बैठे स्वामी सानंद का अनशन तुड़वाने की मात्र दिखावे की कोशिशें की गईं। गंगा साफ न हुई तो कूदकर जान दे दूंगी कहने वाली केंद्रीय मंत्री उमा भारती और गंगा को मां कहकर वोट बटोरने वाले मोदी के लिए जैसे जीडी अग्रवाल का आमरण अनशन कोई मायने नहीं रखता।
गौरतलब है कि तरुण भारत संघ के उपाध्यक्ष प्रो. जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) जो कि दुनिया के नदी के सबसे बड़े विशेषज्ञों में एक रहे हैं, गंगा के लिए पिछले 22 जून यानी 4 महीनों से गंगा के किनारे हरिद्वार में आमरण अनशन कर रहे थे। गंगा की अविरलता व निर्मलता सुनिश्चित करने वाला कानून चाहते थे, जिसका प्रारूप पिछले 06 वर्षों से भारत सरकार में दरदर की ठोकर खा रहा है।
उन्होंने पहले भी भागीरथी नदी को शुद्ध, सदानीरा बनवाने में सफलता प्राप्त की थी। अभी वो इस तरह का काम अलकनंदा और मंदाकिनी नदी हेतु भी चाहते थे।
सम्पूर्ण गंगा जी अविरल, निर्मल बनाने के लिए भारत सरकार ने एक बहुत बड़ी कार्य योजना भारत के सात प्रौद्योगिकी के संस्थानों द्वारा बनवाई थी, लेकिन अब उस योजना के अनुसार गंगा जी में काम नहीं हो रहा है। इसलिए प्रो. जीडी अग्रवाल दुःखी होकर आमरण अनशन पर बैठे थे।