गुजरात दंगों के लिए मोदी को जिम्मेदार ठहराने के बाद निशाने पर आये थे संजीव भट्ट

Update: 2019-06-21 05:24 GMT

गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल खड़े करने के बाद गुजरात सरकार का रवैया बदल गया था संजीव भट्ट के प्रति और मोदी सरकार और संजीव भट्ट के बीच संबंध इस हलफ़नामे के बाद और हो गए थे तल्ख़....

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह का विश्लेषण

गुजरात काडर के बर्ख़ास्त आईपीएस अफ़सर संजीव भट्ट को जामनगर की एक सत्र अदालत ने 30 साल पुराने हिरासत में मौत के एक मामले में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है। लगभग आठ महीने से संजीव भट्ट जेल में बंद हैं। उन्हें नार्कोटिक्स के एक मामले में पैसा उगाही के आरोप में बीते सितम्बर में गिरफ़्तार किया गया था। संजीव भट्ट वही अफ़सर हैं, जिन्होंने 2002 में हुए गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल खड़े किए थे और उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल किया था।

संजीव भट्ट ने कहा था कि दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) पर उन्हें भरोसा नहीं है। दरअसल गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल खड़े करने के बाद गुजरात सरकार का रवैया उनके प्रति बदल गया और मोदी सरकार और संजीव भट्ट के बीच संबंध इस हलफ़नामे के बाद और तल्ख़ हो गए।

नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ काफ़ी मुखर रहने वाले संजीव भट्ट ने मार्च 2011 में उच्चतम न्यायालय में में हलफ़नामा दायर कर तत्कालीन मुख्यमंत्री पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने दावा किया था कि गोधरा कांड के बाद 27 फरवरी, 2002 की शाम मुख्यमंत्री के आवास पर हुई एक सुरक्षा बैठक में वे मौजूद थे। इसमें मोदी ने कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों से कहा था कि हिंदुओं को अपना ग़ुस्सा उतारने का मौका दिया जाना चाहिए।

हालांकि उच्चतम न्यायालय ने उनके दावे को खारिज कर गोधरा के बाद हुए दंगों की जांच के लिए विशेष जांच टीम गठित कर दिया था। मोदी सरकार का कहना था कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि संजीव भट्ट इस बैठक में मौजूद थे।

संजीव भट्ट के मुताबिक़ एसआईटी की रिपोर्ट अनाधिकृत लोगों को भी दे दी गई। संजीव भट्ट ने अपने हलफ़नामे मे कहा था कि गुजरात दंगों की जाँच के लिए उच्चतम न्यायालय के ज़रिए गठित विशेष जांच दल यानी एसआईटी की जांच रिपोर्ट को ग़ैर क़ानूनी तरह से कई लोगों के पास भेजा गया।

हलफ़नामे के अनुसार पाँच फ़रवरी 2010 को 2002 दंगों के नौ मामलों में एसआईटी रिपोर्ट को गुजरात राज्य के गृह मंत्रालय के एक अवर सचिव विजय बादेखा ने अतिरिक्त महाधिवक्ता तुषार मेहता और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव जीसी मुर्मु के पास ई-मेल के ज़रिए भेजा। तुषार मेहता ने इस ई-मेल को गुरुमूर्ति स्वामीनाथन के पास भेजा जो दंगों के अभियुक्तों का बचाव कर रहे हैं। बाद में गुरुमूर्ति ने इसे राम जेठमलानी और महेश जेठमलानी को भेजा। जेठमलानी पिता-पुत्र कई मामलों में गुजरात सरकार और दंगों में अभियुक्तों के वकील थे।

उच्चतम न्यायालय ने साफ़ निर्देश दिए थे कि एसआईटी की रिपोर्ट सिर्फ़ और सिर्फ़ एमाइकस क्यूरी और राज्य सरकार के वकील को दिए जाएंगे लेकिन राज्य के अधिकारियों ने अदालत के आदेश की अनदेखी करते हुए इसे गुरूमूर्ति जैसे अनाधिकृत लोगों को भेज दिया जो अभियुक्तों का बचाव कर रहे थे।छह फ़रवरी को गुरुमूर्ति ने तुषार मेहता को लिखा कि उन्हें रिपोर्ट तो मिल गई है, लेकिन रिपोर्ट के साथ पूरे दस्तावेज़ नहीं मिले हैं।

छह फ़रवरी को ही विजय बादेखा ने उन नौ रिपोर्टों के अलावा गिरफ़्तारी और आरोप-पत्र से जुड़े दो और दस्तावेज़ तुषार मेहता को भेजे। उनमें साफ़ लिखा था कि ये गोपनीय दस्तावेज़ हैं और किसी भी हालत में किसी अनाधिकृत आदमी के पास नहीं जाना चाहिए। 7 फ़रवरी को गूरुमूर्ति ने फिर तुषार मेहता को लिखा कि उनको रिपोर्ट तो मिल गई है, लेकिन उनके पूरे दस्तावेज़ नहीं मिले हैं। पंद्रह फ़रवरी को गुरुमूर्ति ने एसआईटी के ज़रिए जाँच किए जा रहे मामलों की उच्चतम न्यायालय मे सुनवाई से जुड़े एक नोट को राम जेठमलानी, महेश जेठमलानी और प्रणब बादेखा को भेजा।

बाद में संजीव भट्ट को बगैर अनुमति के ड्यूटी से अनुपस्थित रहने और सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने के आरोप में 2011 में निलंबित कर दिया गया। उस दौरान भट्ट की गिरफ़्तारी भी की गई। 30 सितम्बर 2011 को संजीव भट्ट को उनके घर से गिरफ़्तार किया गया था। ये गिरफ़्तारी उनके मातहत काम कर चुके एक कॉन्सटेबल केडी पंत की ओर से दर्ज पुलिस रिपोर्ट के आधार पर की गई थी। इस रिपोर्ट में केडी पंत की तरफ से संजीव भट्ट पर आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने दबाव डालकर मोदी के ख़िलाफ़ हलफ़नामा दायर करवाया था।

गौरतलब है कि आईआईटी मुंबई से पोस्ट ग्रेजुएट संजीव भट्ट वर्ष 1988 में भारतीय पुलिस सेवा में आए और उन्हें गुजरात कैडर मिला। वो गुजरात के कई ज़िलों, पुलिस आयुक्त के कार्यालय और अन्य पुलिस इकाइयों में काम चुके हैं। दिसंबर 1999 से सितंबर 2002 तक वे राज्य ख़ुफ़िया ब्यूरो में ख़ुफ़िया उपायुक्त के रूप में कार्यरत थे।गुजरात के आंतरिक सुरक्षा से जुड़े सभी मामले उनके अधीन थे। इनमें सीमा सुरक्षा और तटीय सुरक्षा के अलावा अति वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा भी शामिल थी। इस दायरे में मुख्यमंत्री की सुरक्षा भी आती थी।

संजीव भट्ट नोडल अफ़सर भी रह चुके थे, वे कई केंद्रीय एजेंसियों और सेना के साथ ख़ुफ़िया जानकारियों का आदान-प्रदान करते थे। जब वर्ष 2002 में गुजरात में दंगे हुए थे, उस समय भी संजीव भट्ट नोडल अफसर के पद पर तैनात थे।

वर्ष 2015 में आए एक कथित सेक्स वीडियो को लेकर संजीव भट्ट को पहले गुजरात सरकार ने कारण बताओ नोटिस जारी किया और फिर बर्ख़ास्त कर दिया। नोटिस में कहा गया कि वे अपनी पत्नी के अलावा किसी अन्य महिला के साथ अवैध रिश्ते पर सफ़ाई दें। संजीव भट्ट को 19 अगस्त 2015 को पद से बर्ख़ास्त कर दिया गया। संजीव भट्ट ने कथित सेक्स वीडियो में ख़ुद के होने से इंकार किया था और कहा था कि वीडियो में मौजूद आदमी उनकी तरह दिखता है, पर वे स्वयं उसमें नहीं हैं।

तब बर्खास्त आईपीएस संजीव भट्ट ने गुजरात सरकार पर राजनीतिक द्वेष से कार्रवाई किये जाने का आरोप लगाया था। सेक्स वीडियो के मामले में उनका कहना था कि यह वीडियो सबसे पहले बीते साल मई महीने (मई 2014) में सामने आया था। इसे तेजिंदर पाल बग्गा के ट्विटर अकाउंट से अपलोड किया गया था। बग्गा 'नमो' पत्रिका के संपादक हैं और दक्षिणपंथी संगठन भगत सिंह क्रांति सेना से जुड़े हुए हैं।

इसके बाद संजीवन भट्ट को पुलिसिया कार्रवाई का 2018 में फिर से सामना करना पड़ा, जब उन्हें 5 सितम्बर 2018 को सीआईडी ने गिरफ़्तार कर लिया। उस समय कहा गया कि 1998 पालनपुर ड्रग प्लांटिंग केस में हाईकोर्ट के आदेश के बाद उनकी गिरफ़्तारी हुई। उनके साथ सात अन्य लोगों की भी गिरफ़्तारी हुई थी। आरोप था कि संजीव भट्ट जब बनासकांठा के डीसीपी थे, उस वक्त एक वकील को नार्कोटिक्स के झूठे मामले में उन्होंने फंसाया था। उस वक्त करीब 8 ऐसे नार्कोटिक्स मामले थे, जिसमें विवाद हुआ था। इनमें कुछ आरोपी राजस्थान के हैं। राजस्थान के आरोपियों ने संजीव भट्ट पर झूठा केस दायर कर उनसे पैसे ऐंठने का आरोप लगाया था।

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