मोलकी के सास-ससुर बाहर के किसी भी व्यक्ति से उसे बात नहीं करने देते, क्योंकि उन्हें डर लगा रहता है कि कहीं वह अपने कष्टों को उनके सामने उजागर न कर दे...
मोलकी बहुओं के गांवों से लौटकर विपिन चौधरी की रिपोर्ट
“दारु पिणा छोड़ पिया, यो कर्म घणा सै माडा, दारू पी कै फिरै गाल्य मह, लोग कहवै लंगवाडा...”
इस हरियाणवी लोक-गीत में स्त्री की करुण पुकार, अपने शराबी पति को शराब के सेवन के प्रति आगाह कर रही है, क्योंकि शराब की लत एक बसे-बसाए घर को तबाह करने के लिए काफी है।
जब मैंने हरियाणा के बीशनपूरा गाँव की एक मोलकी बहू रेखा से पूछा कि क्या उसके मायके बंगाल में भी पुरुष शराब पीकर घर आने पर बदतमीजी या मार-पीट करते हैं, तो उसने अपने ठेठ हरियाणवी लहज़े में जवाब दिया, “हरियाणा मह तो शराबी माणस घी-खिचड़ी एक कर देवें सै, म्हारे उर्रे तो पीकर सो जाया करे सै अर किस्से नह बेरा भी कोन्या पाट्ये...”
बीशनपूरा गाँव में लगभग 2500 की जनसंख्या है, एक प्राइमरी स्कूल, एक हाईस्कूल है। इस गाँव में सबसे अधिक संख्या यादवों (हीर) की है। फिर गोसाई, बाल्मीकि, जाट और दूसरी जातियाँ जैसे सैनी, कुम्हार,खाती, जोगी, नाई, हेड़ी (नायक), चमार, पंडित, लुहार धानकों के दस-पांच घर हैं। यादव, गोसाईं व जाट जातियों के लोगों के पास अपनी खेती लायक जमीनें हैं और कई दूसरी जातियों के लोगों के पास भी कुछ एकड़ ज़मीनें हैं। यही कारण है कि यहाँ आय का मुख्य साधन खेती ही है। गाँव के कई लोग अच्छे खासे शिक्षित हैं और अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दिलवा रहे हैं।
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गाँव निकटवर्ती शहर जींद से कुछ ही किमी की दूरी पर है। गाँव में बिजली-पानी की भी कोई समस्या नहीं है। घरों में सप्लाई का पानी आता है, लेकिन पीने के लिए लोग समर-सिबल पंप का पानी ही इस्तेमाल में लाते हैं। गाँव की सारी सड़कें सीमेंट या पत्थर के टुकड़ों से बनी हुई हैं। साफ़-सफाई की व्यवस्था भी ठीक है। गाँव से कुछ ही दूरी पर एक गैस प्लांट लगा हुआ है, जिसमें गाँव के काफी लोग काम करते हैं।
आप पूरे गाँव का पैदल ही आसानी से मुआयना कर सकते हैं और इसकी आबोहवा में सुकून भरी सांस ले सकते हैं, मगर इंसान के लिए सबसे सुरक्षित समझे जाने वाले घर नाम की चारदीवारी के भीतर एक स्त्री सुबक रही है जिसकी भनक आपको कभी नहीं लग सकती। ये आंसू उन स्त्रियों के हैं जिन्हें यहाँ दूसरे देश की स्त्रियाँ कहा जाता है और दूसरे देश की ये मोलकियों अपने दुःख में पूरी तरह से अकेली हैं।
बीशनपूरा गाँव की कुछ मोलकियां घरेलू-हिंसा की शिकार हैं और गाँव और समाज और सरकार मूक दर्शक बनी हुई है, क्योंकि सरकार आंकड़ों का खेल में जनता को उलझा देती है और ये मोलकियां तो अभी घरेलू-हिंसा के किसी सरकारी आंकड़ों की गिनती में भी शामिल नहीं हो सकी हैं।
बंगाल के पुरबा बर्धमान जन्मी और पांच साल पहले हरियाणा के बीरपुरा गाँव में ब्याह कर लायी गई 25 वर्षीय मोलकी रेखा अब बहुत शानदार हरियाणवी बोल लेती है। अपने पति और ससुर के शराब पीने के प्रश्न पर एक दूसरे प्रश्न पर वह कहती है, “दोनों हफ्ते मह एक बार तो पीवै जरूर सै, मारपीट तो कोणी करैं रोल्या जरूर करै सै...”
इसी गाँव की एक दूसरी मोलकी कुंती की शादी आठ साल पहले यादव परिवार के सबसे बड़े बेटे जयभगवान से हुई थी। उस समय जयभगवान की उम्र 28 साल की थी। वह गाँव के पास ही एक गत्ता फैक्ट्री में नौकरी करता था। कुछ समय पहले अचानक उसकी मृत्यु हो गई, उसके बाद उसके छोटे भाई सतीश ने कुंती को अपने पास रख लिया। सतीश स्वभाव से अत्यधिक क्रोधी है और शराब पीकर कुंती के साथ खूब गाली-गलौच और मारपीट करता है, मगर कुंती के सास-ससुर कभी उनके बीच में नहीं आते।
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बीशनपूरा गाँव की एक अन्य मोलकी भी घरेलू-हिंसा से पीड़ित है। 45 वर्ष की सोनिया की शादी को बीस साल हो गए। उसका पति शादी के पहले दिन से ही उसे मारता-पीटता आया है। सोनिया अपना दुःख किसी से नहीं कह सकती। घर की चारदिवारी ही उसके नीले घावों और आसुंओं के गवाह हैं।
उसके सास-ससुर बाहर के किसी भी व्यक्ति से उसे बात नहीं करने देते, क्योंकि उन्हें डर लगा रहता है कि कहीं वह अपने कष्टों को उनके सामने उजागर न कर दे। देखने में सोनिया कुछ भोली नज़र आ रही थी, उसने काफी मैले कपडे पहन रखे थे और उसके दोनों बच्चों की हालत भी काफी खराब नज़र आ रही थी। शादी के इतने वर्ष हो गए सोनिया के परिवार से कभी कोई उससे मिलने नहीं आया न ही वह कभी मायके गई। कम समझ की इस स्त्री ने इस घर को तीन बच्चे दिए और इस घर ने उसे प्रताड़ना और मारपीट के सिवा कुछ नहीं दिया।
हमारे समाज में जब शिक्षित और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर स्त्रियों को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा है और वे अपनी परिस्थितियों में खुद को बिलकुल असहाय पाती हैं तो इन निरक्षर और बेबस मोलकियों की सुध किसे है। न इनके करीब इनका कोई सगा-संबंधी है, न ही किसी से अपने दुखों को साझा करने की कोई आस।
जब हम सोनिया से बात कर रहे थे, तब उसकी सास भी पीछे-पीछे आ गई बोली हमारी बहू बहुत भोली है उसे दुनियादारी का ज्ञान नहीं है। पड़ोसियों ने बताया इस घर में मारपीट रोज़ की बात है।
इसी प्रसंग में कहीं पढ़ी गई एक हरियाणवी कहावत याद आई जो कुछ-कुछ इस प्रकार से है कि ‘लुगाई और दो लट्ठ आगे की तरफ और दो लट्ठ पीछे मारना चाहिए’ यह कहावत एक घोर पितृसत्तात्मक समाज का स्त्री के प्रति नजरिया उजागर करने के लिए काफी है।
घरेलू-हिंसा को लेकर बीशनपूरा गाँव के लोगों से बात की गई तो दोनों ही पहलू सामने आए। पहला यह कि दूसरे राज्यों से लाई गई बहुओं से मारपीट करते हुए उनके ससुराल वालों को यह डर लगा रहता है कि इतना खर्चा करके मोल लायी गई बहू कहीं घर से भाग ना जाए। वहीं दूसरी और कई घरों में यह समझ कर मारपीट की जाती है कि बहू का मायका बहुत दूर है और इस गाँव में इसके संपर्क न के बराबर है, इसलिए यह हमारी शिकायत किसी से भी नहीं कर सकेगी।
और जब इसी प्रसंग पर यहाँ की हरियाणा के गाँवों से ब्याही हुई बहुओं से बात की गई, यह बात भी सामने आई कि बाहर के प्रदेशों से लायी गई इन बहुओं के साथ तो बहुत बेहतर व्यवहार होता है, क्योंकि इनके मर्दों और सास-ससुर को इनके भाग जाने का डर बराबर लगा रहता है। वे सोचते हैं इतना पैसा लगा कर लायी गई स्त्री भाग गई, तो फिर उनके बेटे का क्या होगा। जबकि हरियाणा प्रदेश की ये बहुएं जो अपने साथ ढेरों दहेज़ लायी हैं, फिर भी रोज़ अपने पतियों से पिटती हैं और समाज के भय से न ही कहीं भाग सकती हैं या अलग हो सकती हैं।
अक्सर मारपीट को शराब से जोड़ कर देखा गया है और परिवार वाले यह कहकर अपना पल्ला छाड़ देते हैं कि “म्हारा छोरा दारू घणी पीवै सै पीण पाछे उसने कीमे कोणी बेरा पाटदा...”
जीवन के इन रोंगटे खड़े करने वाले मोलकियों के ये किस्से हमारे समाज की इसी पितृसत्तात्मक संरचना का हिस्सा है, जिसकी नींव को भोतरा करने के लिए हमने अभी भी अपनी कमर नहीं कसी है।