कैसे भुला दोगे अनवरत सुंदरता की स्‍तुति का स्‍वभाव

Update: 2019-07-24 17:27 GMT

फुटपाथों पर किताबें तलाशना मेरा पुराना शगल रहा है। मैंने बहुत सी अच्‍छी किताबें फुटपाथों से लेकर पढ़ी हैं। पटना गांधी मैदान के एक छोर पर सालों किताबों की प्रदर्शनी लगी रहती है, काफी बड़े हिस्‍से में। बेरोजगारी के कड़की भरे दिनों में ये दुकानें एक संभावित लेखक के लिए राहत भरी होती थीं। अपने प्रिय कवि ऋतुराज की पहली पुस्‍तक 'पुल पर पानी' मैंने यहीं से प्राप्‍त की थी, 12 रुपये में। उसे जब पढ़ा तो खु‍शी हुई कि अच्‍छी थाती हासिल हो गई। 'शरीर' कविता काफी बाद में मुझे पढ़ने को मिली, उनकी चुनी हुई कविताओं के संकलन में। इस कविता का सम्‍मोहन टूटा नहीं आज तक -

'यह सोचने की मशीन/ यह पत्र लिखने की मशीन/ यह मुस्‍कराने की मशीन/ यह पानी पीने के मशीन /इन भिन्‍न-भिन्‍न प्रकारों की/ मशीनों का चलना रुका नहीं है अभी...।'

जयपुर आने पर उनसे कुछेक मुलाकातें हुईं गोष्ठियेां में। एक बार मैंने उनसे 'शरीर' कविता का जिक्र किया तो पता चला कि यह कविता वैदिक सूक्‍तों के असर में संभव हुई थी। वेदों के असर में लिखी कविताओं का एक संकलन ही है उनका, यह भी पता चला - कुमार मुकुल, कवि और पत्रकार : प्रस्‍तुत है ऋतुराज की कविता—

शरीर

सारे रहस्‍य का उद्घाटन हो चुका और

तुम में अब भी उतनी ही तीव्र वेदना है

आनंद के अंतिम उत्‍कर्ष की खोज के

समय की वेदना असफल चेतना के

निरवैयक्तिक स्‍पर्शों की वेदना आयु के

उदास निर्बल मुख की विवशता की वेदना

अभी उस प्रथम दिन के प्राण की स्‍मृति

शेष है और बीच के अंतराल में किए

पाप अप्रायश्चित ही पड़े हैं

लघु आनंद वृत्तों की गहरी झील में

बने रहने का स्‍वार्थ कैसे भुला दोगे

पृथ्‍वी से आदिजीव विभु जैसा प्‍यार

कैसे भुला दोगे अनवरत सुंदरता की

स्‍तुति का स्‍वभाव कैसे भुला दोगे

अभी तो इतने वर्ष रुष्‍ट रहे इसका

उत्तर नहीं दिया अभी जगते हुए

अंधकार में निस्‍तब्‍धता की आशंकाओं का

समाधान नहीं किया है

यह सोचने की मशीन

यह पत्र लिखने की मशीन

यह मुस्‍कराने की मशीन

यह पानी पीने के मशीन

इन भिन्‍न-भिन्‍न प्रकारों की

मशीनों का चलना रुका नहीं है अभी

तुम्‍हारी मुक्ति नहीं है।

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