निर्मला भुराड़िया की कहानी 'मैजिक म्याऊं'

Update: 2019-06-09 06:12 GMT

हिंदी में कभी प्रेमचंद ने 'दो बैलों की जोड़ी' जैसी अमर कहानी लिखी थी, लेकिन बाद में हिंदी कहानी में पशु पक्षी धीरे—धीरे गायब हो गए। यद्यपि कई कहानियों ने पशु पक्षियों का जिक्र होता रहा, पर वे कहानी के केंद्रीय पात्र नहीं बने। जबकि हमारे जीवन मे इनसे लगाव रहा और कई बार आत्मीय एवम रागात्मक सम्बन्ध भी विकसित हुए। हिंदी की वरिष्ठ कथाकार निर्मला भुराड़िया ने 'मैजिक म्याऊं' कहानी में एक बिल्ली के जरिये स्त्री मनोभाव की रोचक कहानी लिखी है। यह सभी जीव प्रजातियों के मनोविज्ञान की कहानी है, जब वह अपनी संतान की हर तरह से रक्षा करती है। यह स्त्री धर्म है। निर्मला भुराड़िया हिंदी कथा साहित्य में पिछले तीन दशकों से लिख रही हैं। उनकी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान है, विशेषकर 'गुलाम मंडी' पुस्तक से। आइए पढ़ते हैं निर्मला भुराड़िया की एक छोटी सी दिलचस्प कहानी 'मैजिक म्याऊं' — विमल कुमार, वरिष्ठ पत्रकार और कवि

मैजिक म्याऊं

निर्मला भुराड़िया

मैंने पर्दे की ओट लेकर धीरे से खिड़की में से झांका। वह लॉन में थी और तरह-तरह की अंगड़ाइयां ले रही थीं, जैसे योग कर रही हो। अब वो उछली और उसने गुलाटी लगाई। और ये क्या, सिर से पूंछ जोड़कर गोले-सी बन गई। ऐसा ही लचीला है उसका जिस्म किसी जिम्नास्ट की तरह, इतना ही नहीं, वो तो अपना कान भी हिला लेती है इसीलिए तो दुकानदार ने कहा था- इसका नाम उसने मैजिक रखा है। उसने कहा- आप डॉगी-वॉगी छोड़ो, इस मैजिक म्याऊं को ले जाओ, बस आपको मजा आ जाएगा। दुकानदार ने सही कहा था, सचमुच ही बड़ी प्यारी है मैजिक पर...!

पर क्या? चलो अभी पता चल जाएगा। लॉन की ओस उड़ गई है! वहां धूप उतर आई है। मैजिक ने झप्प से लॉन को घेर रही घर की चहारदीवारी पर छलांग लगाई है और अब इतराकर संकरी मुंडेर पर ऐसे चल रही है, जैसे फैशन शो के रैम्प पर 'कैट वॉक' कर रही हो। कुछ भी हो, इस बिल्ली में एटीट्यूड तो है। यह किसी विश्व-सुंदरी की तरह नखरीली और नाजुक मिजाज है। यह एक जिंजर कैट है। इसके बदन पर पीली-सुनहरी धारियां हैं, जो इसके शेर की जाति की होने की याद दिलाती है।

ऐऽऽ लोऽऽ ये तो फिर लॉन पर कूद गई है और ऐसी छलांगें मार रही हैं, जैसे किसी अदृश्य बॉल से खेल रही हो। तभी... एक तितली मंडराती हुई आई है और मैजिक के लगभग ऊपर उड़ान भरने लगी है। तितली को देखते ही मैजिक ने छलांगें मारना बंद कर दिया है। डरकर उसने अपने बदन को सिकोड़ा है और ऐसा सुट्ट होकर बैठ गई है, जैसे तितली नहीं, सांप देख लिया हो। वह ऐसे बैठी है, जैसे इंसान बैठता है पालथी मारकर। उसने आगे के दोनों पंजे जोड़ लिए हैं। ऊपर के दोनों पंजे भी नमस्कार की मुद्रा में हैं। उसने अपने एक कान को आंख की दिशा में मोड़ दिया है, जैसे कि अपने कान से अपनी आंख को ढंक लेगी।

कुछ भी कहो, वह इतनी प्यारी लग रही है उस वक्त कि मैं उसे क्लिक कर लेना चाहती हूं। सचमुच प्यारी है मैजिक पर... पर यही कि वो एक डरपोक बिल्ली है। मैजिक तो तितलियों से भी डरती है।

घर में कोई मेहमान आए तो मैजिक ड्रॉइंग रूम के पर्दे के पीछे छुप जाती है और वहीं से झांकती है। बाहर आकर दर्शन नहीं देती। मैं उसके लिए कितना अच्छा हेयर बैंड और ब्रॉच लेकर आई थी पर सब व्यर्थ, वह तो मेरी सहेलियों के सामने आती ही नहीं, जिनको दिखाने के लिए मैं महंगी कैट-जुलरी लाई थी। नामुराद कहीं की। खैर, मेरी सहेलियों से वो डरती है तो चल भी जाता है, मगर सकूबाई से भी मैजिक डरती है। और सकूबाई तो रोज आती है।

सकूबाई एक दिन भी न आए तो काम न चले, पर डरपोक मैजिक का आप क्या करो। वह तो जैसी है, वैसी है। भई, मुझे तो वह ऐसे ही प्यारी है। पर सकूबाई ने तो पहले दिन से ही इसे दुश्मन मान लिया है। ये 'कैट-फेट' क्या मैडम, डॉगी लाओ डॉगी। डॉगी वफादार होता है, बिल्ली तो चोर होती है। कितना भी दूध-मलाई पिलाओ, मच्छी खिलाओ, वह तो तुम्हारे किचन में मुंह ही मारेगी।

घर में घुसते ही सकूबाई सबसे पहले मैजिक को हड़काती है। 'चल री हट, जब देखो पूंछ उठाए चली आती है।' लाल चट्ट साड़ी पहने, आंखों के आसपास काजल की लाइन बनाए, सर पर गोल बिंदी और हाथ में झाडू का डंडा लिए सकूबाई जब मैजिक को डांटती है तो भयभीत मैजिक चूं-चूं करती पंजे आगे और बदन पीछे खींचती है, फिर उछलती है और बदन को सिकोड़कर रोशनदान की संकरी सलाखों के बीच से भाग निकलती है।

अब तो मैजिक को सकूबाई के आने का टाइम भी पता चल गया है और कुछ नहीं तो मेनगेट खुलने और सकूबाई के कदमों की आहट से ही वो समझ जाती है कि सकूबाई आ रही है और वह पलंग के नीचे, दरवाजे के पीछे कहीं न कहीं छुप जाती है। मगर सकूबाई को मैजिक को देखने से जितनी नफरत है, उतना ही उस मैजिक को देखे बगैर चैन भी नहीं। घर में आते से ही झाडू ढूंढ़ने के बजाए मैजिक को ढूंढ़ती है डांटने और लताड़ने के लिए।

'चल कुत्ती पलंग के नीचे से बाहर निकल'। सकूबाई कहती है तो मैं सुधारती हूं सकूबाई वह कुत्ती नहीं, बिल्ली है। तो कभी सकूबाई उसे कहती है कैसी गधी लॉन में पोटी कर देती है। मैं सकूबाई को कुछ नहीं कह पाती। शायद मैं भी सकूबाई से डरती हूं, क्यों? ये आप समझते ही हैं।

मैजिक सकूबाई को देखकर डरती है, न तो उसकी आंखों की दोनों पुतलियां उसकी नाक के पास आ जाती हैं और रोंगटे खड़े हुए से प्रतीत होते हैं। यह देखकर सकूबाई जोर-जोर से हंसती है। लगता है उन्हें भी मैजिक को डराने में मजा आता है। हंसना तो छोड़ो, एक बार सकूबाई अपने घर वाले की शिकायत करते हुए धाड़-धाड़ रो रही थी तो भी मैजिक ऐसी डर गई थी कि थर-थर कांपने लगी थी।

इन दिनों मैजिक का पेट थोड़ा मोटा दिखने लगा है। हमारी प्यारी मैजिक उम्मीद से जो है। मगर सकूबाई को तो इससे भी खुन्नस है। कहती है देखो, इस निगोड़ी मैजिक को कैसे पेट फुलाकर चलती है, जाने किसका पाप लाई है। मुझे सकूबाई के फिल्मी डॉयलॉग पर हंसी आ जाती है और मैजिक सकूबाई की नजरों के तीर से डरकर दुबककर भाग जाती है।

जल्द ही वह दिन भी आ गया है, जब मैजिक ने बच्चे दे दिए हैं। प्यारे-प्यारे बच्चों में से एक-एक को मुंह में पकड़कर वह जाने कहां-कहां घुमाकर लाती है। बाकी उसने दीवार के किनारे एक जगह फिक्स कर ली है, वहीं बैठकर अपने बच्चों को दूध पिलाती है या फिर उनकी रक्षा में तैनात बैठी रहती है।

सकूबाई इस बीच दो दिन की छुट्टी पर थी। वह लौटी और अपनी डंडे वाली झाडू लेकर मैजिक को जैसे ही ललकारा कि अनअपेक्षित हुआ। भागने के बजाए मैजिक सकूबाई पर झपट पड़ी। पहले उसने अपनी चमकती आंखों से घूरा, फिर गुर्राई और पंजे से सकूबाई का खुला पेट खरोंच दिया। सकूबाई भागी। अब डरने की बारी सकूबाई की थी। मैजिक अब एक मां थी। अपने बच्चों की रक्षा की खातिर डरपोक बिल्ली भी शेरनी बन गई थी।

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