गुजरात के कच्छ जिले में पवनचक्कियों के कारण किसान हो रहे बर्बाद, विलुप्त हुए पक्षी और खत्म हो रही हैं वनस्पतियां
कच्छ जिले कि जिस इलाके में सरकारी सरंक्षण में कंपनियां कर रही हैं पवनचक्कियों का विस्तार, उस इलाके में किसान और स्थानीय नागरिक कर रहे हैं विरोध, कुछ गांवों ने कंपनियों को घुसने से रोका...
गुजरात के कच्छ से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट
पूरे देश में जितनी भी पवनचक्कियां लगी हैं, उनमें से बहुत बड़ी तादाद में गुजरात के कच्छ जिले में लगी हुई हैं। इन पवनचक्कियों के कारण कच्छ का ज्यादातर उपजाऊ क्षेत्र पवनचक्कियों के जंगल में तब्दील हो चुका है। हालांकि पवन ऊर्जा से बिजली बनाने का यह सबसे अच्छा जरिया है, किंतु पवनचक्की लगाने से इस इलाके को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है।
यहां विंड फार्म लगाने के सारे नियम-कानूनों का उल्लंघन किया जाता है। नियम-कानूनों को ताक पर रखकर जो विंड फार्म लगाये जा रहे हैं उससे इस क्षेत्र में इंडियन बस्टर्ड नामक पक्षी जिसे स्थानीय भाषा में 'गोराड़' कहते हैं और यह अति संरक्षित प्रजातियों में से एक थी, वह विलुप्त हो चुकी है।
पवनचक्की लगाने के लिए नियम-कानूनों को ताक पर रख 200 से 300 साल पुराने कई पेड़ और झाड़ियां काट डाली गयी हैं। पवनचक्की के साथ उनके वायर भी लगते हैं, ट्रांसफॉर्मर भी लगते हैं और सबस्टेशंस भी बनते हैं। उन सबके बीच आने-जाने के रास्ते भी बनते हैं जिसमें झाड़ियां काटी जाती हैं। अगर झाड़ियां काटने के बाद उनकी जगह जालियां लगाई जाएं तो आने वाले 20 से 30 साल में भी वह जालियां पुरानी झाड़ियों जितनी नहीं बन सकतीं।
पवनचक्कियों को अवैध तरीके से स्थापित किये जाने के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता और कच्छ यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे छात्र रमेश गरवा ने बताया कि कच्छ जिले में सिर्फ कोस्टल एरिया में ही पवनचक्की लगनी चाहिए और उसी की अनुमति दी गई है, उपजाऊ जमीन को किसी भी कीमत पर कंपनियों के हवाले नहीं किया जाना चाहिए। अगर ऐसा शासन-प्रशासन के संरक्षण में किया जा रहा है तो यह बहुत गलत है।
कच्छ जनपद में बीसियों साल से विंड फार्म लगे हुए हैं, लेकिन पिछले 10 साल में विंड फॉर्म की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। इससे यहां की प्रकृति को बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। पवनचक्की लगाने वाली कंपनियां किसी भी तरह के नियम-कानूनों का पालन नहीं करतीं और अनेक शिकायतों के बावजूद सरकारी अमला उन्हें बचाने में लगा हुआ रहता है।
स्थानीय लोग कहते हैं कि आज से 10 साल पहले इन पक्षियों की संख्या सौ के लगभग हुआ करती थी, मगर उनके अभ्यारण क्षेत्र में बहुत ही ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप और बिजली के वायर लगने के कारण सारे पक्षियों की मृत्यु हो चुकी है। हालांकि गुजरात के वन विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो अभी भी तीन से चार पक्षी जीवित हैं मगर वह पक्षी कहीं पर भी नजर नहीं आते। शायद वह पक्षी कागजों में ही जीवित हैं। इंडियन बस्टर्ड कच्छ के अलावा राजस्थान में पाए जाते हैं। अब कच्छ में य विलुप्त हो चुके हैं।
अंधाधुंध पैमाने पर तमाम नियम कानूनों को ताक पर रख पवनचक्कियों को स्थापित किये जाने के खिलाफ आंदोलन कर रहे नरेश महेश्वरी और हरीश आहिर से बात करने पर कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं। नरेश महेश्वरी ने बताया कि पवनचक्की निर्माण में जिले के डीएम द्वारा जारी किए गए आदेश के अनुसार जिस विस्तार में पवनचक्की लगेगी, उनकी ग्रामसभा या पंचायत से मंजूरी लेनी होगी, मगर अनेक मामलों में यह कार्यवाही पूर्ण नहीं की गई। रास्ते बनाने के लिए भी कोई अनुमति नहीं ली गई है, इसलिए जो रास्ते हैं उसी का उपयोग कंपनियां कर सकती हैं, नए रास्ते बनाने की अनुमति उनको नहीं दी गई, फिर भी कंपनियों द्वारा कई जगह अवैध रूप से पेड़-झाड़ियां और वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाकर रास्ते बना दिये गये हैं।
पवनचक्कियों से तबाह हो रही किसानी और जनजीवन को लेकर हरीश आहिर कहते हैं, पवनचक्की सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह की जमीनों पर लगाई जा सकती है, मगर यहां तो नियमों का खुलेआम उल्लंघन इतना ज्यादा हो रहा है कि कच्छ के कई गांवों में पवनचक्कियां तालाबों में लगा दी गई हैं। यहां तक की गोचर जमीन में तक पवनचक्कियां लगा दी गई हैं, जिस कारण इसके पंख में आने से कई पक्षियों की मौत हो चुकी है। पवनचक्की का शिकार बनने वाले पक्षियों में राष्ट्रीय पक्षी मोर भी शामिल है।
कच्छ जिला सामान्यतः अकालग्रस्त इलाका माना जाता है, इसलिए यहां पर बड़े वृक्षों की संख्या बहुत कम देखी जाती है। यहां पर कई ऐसी झाड़ियां पाई जाती हैं, जिनको पवनचक्कियों से बहुत नुकसान पहुंचा है। लीयार, गंगिया, गोगा, गिलोडी, बर, पीलू, लुस्का, थोर, हथला थोर जैसी कई प्रजातियों के झाड़ियां पवनचक्कियों के चलते नष्ट हो चुकी हैं। सबसे बड़ी बात तो यह कि यही झाड़ियां स्थानीय जीव-जंतुओं और पशुओं के लिए खाने का जरिया हुआ करती थीं। अब इनके नष्ट होने से इन झाड़ियों पर आश्रित पशु-पक्षियों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गयी है। रेगिस्तानी इलाका होने के कारण कच्छ इलाके की झाड़ियों में पक्षी अपना घोंसला बनाकर रहते हैं। झाड़ियां खत्म होने के चलते कई प्रजातियों के पक्षियों का अस्तित्व खतरे में पड़ चुका है।
पवनचक्की लगाने की प्रक्रिया में वायर लगाने, सब स्टेशन तक वायर पहुंचाने के अलावा अन्य कई कार्यों में किसानों की जमीन भी प्रयोग में आती है। इससे किसानों की उपजाऊ जमीन को बहुत नुकसान पहुंच रहा है।
स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद सारा सरकारी अमला पवनचक्की लगाने वाली कंपनियों को पूरा संरक्षण प्रदान करता है। पवनचक्की लगाने की प्रक्रिया में कई पानी के सोते, कुदरती पानी के नाले तक तोड़ दिए गए हैं। स्थानीय लोग कहते हैं, हम इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे हमारी जमीन, स्वास्थ्य, पशु-पक्षी प्रभावित हो रहे हैं, मगर स्थानीय राजनेता मोटे पैसे लेकर इन कंपनियों को सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं, इसलिए पवनचक्कियों के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो पा रहा।
कच्छ जिले के पक्षीवीद नवीन की राय में, बापट जिले के 900 किलोमीटर के तटीय क्षेत्र और 21000 वर्ग किलोमीटर रेगिस्तान है, उस विस्तार में पवनचक्कियां लगायी जानी चाहिए, न की उपजाऊ क्षेत्र में। 100 से 200 साल पुरानी झाड़ियां काटे जाने पर कई प्रजाति के जीव-जंतु और पशु-पक्षियों को बहुत नुकसान हो रहा है और वे विलुप्त हो रहे हैं।
पवनचक्की परियोजना से प्रकृति को होने दूरगामी परिणामों को बहुत घातक बताते हुए जिले के पक्षीविद नवीन बापट आगे कहते हैं, 'कच्छ जिले में बड़े पैमाने पर स्थापित की जा रहीं ये पवनचक्कियां साइलेंट किलर हैं। वास्तव में कच्छ जिले की उपजाऊ जमीन कौड़ियों के दाम लेने का यह षड्यंत्र है।'
30 जुलाई को कच्छ जिले के डीएम के दफ्तर में आंदोलनकारियों द्वारा धरना-प्रदर्शन करने के बाद ज्ञापन दिया गया था, मगर उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके अलावा सांगनारा, मंजल, तरा, लखेडी, सनुग्रा, पालनपुर, भीमसर, लोरिया जैसे गांवों के जागरूक लोगों द्वारा शिकायतें दर्ज करायी गयीं, जिन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सांगनारा के ग्रामीणों ने अपने क्षेत्र में रास्ता रोककर कंपनियों के प्रवेश को निषेध कर दिया। ग्रामीणों जिला प्रशासन, विधायक और सांसद महोदय तक भी शिकायतें भेजी गयीं, बावजूद इसके उनकी शिकायतों पर कान नहीं दिया गया।
कच्छ के कई गांव ऐसे हैं, जिनमें तालाबों, नदियों, गोचर जमीन और नालों में पवनचक्कियां लगाई गई हैं या उनके वायर के खंभे डाले गए हैं। यह खुलेआम नियमों का उल्लंघन है, मगर स्थानीय जनता की शिकायतों के बावजूद कंपनियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही। कई ग्राम पंचायतों की अनुमति के बिना पवनचक्कियां वहां स्थापित कर दी गयी हैं।
कई जगह ऐसे भी मामले संज्ञान में आए हैं जहां पंचायत के सदस्यों को कंपनी प्रबंधन द्वारा अपने पक्ष में कर पूरे गांव का विरोध होने के बावजूद पवनचक्कियां स्थापित कर दी गयी हैं। अगर इसी तरह कच्छ में पवनचक्कियां लगती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हजारों साल पुराने पेड़, झाड़ियां, पशु-पक्षी सभी विलुप्त हो जाएंगे।