देश के युवा वोटर तय करेंगे अगली सरकार किसकी

Update: 2019-05-12 09:51 GMT

चुनाव-2019 के पांच चरण के बाद से आम वोटर को भी यह नजर आने लगा है कि यह चुनाव ‘विकास की राजनीति’ के ‘सैचुरेटेड पॉइंट’ पर पहुंचने का संकेतक है....

हेमंत, वरिष्ठ पत्रकार

मतदान के सात में से छह चरण पूरे हो चुके हैं। परिणामों का अनुमान लगाने का धंधा चुनाव-घोषणा के पहले से चल रहा था -सेंसेक्स के घोड़े की तरह, जो शेयर बाजार में बेरोजगारी-महंगाई के कोड़े पर कोड़े खाने का मजा लेते हुए भी ‘विकास’ की राह पर सरपट दौड़ रहा था, लेकिन चरण-चरण मतदान के क्रम में पक्ष-विपक्ष के पार्टी-गठबंधन और प्रत्याशियों के ‘सेलेक्शन’ के साथ मुद्दाविहीन ‘मुद्दों’ के बदलते चेहरों का जो मेनिफ़ेस्टेशन हो रहा है, उससे ‘अनुमान’ का धंधा और तेजी से चल निकला है!

धंधे में ‘बाजार की राजनीति’ जैसी होड़ लग गयी है। अब तो लगा रहा है जैसे सेंसेक्स के कई घोड़े एक साथ दौड़ पड़े हैं, दौड़ की होड़ में एक दूसरे से भिड़ रहे हैं – कुछ लुढ़के तो कुछ धड़ाम से धराशायी होते नजर आ रहे हैं, यह देख पार्टी-गठबंधनों के दिग्गज, दलाल स्ट्रीट के मंदडि़यों की तरह, मारकाट मचाने निकल पड़े हैं!

ये ‘अनुमान’ बाजार में बिकने वाला ‘सामान’ हैं। ये तभी बिकेंगे, जब सर्वथा ‘अज्ञात’ को भी ‘ज्ञात’ रहस्य के रूप में पेश कर सकने वाली पैकेजिंग में इसे पेश किया जाये। इसलिए ‘अनुमान का माल’ बेचने वाली सभी एजेंसियां कोई रिस्क लिये बिना अपने हर किसिम के अनुमान को अधिक से अधिक दाम में बेच लेना चाहती हैं - आम के साथ सिर्फ गुठली नहीं, बल्कि अच्छे के साथ सड़े आम भी बेचने की तरह।

23 मई को चुनाव परिणाम आयेगा, तब यही एजेंसियां कहेंगी –“हमने जो कहा था, वही हुआ।” उनमें से कुछ एजेंसियां अपनी विश्वसनीयता को प्रमाणित करने के लिए यह भी कहेंगी कि “सिर्फ हमने पुख्ता सबूतों के आधार पर यह भविष्यवाणी की थी।” या कहेंगी “हमी ने सबसे पहले यह कहा था।” लेकिन उस वक्त वे यह नहीं कहेंगी कि उन्होंने अपनी उसी भविष्यवाणी को संदिग्ध करार देने वाले अनुमानों को भी हवा दी थी। उन अनुमानों के जरिये उन्होंने अपने प्रमाणों पर खुद संदेह का नकाब डाल दिया था। हां, जिन्हें याद रहेगा कि ‘मीडिया-कर्म’ या ‘पत्रकारिता’ में भी ‘शर्म’ नाम की चीज होती है, वे कहेंगी –“हमने सिर्फ विकल्पों की ओर इशारा किया था।”

बहरहाल, वोटर के नाते कोई क्या करे? चुनाव-2019 के पांच चरण के बाद से आम वोटर को भी यह नजर आने लगा है कि यह चुनाव ‘विकास की राजनीति’ के ‘सैचुरेटेड पॉइंट’ पर पहुंचने का संकेतक है। 21वीं सदी में पिछले 18 वर्षों में देश में हुए ‘राजनीति के विकास’ का इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि देश में आम चुनाव ‘लोकतंत्र’ के ऐसा प्रयोग था, जिसमें ‘ट्रायल एंड एरर मेथड’ में गलती करने की स्वतंत्रता पर कोई बंदिश नहीं थी; उसमें गलती करने की ‘सजा’ भुगतने सहित खुद को निरंतर बदलने की स्वतंत्रता थी।

और, कोई परिणाम ‘अंतिम सत्य’ नहीं था। लेकिन मतदान के पांच चरण के बाद से यह साफ़ दिखने लगा है कि चुनाव-2019 देश के राजनीतिक भविष्य और सत्ता-राजनीति की दृष्टि और दिशा के लिए ऐसा ‘टर्निंग पॉइन्ट’ साबित होगा, जो ‘पॉइन्ट ऑफ़ नो रिटर्न’ भी साबित हो सकता है। यानी 23 मई के बाद चाहे या अनचाहे, भारत ‘इतिहास’ के नये रास्ते पर चलेगा। चुनाव परिणाम से तय होगा कि भारत इतिहास के इस नये रास्ते पर चलने को कितना प्रेरित है और कितना मजबूर? 23 मई के बाद यह समझ में आयेगा कि इतिहास का यह नया रास्ता इतिहास के पुराने रास्ते से कितना ‘अलग’ होगा, कितना कंटकाकीर्ण होगा, कितना सुहाना होगा?

यह तो जाहिर है कि चुनाव-2019 का मुख्य निर्णयकर्ता है – भारत का युवा वोटर। इसलिए यह भी तय है कि देश की गाड़ी को ‘इतिहास’ के इस नये रास्ते पर ले जानेवाला ‘ड्राइविंग फ़ोर्स’ भी वही होगा। लेकिन उसे इतिहास के पुराने रास्तों के बारे में कितनी जानकारी है, जिनसे होकर देश गुजरा? पांच चरण के मतदान के दौरान युवा वोटरों की भूमिका ने अक्सर यह संकेत भी दिया कि आज का युवा इस सवाल में बेहद उलझा हुआ है कि भावी इतिहास के लिए बीते इतिहास में क्यों पड़ना और बीते इतिहास को क्यों पढ़ना?

इसलिए हमने यह उचित समझा कि नयी पीढ़ी को चंद कविताओं के माध्यम से बीते इतिहास की उन कुछ पगडंडियों से अवगत कराया जाए, जो वर्तमान के ‘राजमार्ग’ से जुड़ने की ललक में कहीं ‘गुम’ हैं और कहीं उनको गुमनामी के गर्त में धकेल कर ‘गायब’ घोषित किया जा रहा है! यह बात भी है कि 23 के बाद नयी पीढ़ी को इन या ऐसी कविताओं से होकर गुजरने का मौक़ा मिले या ना मिले? (अगर युवा पीढी को ये कवितायें रास आएं, इनमें वर्तमान का इतिहास नजर आये, तो यह अपेक्षा रहेगी कि वह इंनके रचयिता के ‘नाम’ का पता-ठिकाना खोज लेगी। —(वरिष्ठ पत्रकार हेमंत नीचे दी जा रही कविताओं के प्रस्तुतकर्ता।)

सात चरणों के चुनावों पर सात कविताएं

पानी पानी

पानी पानी

बच्चा बच्चा

हिंदुस्तानी

मांग रहा है

पानी पानी।

जिसको पानी नहीं मिला है

वह धरती आजाद नहीं

उस पर हिंदुस्तानी बसते हैं

पर वह आबाद नहीं

पानी पानी

बच्चा बच्चा

मांग रहा है

हिंदुस्तानी।

जो पानी के मालिक हैं

भारत पर उनका कब्जा है

जहाँ न दें पानी वहां सूखा

जहाँ दें वहां सब्जा है

अपना पानी

मांग रहा है

हिंदुस्तानी।

बरसों पानी को तरसाया

जीवन को लाचार किया

बरसों जनता की गंगा पर

तुमने अत्याचार किया

हमको अक्षर नहीं दिया है

हमको पानी नहीं दिया

पानी नहीं दिया तो समझो

हमको बानी नहीं दिया

अपना पानी

अपनी बानी हिंदुस्तानी

बच्चा बच्चा मांग रहा है।

धरती के अन्दर का पानी

हमको बाहर लाने दो

अपनी धरती अपना पानी

अपनी रोटी खाने दो

पानी पानी

पानी पानी

बच्चा बच्चा

मांग रहा है

अपनी बानी

पानी पानी

पानी पानी

पानी पानी।

आने वाला खतरा

इस लज्जित और पराजित युग में

कहीं से ले आओ वह दिमाग

जो खुशामद आदतन नहीं करता

कहीं से ले आओ निर्धनता

जो अपने बदले में कुछ नहीं मांगती

और उसे एक बार आंख से आंख मिलाने दो

जल्दी कर डालो की फलने-फूलने वाले हैं लोग

औरतें पियेंगी आदमी खायेंगे – रमेश

एक दिन इसी तरह आयेगा – रमेश

कि किसी की कोई राय न रह जाएगी – रमेश

क्रोध होगा पर विरोध न होगा

अर्जियों के सिवाय – रमेश

ख़तरा होगा खतरे की घंटी होगी

और उसे बादशाह बजाएगा – रमेश।

आप की हंसी

निर्धन जनता का शोषण है

कह कर आप हंसे

लोकतंत्र का अंतिम क्षण है

कह कर आप हँसे

सबके सब हैं भ्रष्टाचारी

कह कर आप हंसे

चारों और बड़ी लाचारी

कह कर आप हँसे

कितने आप सुरक्षित होंगे

मैं सोचने लगा

सहसा मुझे अकेला पा कर

फिर से आप हँसे

रामदास

चौड़ी सड़क गली पतली थी

दिन का समय घनी बदली थी

रामदास उस दिन उदास था

अंत समय आ गया पास था

उसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी।

धीरे-धीरे चला अकेले

सोचा साथ किसी को ले ले

फिर रह गया, सड़क पर सब थे

सभी मौन थे सभी निहत्थे

सभी जानते थे यह उस दिन उसकी हत्या होगी।

खडा हुआ वह बीच सड़क पर

दोनों हाथ पेट पर रखकर

सधे कदम रख करके आये

लोग सिमट कर आँख गड़ाये

लगे देखने उसको जिसकी तय था हत्या होगी।

निकल गली से तब हत्यारा

आया उसने नाम पुकारा

हाथ तोलकर चाकू मारा

छूटा लहू का फव्वारा

कहा नहीं था उसने आखिर उसकी हत्या होगी।

भीड़ देख कर लौट गया वह

मरा पड़ा है रामदास यह

देखो देखो बार बार कह

लोग निडर उस जगह खड़े रह

लगे बुलाने उन्हें जिन्हें संशय था हत्या होगी।

बुद्धिजीवी का वक्तव्य

मरने की इच्छा समर्थ की इच्छा है

असहाय जीना चाहता है

आओ सब मिलकर उसे बस जीवित रखें

सब नष्ट हो जाने की कल्पना

शासक की इच्छा है

आओ हम सब मिलकर

उसे छोड़ बाकी सब नष्ट करें

सुन्दर है सर्वनाश

वही सर्वहारा के कष्टों को सार्थक करता

और हमारे कष्टों को मनोरंजक भी

पैदल आदमी

जब सीमा के इस पार पडी थी लाशें

तब सीमा के उस पार पडी थी लाशें

सिकुड़ी ठिठुरी नंगी अनजानी लाशें

वे उधर से इधर आ करके मरते थे

या इधर से उधर जा करके मरते थे

यह बहस राजधानी में हम करते थे

हम क्या रुख लेंगे यह इस बात पर निर्भर था

किसका मरने से पहले उनको डर था

भुखमरी के लिए अलग-अलग अफसर था

इतने में दोनों प्रधानमंत्री बोले

हम दोनों में इस बरस दोस्ती हो ले

यह कहकर दोनों ने दरवाजे खोले

परराष्ट्र मंत्रियों ने दो नियम बताए

दो पारपत्र उसको जो उड़कर आये

दो पारपत्र उसको जो उड़कर जाये

पैदल को हम केवल तब इज्जत देंगे

जब देकर के बंदूक उसे भेजेंगे

या घायल से घायल अदले-बदलेंगे

पर कोई भूखा पैदल मत आने दो

मिट्टी से मिट्टी को मत मिल जाने दो

वरना दो सरकारों का जाने क्या हो

राष्ट्रीय प्रतिज्ञा

हमने बहुत किया है

हम ही कर सकते हैं

हमने बहुत किया है

पर अभी और करना है

हमने बहुत किया है

पर उतना नहीं हुआ है

हमने बहुत किया है

जितना होगा कम होगा

हमने बहुत किया है

हम फिर से बहुत करेंगे

हमने बहुत किया है

पर अब हम नहीं कहेंगे

कि हम अब क्या और करेंगे

और हमसे लोग अगर कहेंगे कुछ करने को

तो वह तो कभी नहीं करेंगे।

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