भारतीय मूल के वैज्ञानिक एसएस वासन की मदद से आस्ट्रेलिया 6 महीने में तैयार सकता है कोरोना वायरस वैक्सीन
कोरोनो वायरस वैक्सीन विकसित करने में मदद कर सकता है भारतीय मूल के वैज्ञानिक का काम, कोरोना वायरस के खिलाफ टीका विकसित करने के करीब पहुंचे प्रो वासन..
जनज्वार। चीन में कोरोना वायरस से हाहाकार मचा हुआ है। मेडिकल साइंस में इस वायरस का इलाज अभी तक नहीं ढूंढा जा सका है। पूरी दुनिया के डॉक्टर इसका इलाज ढूंढने में लगे हुए हैं। इसी बीच भारतीय मूल के एक ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक एस एस वासन ने उम्मीद की किरण दिखाई है। प्रोफेसर वासन इस खतरनाक वायरस के खिलाफ टीका विकसित करने के बहुत करीब हैं। प्रोफेसर वासन के साथ मिलकर वैज्ञानिकों के एक ग्रुप ने चीन के बाहर पर्याप्त मात्रा में इस एंटी वायरस को उत्पन्न करने में सफलता पाई है। अब इसका अध्ययन किया जा रहा है और इससे निकलने वाले निष्कर्षों के आधार पर वैक्सीन बनाया जाएगा, जो इस वायरस से बचाव करेगा।
वासन ने राजस्थान स्थित बिट्स पिलानी से रसायन विज्ञान में बीई और एमएससी और बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) से इंजीनियरिंग में एमएससी किया है। वे ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन (CSIRO) में डॉक्टरों के एक ऐसे टीम का नेतृत्व करते हैं जो पैदा होनेवाली खतरनाक रोगों के उपचार के लिए दवाईयों के विकास पर काम करता हैं। वे कोरोना वायरस से इलाज के लिए बनाई जा रही वैक्सिन परियोजना के भी सबसे प्रमुख रिसर्चर भी हैं।
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प्रो. वासन को अन्य वैज्ञानिकों के साथ के गठबंधन द्वारा महामारी संबंधी तैयार नवाचारों (CEPI) के लिए चुना गया था। सीईपीआई नॉर्वे में स्थित एक "सार्वजनिक-निजी गठबंधन" है, जिसका उद्देश्य टीका विकास प्रक्रिया को तेज गति से आगे बढ़ाकर महामारी पर अंकुश लगाना है।
बता दें कि 2014 में एमईआरएस (Middle East respiratory syndrome-related coronavirus) के एक छिटपुट प्रकोप के कारण वायरस पैदा हुआ, जिसने सैकड़ों लोगों प्रभावित हुए थे। एमईआरएस का भी दुनिया भर से नमूने इस प्रयोगशाला में भेजे गए थे जिसपर काफी रिसर्च हुआ था।
एसएआरएस (Severe acute respiratory syndrome) महामारी से पहले के वर्षों में यह लैब खोला गया था जो कारोना वायरस के अध्ययन करने में तो सबसे आगे है ही, इसके अलावा इससे पहले एसएआरएस और एमईआरएस जैसी घातक बीमारियों के बाद अब कोरोना वायर के खिलाफ रिसर्च में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
यहां किए जा रहे रिसर्च का लक्ष्य वायरस की प्रमुख विशेषताओं की पहचान करना है और यह कैसे काम करता है इसकी बेहतर समझ हासिल करना है। फिर इस जानकारी का उपयोग वैक्सीन बनाने के लिए किया जाएगा।
रिसर्च के दौरान डोहर्टी इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने एक संक्रमित व्यक्ति के नमूने से वायरस को अलग सफलता हासिल की। उसके बाद उसे प्रयोगशाला वातावरण में पैदा किया गया जहां अब इसे आगे के अध्ययन के लिए उपयोग किया जाएगा।
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दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में निमोनिया जैसे लक्षणों का एक समूह पहली बार देखा गया था। लगभग दो महीनों के भीतर यह दुनिया भर में 20,000 से अधिक मामलों के साथ 20 से अधिक देशों में फैल गया है, जिनमें से अधिकांश चीन से आए हैं। जिसे देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन को जनवरी में दुनियाभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी थी।
विश्वभर में विशेषज्ञों की कई टीमें कोरोनावायरस के लिए जल्द से जल्द टीका विकसित करने की कोशिश में जुटी हैं। इस कदम को अंतरराष्ट्रीय स्तर के गठबंधन का समर्थन प्राप्त है और ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे छह महीने के भीतर अपना टीका तैयार कर लेंगे।