भारत की सबसे कम उम्र (8 वर्षीय) की क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट है लिंसिप्रिया कंगुजम, संसद भवन के सामने कर चुकी हैं विरोध प्रदर्शन, क्लाइमेट चेंज के लिए कर रही कानून की मांग...
जनज्वार। भारत की सबसे कम उम्र की क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट लिंसिप्रिया कंगुजम इन दिनों चर्चाओं में है। जिस उम्र के बच्चे जब स्कूल जा रहे होते हैं उस उम्र में लिंसिप्रिया ने स्कूल छोड़कर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत की संसद के बाहर प्रदर्शन किया था। लिंसिप्रिया ने फरवरी 2019 में जब भुवनेश्वर में स्थित स्कूल छोड़ा था तब वह मात्र सात साल की थीं। उसी साल जुलाई महीने में लिंसिप्रिया ने पोस्टर दिखाकर प्रदर्शन किया था जिन पोस्टरों में लिखा गया था- डियर मिस्टर मोदी एंड एमपी, पास द क्लाइमेट चेंज लॉ, एक्ट नाऊ।
बेशक यह दृश्य 17 वर्षीय स्वीडिश क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग की याद दिलाता है। 2018 में ग्रेटा थनबर्ग ने स्वीडन की संसद भवन रिक्सडैग के बाहर खड़े होकर विरोध किया था। लिंसिप्रिया इसका अपवाद नहीं है। तब से भारतीय मीडिया लिंसिप्रिया को भारत की ग्रेटा बता रहा है। हालांकि 27 जनवरी को उसने ट्विटर पर एक ट्वीट के माध्यम से मीडिया से आग्रह किया कि मुझे भारत की 'ग्रेटा' के रूप में लेबल करना बंद कर दिया जाए। अगर आप मुझे भारत की ग्रेटा कहते हैं तो आप मेरी कहानी को कवर नहीं कर रहे हैं। आप एक कहानी को हटा रहे हैं। लिंसिप्रिया ने एक दूसरे ट्वीट में कहा था कि मुझे भारत की ग्रेटा कहना बंद किया जाना चाहिए। हम दोनों का लक्ष्य एक ही है लेकिन हमारा एक्टिविज्म भिन्न है। मेरी अपनी पहचान है।
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मणिपुर की लिंसिप्रिया को ग्लोबल पीस इंडेक्स इंस्टीट्यूट से वर्ल्ड चिल्ड्रन पीस प्राइज और 2019 के यूनाइटेड नेशन क्लाइमेट चेंज समिट में सबसे कम उम्र की वक्ता बनने के लिए इंटरनेशन यूथ कमिटी की ओर से इंडियन पीस प्राइज भी मिल चुका है। ये पुरस्कार पाने वाली वह सबसे कम उम्र की युवा हैं। यह स्पष्ट है कि बीते दो वर्षों से लिंसिप्रिया जलवायु परिवर्तन की तात्कालिकता के प्रति बेहद संजीदा है। विशेष रूप से भारत जैसे देश में जहां जलवायु परिवर्तन के लाखों लोगों को प्रभावित करेंगे।
लिंसिप्रिया ने वाइस को दिए एक इंटरव्यू के दौरान जब पूछा गया कि आपको भारत में जलवायु परिवर्तन कानूनों की आवश्यकता के बारे में पहली बार कब पता चला? तो उन्होंने जवाब में कहा कि मैं बहुत छोटी उम्र से अपने पिता के साथ विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों, बैठकों, सेमिनारों और कार्यशालाओं में भाग ले रहा हूं। पर्यावरण के लिए प्यार और देखभाल करना मेरे खून में है। 2015 में नेपाल में आए भूकंप के दौरान मैं अपने पिताजी के साथ पीड़ित बच्चों और परिवारों की मदद के लिए धन जुटाने के लिए गयी थी। जब मैंने बच्चों को अपने माता-पिता और लोगों के घरों में खोते देखा तो मैं रो पड़ी। फिर जुलाई 2018 में मैं छह साल की थी। तब मुझे मंगोलिया की राजधानी उलानबातार में आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2018 (AMCDRR 2018) के लिए एशिया मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भाग लेने का अवसर मिला। यही वह जगह है जहां मैंने पहली बार विश्व नेताओं के सामने अपनी बात रखी। यह जीवन-परिवर्तन था। मैंने कई महान नेताओं और विभिन्न देशों के हजारों प्रतिनिधियों से मुलाकात की।
जब उनसे सवाल किया गया कि कई भारतीय इस बात से इनकार करते हैं कि जलवायु परिवर्तन भी हो रहा है। आप उनसे और इंटरनेट ट्रोलर्स को क्या कहती हैं? इस पर लिंसिप्रिया कहती हैं कि अधिकतर इनकार करने वाले राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता हैं जो हमारे आंदोलन को दबाने के लिए अपनी ओर से इस तरह का प्रचार करते हैं। लेकिन बच्चे जानते हैं कि जलवायु कैसे बदल रही है। वे इसे महसूस कर सकते हैं।
पिछले साल जुलाई माह में संसद भवन के सामने खड़े होकर जलवायु परिवर्तन कानून पारित करने के आग्रह का अनुभव बताते हुए लिंसिप्रिया कहती हैं, 'मैं बहुत अकेली थी और यहां तक कि एक दिन रोयी भी जब पुलिस और सुरक्षाबलों ने मुझे छोड़ने के लिए कहा। दिल्ली गर्मियों में बहुत गर्म है, इसलिए मुझे हीटवेव और कभी-कभी भारी बारिश का सामना करना पड़ा। इस सब के बावजूद मैंने संसद भवन के सामने कई सप्ताह बिताए। मेरा आंदोलन 2018 में शुरू हो गया था, लेकिन दुनिया इस संसद के विरोध के बाद ही मुझे सही मायने में जान पाई। मेरे विरोध के बाद छह जुलाई (सत्तारूढ़ और विपक्ष दोनों से) से अधिक लोगों ने 24 जुलाई को पहली बार भारत के इतिहास में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लोकसभा में उठाया गया। मैं तब अपने विरोध के प्रभाव को महसूस कर रही थी।'
स्कूल छोड़ने के सवाल पर लिंसिप्रिया कहती हैं कि मेरा स्कूल भुवनेश्वर में है जो नई दिल्ली के संसद भवन से लगभग 3,000 किलोमीटर दूर है। विरोध करने के लिए प्रत्येक हफ्ते यात्रा करना मेरे लिए असंभव है क्योंकि इतना धन व्यय होगा। लेकिन कई राष्ट्रीय, स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने मुझे आमंत्रित किया, वह मुझे विभिन्न आयोजनों के लिए बोलने के लिए आमंत्रित करते थे। इसके कारण स्कूल जाने में प्रमुख समस्याएं हुईं। क्या मुझे इन निमंत्रणों को स्वीकार या अस्वीकार करना चाहिए? 2019 के अधिकांश दिन मैने विरोध प्रदर्शनों, आंदोलनों और कार्यक्रमों में भाग लेने में बिताए गए थे। यही कारण है कि मैंने स्कूल छोड़ दिया और इसके बजाय घर ही स्कूल हो गया। इस महीने हालांकि, मैंने स्कूल फिर से शुरू किया और केवल सप्ताहांत और छुट्टियों पर निमंत्रण स्वीकार करने का फैसला किया है। एकमात्र अपवाद संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक घटनाएं हैं।
माता पिता की ओर से मिल रहे समर्थन के बारे में लिंसिप्रिया कहती हैं, 'मेरी मां ने सबसे पहले मेरा समर्थन नहीं किया क्योंकि वह मेरी पढ़ाई के बारे में अधिक चिंतित है। लेकिन मेरे संघर्ष के सकारात्मक प्रभाव को देखने के लगभग एक साल बाद उन्होने मेरा समर्थन करना शुरू कर दिया। लेकिन मेरे पिता शुरू से ही मेरे साथ खड़े हैं। वह मेरे सच्चे हीरो हैं।
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भारत में जलवायु परिवर्तन को लेकर लिंसिप्रिया ने कहा, 'मुझे लगता है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए हमें जमीनी स्तर से लेकर वैश्विक स्तर तक बदलाव की जरूरत है। भारत में मैं मुख्य रूप से तीन नीतियों को बदलने के लिए लड़ रही हूं। पहला, मैं चाहती हूं कि हमारी सरकार एक जलवायु कानून बनाए ताकि हम कार्बन उत्सर्जन और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को विनियमित कर सकें। यह हमारे नेताओं के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही लाएगा और लाखों गरीब लोगों को भी लाभान्वित करेगा। दूसरा, मैं स्कूल के पाठ्यक्रम में एक विषय के रूप में जलवायु परिवर्तन का अनिवार्य रुप से शामिल करने के लिए लड़ रही हूं। अंत में, मैं अपनी अंतिम परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए भारत भर में प्रति छात्र कम से कम 10 वृक्षारोपण की वकालत करती हूं। हमारे पास 350 मिलियन छात्र हैं और अगर वे हर साल इतने पेड़ लगाते हैं तो हम एक साल में 3.5 बिलियन पेड़ लगाएंगे।'
लिंसिप्रिया से जब पूछा गया कि वैश्विक संदर्भ में आपने किन पर्यावरणीय मुद्दों को उठाया है? तो वह कहती हैं, 'मैं वर्तमान में जापान में एक नए मिशन के लिए तैयार हूं। वहां मैं टोक्यो ओलंपिक गेम्स 2020 के दौरान 'ग्रीन ओलंपिक' नामक एक पहल शुरू करूंगी। इस चार्टर के प्रमुख बिंदुओं में जापानी सरकार द्वारा आयोजन से जुड़े सभी उत्सर्जन की गणना और ऑफसेट करना शामिल है।