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राजनीति

क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी की रिपोर्ट : जलवायु परिवर्तन से भारत में हर साल हो रही 3661 लोगों की मौत

Nirmal kant
13 Nov 2019 7:13 AM GMT
क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी की रिपोर्ट : जलवायु परिवर्तन से भारत में हर साल हो रही 3661 लोगों की मौत
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क्लाइमेंट ट्रांसपेकरी की ब्राउन टू ग्रीन रिपोर्ट-2019 मे जलवायु परिवर्तन के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को बड़ी वजह माना गया है। जिसमें 80 फीसदी गैसों के उत्सर्जन के लिए जी-20 देशों को जिम्मेदार माना गया है...

जनज्वार, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन भारत समेत पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गई है। विकासशील देशों के साथ साथ विकसित देश भी जलवायु परिवर्तन की समस्या से अछूते नहीं है। पिछले दिनों दुनिया के 11000 रिर्सचर और वैज्ञानिकों ने पत्र जारी कर जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया को चेताया था और अपनी जीवनशैली मे बदलाव करने के लिए कहा था। लेकिन जलवायु परिवर्तन का खतरा भारत सहित जी- 20 देश में काफी घातक हो चुका है।

सका अंदाजा दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर नजर रखने वाले 'क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी’ नाम की वैश्विक संस्था की उस रिपोर्ट में लगाया गया है जिसमें जी-20 देशों में 1998 से 2017 क बीच हुई हजारों मौतों का ब्यौरा दिया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनिया में औसतन 12 हजार लोगों की मौत जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही है। जिसमें केवल भारत में ही औसतन हर साल 3661 लोगों की मौतों का कारण जलवायु परिवर्तन है। इसके साथ ही जी-20 देशों को औसतन 142 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है।

क्लाइमेंट ट्रांसपेकरी की ब्राउन टू ग्रीन रिपोर्ट-2019 मे जलवायु परिवर्तन के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को बड़ी वजह माना गया है। जिसमें 80 फीसदी गैसों के उत्सर्जन के लिए जी-20 देशों को जिम्मेदार माना गया है।

हांलाकि रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के सुधार के लिए भारत की तारीफ भी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले भारत ने ही ठोस और दीर्घकालीन प्रयास किए है जिससे धरती के बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री के आसपास ही सीमित रखा गया है। इस दौरान भारत की ओर से वैकल्पिक ऊर्जा के बढ़ावा देने के लिए तारीफ की गई है।

खासबात यह है कि यह रिपोर्ट ऐसे समय में आयी है, जब पेरिस समझौते के तहत धरती के बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेंट्रीग्रेट से नीचे रखने का लक्ष्य दिया गया है। इसमें दुनिया के सभी विकसित देशों को उन देशों को आर्थिक मदद भी देना है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के उपायों को तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं। इनमें भारत भी शामिल है। जहां पिछले कुछ सालों में वन क्षेत्र को बढ़ाने में सफल रहा है

रिपोर्ट मे जी-20 के जिन और देशों में औसतन सालाना मौत के आंकड़े ज्यादा है, उनमें भारत के बाद दूसरे नंबर पर रूस है। जहां हर साल औसतन 2944 लोगों की मौत जलवायु परिवर्तन के कारण हुई है, वहीं तीसरे नंबर पर फ्रांस जहां 1121 मौते, चौंथे नंबर पर इटली जहां 1005 मौते, पांचवे स्थान पर जर्मनी है जहा हर साल 475 लोगों की मौत हुई है।

हांलाकि इससे चलते होने वाले आर्थिक नुकसान में सबसे ज्यादा नुकसान जिन देशों में हुआ है। उनमें अमेरिका सबसे शीर्ष पर है जिसमें सलाना 48 हजार मिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है, इसके बाद चीन है जिसे 36 हजार मिलियन का नुकसान हुआ है।

लवायु परिवर्तन के बदलावों का यह अध्ययन दुनिया के 181 देशों में किया गया है जो अलग अलग 80 मानकों पर तैयार की गई है इसके लिए दुनिया के 14 शीर्ष अनुसंधान संगठनों से जुड़े विशेषज्ञों की मदद ली गई है। इनमें भारत से भी ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान नई दिल्ली की मदद ली गई है।

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