ऐसा मेरा देश महान!

Update: 2017-10-26 11:27 GMT

देश में एक बच्ची सिर्फ इसलिए मर जाती है क्योंकि उसको मेरे सरकार की तरफ से मिलने वाला अनाज नहीं मिलता...

उदय राम

जब बचपन में स्कूल जाते थे तो ट्रकों, मकान के आगे, स्कूल के गेट पर लिखा मिलता था मेरा भारत महान। बच्चे थे तो समझ नहीं पाते थे मतलब, टीचर से पूछा तो बताया था कि मेरा जो भारत है वो सबसे अच्छा है।

पूरी दुनिया में सबसे अच्छा, सर्वोपरि है। यहां 6 ऋतुएं हैं, दुनिया के महान ग्रंथ हैं, दुनिया में सबसे अच्छा खान-पान, स्वास्थ्य, चिकित्सा हमारी है। अनाज के भंडारों से भरा हुआ, धन-धान्य से भरपूर, सोने की चिड़िया, बंधुत्व के सिद्धांत पर चलने वाला, मानवता के लिए सबको शरण देने वाला।

ये शब्द जैसे ही मेरे टीचर ने हमको सुनाए दिल खुशी से भर गया। ऐसा लगा जैसे इस भारत की धरती पर जन्म लेना मेरे पिछले जन्मों का फल है। शायद हम भारत के लोगों ने बहुत अच्छे कर्म पिछले जन्मों में किये होंगे, तभी इस महान देश की महान धरती पर जन्म मिला। अक्सर पंडितों को सुना था बोलते हुए की जो इंसान पिछले जन्मों में अच्छे कर्म करता है तो भगवान उसको नए जन्म में अच्छी जगह जन्म देता है ताकि वो सुखी रहे। इस जन्म में अच्छे करेगा तो अगला जन्म सुधर जाएगा।

लेकिन बचपन में जब कुछ जातियों के साथ भेदभाव देखते, उनके साथ छुआछूत देखते तो मन में सवाल उठता की इनके साथ ऐसा व्यवहार क्यों।

जब बिहार, बंगाल या पूर्व के मजदूर धान लगाने या कटाई करने आते तो उनके साथ ऐसा बुरा व्यवहार किया जाता, उनके साथ हम जिनको छोटी जात मानते थे वो भी बुरा व्यवहार करते। उनको बिहारी या पूरबिया कहते। जब वो काम करके अपने घर लौट जाते तो यहाँ के लोग सबसे फटेहाल दिखने वाले को घृणा की नजर से देखते और पूरबिया या बिहारी कहते। इनको देखकर लगता कि इन्होंने हमारे मुकाबले पिछले जन्मों में और ज्यादा कम अच्छे कर्म किये होंगे तभी तो इनको बिहार, बंगाल, असम की तरफ जन्म मिला।

मेरा भारत महान कभी था ही नहीं... महान भारत सूदखोरों, काला बाजारियों, मुनाफाखोरों, पूंजीपतियों, सामंतियों, धार्मिक आडम्बरियों, जात के ठेकेदारों का था और अब भी है।

मेरे भारत के लोग मेहनत करते हैं, अन्न उगाते हैं फिर भी भूख से मरते हैं। दूध, दही, घी, सब्जी, फल, पैदा करते हैं, लेकिन फिर भी ये और इनके बच्चे इनको खा नहीं सकते इनको खाते हैं महान देश के लुटेरे, और हम कुपोषण में पैदा होते हैं और कुपोषण में ही मर जाते हैं।

देश के बच्चे अस्पताल में बिना आॅक्सीजन के मर जाते हैं। पूरे विश्व मे सबसे ज्यादा कुपोषण, खून की कमी, भुखमरी, बच्चों की मृत्युदर, मेरे मुल्क में। लेकिन महान मुल्क के लोग व उनके बच्चे बिना मेहनत किये ऐशोआराम की जिंदगी व्यतीत करते हैं। गाड़ी, बस, रेल, हवाई जहाज, स्कूल, अस्पताल, होटल, मॉल सब महान मुल्क के लोगों के लिए है।

देश में एक बच्ची सिर्फ इसलिए मर जाती है क्योंकि उसको मेरे सरकार की तरफ से मिलने वाला अनाज नहीं मिलता। क्योंकि शासन—प्रशासन ने जो नई पहचान सबके लिए जारी की थी, वो उसके परिवार के पास नहीं था।

किसान मेरे मुल्क के महान देश के महान शहर में आकर रहम-रहम चिल्लाते हैं, वो नंगे होकर प्रदर्शन करते हैं। मेरे मुल्क के कुछ लोग गाय खरीद कर लाते हैं, ताकि बच्चों को दूध पिला सके, लेकिन महान मुल्क के लोग उनको घेरकर मार देते हैं, फिर हंसते हैं उनकी मौत पर। मेरे मुल्क के एक लड़के को वो पीटते हैं, उसको गायब करते हैं। आज तक वो गायब ही हैं, जब भी ढूंढने की गुहार महान मुल्क के लोगों से की, ढूंढना तो दूर लाठियां खाई।

मेहनतकश जब गैर बराबरी के खिलाफ, पिटाई के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो महान मुल्क के लोग उनका बहिष्कार कर देते है। कभी महान मुल्क के लोग मेरे मुल्क के इंसानों को गाड़ी से बांध कर पीटते हैं, कभी गोबर खिलाते हैं तो कभी थूक चटवाते हैं।

महान मुल्क के लुटेरों की लूट के कारण मुल्क के 3 लाख मेहनतकश किसान पिछले 20 साल में मर गए, महान मुल्क के लोगों द्वारा फैलाई गन्दगी के गटर को साफ करने के लिए हर साल मेरे मुल्क के 22 हजार गरीब लोग गटर में ही समा जाते हैं।

महान देश के जालिमों ने कल ही तमिलनाडु में एक गरीब की जान ले ली। एक गरीब इंसान ने 1.40 लाख सूद पर लिए, 7 महीने में 2 लाख से ज्यादा लौटा भी दिए, फिर भी महान भारत के जालिम इसको तंग कर रहे थे और रुपया देने के लिए धमकियां दे रहे थे। गरीब इंसान ने तंग आकर खुद को और अपने 2 मासूम बच्चों को आग के हवाले कर दिया।

भारत वाकई तब महान बनेगा जब कोई मेहनतकश किसान आत्महत्या न करे, कोई गटर में न समा पाए, स्कूल, अस्पताल के दरवाजे सबके लिए खुले हों, कोई किसी की मेहनत को लूट कर अय्याशियां न करे। किसी मां का नजीब गायब न हो। उस दिन मेरे मुल्क के लोग महान होंगे।

जावेद अख्तर लिखते भी हैं, एक हमारी और एक उनकी/ मुल्क में हैं आवाजें दो। /अब तुम पर है कौन सी तुम /आवाज सुनो तुम क्या मानो....

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