गगनयान मिशन के लिए लेडी रोबोट 'व्योमित्र' को अंतरिक्ष में भेजेगा ISRO

Update: 2020-01-29 06:46 GMT

व्योममित्र अंतरिक्ष में लाइफ सपोर्ट सिस्टम का पता लगाएंगी और वहां से रिपोर्ट इसरो को भेजेंगी। यह इसरो का मानव युक्त गगनयान भेजने से पहले का ट्रायल मिशन होगा। इसरो के प्रमुख के सीवन ने अपने इस ट्रायल मिशन का परीक्षण दिसंबर 2020 तक करने की बात कही है...

जनज्वार। हाल ही में इसरो ने ‘व्योमित्र’ नामक ह्यूमनॉइड रोबोट को प्रदर्शित किया। यह एक लेडी रोबोट है जिसका नाम इसरो द्वारा 'व्योमित्र' रखा गया है। व्योमित्र भारत की तरफ से अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला रोबोट होंगी। यह न केवल इंसानों की तरह बात करेंगी बल्कि अंतरिक्ष में काम भी करेंगी। इसे गगनयान को लॉन्च करने से पहले अन्तरिक्ष में भेजा जाएगा। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अब भारत भी अन्य देशों को टक्कर दे रहा है।

क्या है हाफ ह्यूमनाॅयड व्योमित्र

व्योमित्र, जो कि एक महिला रोबोट है। हाफ ह्यूमनाॅयड यानि इसके पैरों वाला हिस्सा नहीं है। ह्यूमनाॅयड व्योमित्र इसरो ने बनाया है। ह्यूमनाॅयड व्योमित्र का उपयोग आगामी गगनयान मिशन के लिए किया जायेगा। भारत के पहले मानव युक्त गगनयान मिशन में इसरो सबसे पहले व्योमित्र को अंतरिक्ष में भेजकर वहां के वातावरण की अनुकूलता मानव शरीर के लिए किस प्रकार की है, इस बात का पता लगाएगा।

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व्योमित्र एस्ट्रोनाॅट क्रू की तरह हर एक काम कर सकती हैं। व्योममित्र अंतरिक्ष में लाइफ सपोर्ट सिस्टम का पता लगाएंगी और वहां से रिपोर्ट इसरो को भेजेंगी। यह इसरो का मानव युक्त गगनयान भेजने से पहले का ट्रायल मिशन होगा। इसरो के प्रमुख के सीवन ने अपने इस ट्रायल मिशन का परीक्षण दिसंबर 2020 तक करने की बात कही है।

सी मिशन के साथ भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा जिनके पास स्पेस रिसर्च प्रोग्राम के लिए ह्यूमनाॅयड है। ह्यूमनॉइड रोबोट का उपयोग कर भारत अन्य देशों को टक्कर देते हुए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कुशलता के साथ आगे बढ़ रहा है।

Full View ने कही अपनी बात

सरो ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भारत की पहली ह्यूमनाॅयड व्योमित्र को देश के सामने प्रस्तुत किया। व्योममित्र ने अपनी बात कहकर सबको आश्चर्चकित कर दिया। व्योममित्र ने कहा अंतरिक्ष यात्री जिस प्रकार काम करते हैं वह उनकी नक़ल कर सकती है, अंतरिक्ष यात्रियों को पहचान सकती है और उनके सवालों के जवाब भी दे सकती है। इसरो ने सार्वजनिक बयान जारी करते हुए कहा की उन्हें अपनी पहली महिला ह्यूमनाॅयड के नाम 'व्योमित्र' पर गर्व है।

क्या है मिशन गगनयान

सरो के ख़ास मिशन गगनयान पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुईं हैं। इस मिशन में तीन अन्तरिक्ष यात्रियों को 5-7 दिनों के लिए अन्तरिक्ष में भेजा जायेगा। भारत ऐसा कारनामा करने वाला चौथा देश बनेगा। भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) ने मिशन गगनयान के लिए दिसम्बर 2021 तक का लक्ष्य निर्धारित किया है। गगनयान के लिए अन्तरिक्ष यात्रियों को शुरूआती प्रशिक्षण भारत में ही दिया जायेगा। बाद में आगे के प्रशिक्षण के लिए रूस भेजा जा सकता है।

हाल ही में केन्द्रीय कैबिनेट ने मिशन गगनयान के लिए 10,000 करोड़ रुपये के बजट को भी मंजूरी दी थी। यह मिशन पूर्ण रूप से स्वदेशी होगा। इस मिशन के वास्तविक लांच से पहले इसरो बिना मानव के दो मिशन लांच करेगा। बिना मानव के शुरुवाती दोनों मिशन में ह्यूमनॉइड रोबोट व्योमित्र को भेजा जायेगा। पहला मिशन 30 महीने में तथा दूसरा मिशन 36 महीने बाद लांच किया जायेगा।

गनयान मिशन के लिए जीएसएलवी मार्क-III लांच व्हीकल का उपयोग किया जायेगा। मिशन गगनयान के स्पेस क्राफ्ट में एक क्रू मॉड्यूल तथा एक सर्विस मोड्यूल होगा। इसका भार लगभग 7 टन होगा। इस स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी की कक्षा में 300-400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जायेगा। क्रू मोड्यूल का आकार 3.7 मीटर तथा सर्विस मोड्यूल का आकार 7 मीटर होगा।

स मिशन को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से लांच किया जायेगा। यह स्पेसक्राफ्ट 16 मिनट में अपेक्षित ऊंचाई पर पहुंच जायेगा। इस मिशन के लिए क्रू का चयन भारतीय वायुसेना व इसरो द्वारा संयुक्त रूप से किया जायेगा। बाद में इस क्रू को 2-3साल तक प्रशिक्षण दिया जायेगा। वापसी के लिए मॉड्यूल के वेग को कम किया जाएगा और इसे विपरीत दिशा में घुमाया जायेगा।

Full View यह पूरा मॉड्यूल पृथ्वी की सतह से 120 किलोमीटर की दूरी पर पहुंचेगा तो सर्विस मॉड्यूल को अलग किया जायेगा। केवल क्रू वाला मॉड्यूल ही पृथ्वी पर पहुंचेगा। इसे पृथ्वी पर पहुंचने में लगभग 36 मिनट लगेंगे। इसरो क्रू मॉड्यूल को गुजरात के निकट अरब सागर अथवा गुजरात की खाड़ी में लैंड करवाने की योजना बना रहा है।

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गगनयान के लिए इसरो द्वारा विकसित की गई तकनीकें

सरो अन्तरिक्ष में मानव भेजने के लिए महत्वपूण तकनीकों का परीक्षण कर रहा है। इस मिशन को 10,000 करोड़ रुपये की लागत से पूरा किया जायेगा। इसके लिए कई उपकरण तैयार किये जा चुके हैं। इसके लिए हैवी लिफ्ट लांच व्हीकल जीएसएलवी मार्क-III, रिकवरी टेक्नोलॉजी, क्रू मोड्यूल, अन्तरिक्ष यात्री प्रशिक्षण व्यवस्था, वातावरण नियंत्रण तथा लाइफ सपोर्ट सिस्टम का सफलतापूर्वक निर्माण कर लिया गया है।

दिसम्बर 2014 में जीएसएलवी मार्क-III का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था। इसके बाद जून 2017 में जीएसएलवी मार्क-III की पहली डेवलपमेंटल उड़ान सफलतापूर्वक भरी थी। जुलाई, 2018 में क्रू एस्केप सिस्टम का परीक्षण सफलतापूर्वक किया गया था। अभी भी टेक्नोलॉजी व उपकरणों का निर्माण किया जा रहा है।

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