जनज्वार एक्सक्लूसिव : 40-50 रुपये में 12 घंटे खट रहीं हैं दाल-भात योजना में काम करने वाली महिलाएं

Update: 2019-11-30 13:32 GMT

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास 5 रुपये में 'दाल-भात योजना' की सफलता की डुगडुगी चाहे जितना बजा लें, लेकिन सच जनज्वार की पड़ताल में सामने आ ही गया कि 12 घंटे काम करने वाली महिलाओं को रोजाना बहुत मुश्किल से 40 से 50 रुपये मिल पाते हैं.....

जनज्वार। झारखंड में 2011 से 'मुख्यमंत्री दाल-भात योजना' योजना चलाई जा रही है। इस योजना के तहत महिला मंडल 5 रुपये में खाना उपलब्ध कराता है। महिला मंडल स्थानीय महिलाओं से काम लेता है, जिसमें व्यवस्था शुल्क में उसकी भी हिस्सेदारी होती है। इसमें सरकार सिर्फ चावल, बड़ी और लकड़ी उपलब्ध कराती है, बाकी सबकुछ महिलाओं को इसी से होने वाली आमदनी से प्रबंध करना होता है।

'दाल-भात योजना' की शुरूआत झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के द्वारा 15 अगस्त 2011 को की गई थी। इस योजना के तहत गरीब लोगों को पांच रुपए में चावल, दाल और सब्जी खाने के लिए उपलब्ध कराया जाता था लेकिन रघुवर दास सरकार के आने के बाद इस योजना का नाम बदल कर मुख्यमंत्री दाल भात योजना रख दिया था।

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स संबंध में निर्णय राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया गया था। योजना की शुरूआत रांची जिले से हुई थी। योजना के तहत पहले चरण में रांची में इसके लिए एक बेस किचन, 18 वितरण केंद्र और 10 मोबाइल वैन के माध्यम से लोगों तक खाना पहुंचाने की सुविधा की गई थी। बाद में रांची जिले के शहरी इलाकों में दिन में चलने वाले 11 केंद्र, दो रात्रि केंद्र खोले गए। इसके अलावा नगर पंचायत मे भी एक केंद्र का निर्माण किया गया था। योजना के तहत एक प्लेट भोजन की दर 20 रुपए होगी, जिसमें 5 रुपए खाना खाने वाले को देना होगा और 15 रुपए की सरकार सब्सिडी देगी, मगर यह भी अन्य दावों—वादों की तरह हवा-हवाई ही साबित हुआ और यहां काम करने वाली महिलाओं का चरम शोषण जारी है।

घुवर सरकार द्वारा ‘मुख्यमंत्री दाल भात योजना’ का प्रचार तो काफी जोर–शोर से किया जा रहा है। सरकार का कहना है कि हमारी सरकार गरीबों को लिए काम कर रही हैं, गरीब लोगों को पांच रुपए मे खाना दिया जा रहा है। हमारी सरकार गरीबों की सरकार है लेकिन इसकी जमीन हकीकत जानने के लिए जनज्वार टीम झारखंड के खूंटी जिले में पहुंची, जहां पर 'मुख्यमंत्री दाल भात योजना' का केंद्र चल रहा है। इस केंद्र पर जब हम पहुंचे तो 7 महिला काम करती हुई दिखाई दी। ये महिला 2 अक्टूबर 2011 से यहां कार्यरत थी।

Full View केंद्र पर पहुंचने पर योजना के तहत लोगों को 5 रुपए का खाना तो दिया जा रहा था, लेकिन हमें केंद्रों मे काम करने वाली महिलाओं की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं मिली। महिलाएं यहां पर छोटे से कमरे के अंदर काम करने को मजबूर थी। इसके अलावा महिलाओं ने केंद्र और राज्य सरकारों पर महिलाओं के लिए किसी तरह से आर्थिक या राशन में मदद नहीं करने का आरोप लगाया।

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यहां काम करने वाजी अंजनी देवी कहती हैं,, 'हम महिलाएं यहां 2 अक्टूबर 2011 से काम कर रहे हैं। यहां कुल सात महिलाएं काम करती हैं। यहां 5 रुपए में लोगों को खाना खिलाया जाता है। अंजनि बताती हैं, 'हम रोजना 160 से 170 थाली खाना लोगों को खिलाते हैं। कभी कभार ये संख्या बढ़कर 200 के पार भी चली जाती हैं।

अंजनी और उनके साथ काम करने वाली महिलाओं की आर्थिक स्थिति के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया, 'सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर रही है। हम लोग सुबह 8 बजे से यहां काम करते हैं और दिन का 1000 रुपए ही कमा पाते हैं। इन्हीं पैसों से हम महिलाओं को चावल, दाल और सब्जी बनानी पड़ती है। सामान खरीदने के बाद जो पैसे बचते हैं वह हम सबकी आमदनी होती है। हम दिन का 40 से 50 रुपए ही कमा पाते हैं। चावल भी हम लोगों को ठेकेदार की तरफ से 1 रुपए किलों के हिसाब से मिलता है। सरकार द्वारा हमें कोई वेतन नहीं दिया जाता है।

रकार की तरफ से तय न्यूनतम मजदूरी से भी कई गुणा कम सैलरी हमें दी जाती है। एक तरह से कहां जाए तो हमे कोई वेतन ही नहीं दिया जाता है। 1000 रुपए में जो बचता है, वो ही हमारा वेतन है। हम लोगों को भरपेट खाना खिलाते हैं, लेकिन हमारे खुद के पेट भूखे हैं।

स केंद्र में ही काम कर रही मीना कहती हैं, 'सरकार ने हमारी कोई मदद नहीं की है। बस एक जमीन का टुकड़ा दे दिया है। इसके अलावा यहां जो भी समान है। वह महिला मंडल द्वारा लिया गया है। मीना बताती हैं, 'हम दिन का 1000 रुपया ही कमा पाते हैं, इन्हीं पैसों से हमें खाने का समान, लकड़ियां, नमक और तेल सब खुद ही खरीदना होता हैं। वह आगे कहती हैं, 'सरकार हमें एक सैलरी दे जिसके जरिए हम अपना गुजारा कर सके क्योंकि केंद्र में काम करने से हम लोगों को कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। हम सरकार की योजना को अच्छी तरह से चला रहे हैं लेकिन सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर रही है।

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अंजनी आगे कहती है, 'सरकार हमारी कोई मदद नहीं कर रही। खाने के समान से लेकर बर्तन और यहां तक की छत में लगी टीन भी हम लोगों द्वारा ही लगाई गई है। सरकार ने हमें बस जमीन का हिस्सा दे दिया है। इस कमरे में काम करके हम सब महिलाओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। यहां तक की जब लोग यहां पर खाना खाने के लिए आते हैं तो वह कुर्सी और टेवल की मांग करते हैं। ये कुर्सी–टेबल भी हम लोगों ने महिला मंडल के द्वारा लिया है। सरकार की तरफ से हमें कोई मदद नहीं मिली है।

रकार द्वारा योजना का तो काफी प्रचार किया जा रहा है, लेकिन असली सुविधा यहां पर ये महिलाएं देती है। सरकार केवल प्रचार करती है। इस दौरान महिलाएं कुछ बोलने से भी बच रही थी, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं 40– 50 रुपए की जो आमदनी हो पा रही है, वो भी बंद ना हो जाए। इन सब बातों से स्पष्ट है कि रघुवर सरकार में सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है। मुख्यमंत्री दाल भात योजना इसी का उदाहरण है। योजना से एक तरफ जनता का पेट तो भरा जा रहा है, वहीं दूसरी जनता को खाली पेट रखा जा रहा है।

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