पत्रकारों की सुरक्षा का सवाल आज भी बहुत महत्वपूर्ण

Update: 2018-10-18 17:16 GMT

'प​तहर' पत्रिका के लोकार्पण समारोह में आयोजित हुई संगोष्ठी, वक्ताओं ने कहा जो मीडिया मजदूरों और किसानों की बात करे, वही है असली मीडिया...

देवरिया, जनज्वार। 'आज पत्रकारिता से जो अपेक्षा थी, वह नहीं दे पा रही है। आजादी के पूर्व पत्रकार आजाद थे ऐसा नहीं है। सत्य के पीछे भागने का इतना प्रयास नहीं करना चाहिए कि वह अप्रिय लगने लगे, हमें अश्लीलता से बचना चाहिए। आज का समय संकटपूर्ण है। हमें संकटों से हताश होने की जरूरत नहीं है, पत्रकारों को अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करनी चाहिए।' यह बात दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर रामदरश राय ने कहीं।

साहित्यिक पत्रिका पतहर के गजल अंक के लोकार्पण एवं इस अवसर पर आयोजित 'पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां और वर्तमान परिदृश्य विषयक' पर 17 अक्टूबर को एक संगोष्ठी आयोजित की गई। इस अवसर पर बोलते हुए प्रो. रामदरश ने कहा रचनात्मक सोच के साथ जनता की आवाज को उठाने की कोशिश करनी होगी। पत्रिका निकालना एक कठिन व साहसपूर्ण कार्य है। हमें प्रत्यक्षदर्शी होना चाहिए और सत्य तथा प्रिय खबरें ही देनी चाहिए।

संगोष्ठी में बतौर विशिष्ट अतिथि संबोधित करते हुए गोरखपुर से आए वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह ने कहा कि भारत में पत्रकारिता का जन्म अन्याय, अत्याचार व अंग्रेजी सत्ता के भ्रष्टाचार के खिलाफ हुआ था। अख़बार जहां से निकलता है उसमें वहां का अक्स होना चाहिए, लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं हो रहा है। मनोज सिंह ने कहा कि आज की मीडिया पूंजीपतियों के कब्जे में है। ऐसे में जनता का पक्ष गायब हो जाता है। भारत का पूंजीपति वर्ग कारखाना भी चलाता है और अखबार भी। जैसे जैसे देश में उदारीकरण, निजीकरण वाली नीतियां बढ़ी हैं उसका प्रभाव भी मीडिया पर पड़ा है, उसका चरित्र बदला है।

संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि नगर पालिका परिषद देवरिया की अध्यक्ष अलका सिंह ने कहा कि पत्रकारिता सही होनी चाहिए। आने वाले कल के लिए पत्रकारिता होनी चाहिए।आज के समय में वही पत्रकारिता है जो जनता के मुद्दों को स्वर दे सके। साहित्यिक पत्रिका का हमें सहयोग करना होगा।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. चतुरानन ओझा ने कहा कि जो मीडिया मजदूरों और किसानों की बात करे, वही असली मीडिया है। आजादी की लड़ाई मे अंग्रेजी लूट और अन्याय के खिलाफ लिखकर अखबारों और पत्रिकाओं के प्रकाशन का काम गांधी से लेकर गणेश शंकर विद्यार्थी और भगत सिंह व अन्य पत्रकारों ने किया था, हमारे देश के अधिकांश साहित्यकार पत्रकार थे। उन्होंने तत्कालीन सत्ता के चरित्र को उजागर करने का काम किया था। जब तक देश में मजदूरों, किसानों द्वारा तैयार की गई मीडिया नहीं होगी, तब तक जनपक्षधरता नहीं होगी। आज की मीडिया को चाहिए कि वे जन सरोकारों से लैस होकर नई मीडिया का निर्माण करें।

संगोष्ठी में बोलते हुए किसान नेता शिवाजी राय ने कहा कि आज की मीडिया से किसानों के मुद्दे गायब होते जा रहे हैं, इसके लिए एक वैकल्पिक मीडिया की जरूरत है। पंचायत नेता जनार्दन शाही ने कहा कि भारी संख्या में अखबार व चैनल होने के बावजूद भी देश की आम जनता की आवाज सत्ता तक नहीं पहुंच पा रही है। पत्रकार मृत्युंजय उपाध्याय ने कहा कि पत्रकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं, वे साहसपूर्वक देश के विभिन्न हिस्सों में काम कर रहे हैं फिर भी न तो सरकार और न ही मालिक उनकी सुध लेते हैं। पत्रकारों की सुरक्षा का सवाल भी आज बड़ा महत्वपूर्ण है।

संगोष्ठी में बोलते हुए डॉ शकुंतला दीक्षित ने कहा कि साहित्यिक पत्रकारिता एक मिशन है और यह कठिन काम है। यह व्यावसायिक नहीं हो सकती, व्यावसायिकता के अपने खतरे होते हैं, ऐसे में साहित्यिक पत्रकारिता जनपक्षधरता और जन सरोकारों से जोड़ती है। 'पतहर' इसी दिशा में अग्रसर है। संगोष्ठी में बोलते हुए जनवादी लोकमंच के बाबूराम ने कहा कि आज की पत्रकारिता से जनपक्षधरता की उम्मीद नही की जा सकती। पतहर जैसी पत्रिकाओं को आगे बढ़ाना होगा।

संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे नागरी प्रचारिणी के पूर्व अध्यक्ष सुधाकर मणि त्रिपाठी ने कहा कि साहित्यिक पत्रिका निकालना एक कठिन कार्य है, पतहर की टीम इस कठिन कार्य को साहसपूर्वक कर रही है तो हम सभी को सहयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पाठकों व साहित्य साधकों को चाहिए कि वे जनता की मीडिया बनाने में सहयोग करे।

इस मौके पर मुख्य रूप से नागरी प्रचारिणी सभा के मंत्री इंद्र कुमार दीक्षित, सरोज पाण्डेय, उद्भव मिश्र, डॉ. वीएम तिवारी, के.गोविंद, रफीक लारी, नित्यानन्द तिवारी, छात्रनेता अरविंद गिरि, पंकज वर्मा, लियाकत अहमद, विकासधर दिवेदी, धर्मदेव सिंह आतुर, पौहारी शरण राय, परमेश्वर जोशी, आदर्श, राकेश सिंह, सर्वेश्वर ओझा, विरेन्दर सिंह, डॉ. जयनाथ मणि आदि रहे। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार चक्रपाणि ओझा ने एवं स्वागत व आभार 'पतहर' के संपादक विभूति नारायण ओझा ने किया।

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