यह कौन है बुढ़िया नीले बिछावन पर सोई

Update: 2017-12-08 12:08 GMT

photo : Mahendra Pandey

'सप्ताह की कविता' में आज मैथिली कवि महाप्रकाश की कविताएं

मैथिली कवि महाप्रकाश की कविताएं आत्‍मीयता के मायने समझाती—सी हौले से हमें अपने साथ ले लेती हैं। तारों भरी रात की याद जैसे हमें अपनी स्निग्‍धता में भिगोती अपने रहस्‍यलोक में लेती चली जाती हैं, वैसे ही महाप्रकाश की कविताएं हमारा हाथ पकड़ जीवन की आत्‍मीयता और तन्‍मयता से परिचय कराती दुनियावी जददोजहद से अलग मनुष्‍यता के दूसरे लोक में ले जाती हैं।

प्रकृति अपने संवेदनशील रूपाकारों के साथ महाप्रकाश की कविताओं में प्रकट होती रहती है। उनकी आत्‍मीयता का स्रोत वही है। महानगरों के दमघोंटू माहौल से उबकर इन कविताओं से गुजरना हमारी जड़ता को तोड़ता हमें नवजीवन प्रदान करता है।

महाप्रकाश के यहां जो राजनीतिक सजगता है, वह राजकमल चौधरी और धूम‍िल की परंपरा में अपने समय की विडंबनाओं को जाहिर करती हमारी आंखें खोलती राजनीतिक आचार-व्‍यवहार में पैबस्‍त होते जाते षडयंत्रों को बारहा उद्घाटित करती है। आइए पढ़ते हैं महाप्रकाश की कुछ कविताएं - कुमार मुकुल

आत्‍मीयता
मृत व्‍यक्ति की आंखों में
अपना प्रतिबिंब देख
मैंने अपनी मां से कहा

मां...आपकी आंखों से
कहीं अधिक चमक
इस मृत व्‍यक्ति की आंखों में है।

इश्‍तहार
जुलूस और दंगा हैं पहरेदार
शहर में बंद है खिड़की
और दरवाजों के किवाड़
भीतर शतरंज की चाल
युद्ध का पूर्वाभ्‍यास
बाहर भूख से चिल्‍लाते लोग
जनतंत्र के जीवंत इश्‍तहार।

अंतिम पहर में चांद
यह कौन है बुढ़िया
नीले बिछावन पर सोई
चतुर्दिक पसारे अपनी केशराशि
अतीत की निद्रा में डूबी
अस्‍फुट शब्‍दों में कह रही
कौन—सी कथा
बार-बार।

हुलस कर करेंगे स्‍वागत
प्राय: हर दिन अहले सुबह
निर्भीक निद्वंद्व मैंनाओं का एक झुंड
हमारे घर-आंगन में
उतर आता है कोलाहल करता हुआ
घाघ अफसर की तरह
मुआयना करता है चारों ओर
चक्‍कर पर चक्‍कर काटता है
और अंत में ढूंढ़ निकालता है
अन्‍न का कोई टुकड़ा
आंगन में दुबका कोई कीड़ा
फिर उसे देर तक खाता है
और बेधड़क उड़ जाता है
वे सब फिर आएंगे
फिर करेंगे पूरा कर्मकांड
हमारे सामने ही
अकड़ कर चलेंगे
और विवश हम
हुलस कर उनका स्‍वागत करेंगे।

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