पुरुषों की दुनिया में जद्दोजहद कर आगे बढ़ती महिलाएं

Update: 2019-04-03 05:17 GMT

तमाम अध्ययन बताते हैं यह दुनिया पुरुषों के अनुसार बनाई गयी है और इसमें महिलाओं को पुरुषों की शर्तों पर ही शामिल होना पड़ता है...

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

कुछ दिनों पहले की बात है, अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा को दो अंतरिक्ष यात्रियों को इंटरनेशनल स्पेस सेंटर पर किसी उपकरण की बैटरी बदलने के लिए भेजना था और इस बार पहली बार बिना किसी पुरुष सहयोगी के दो महिलायें इस काम के लिए अंतरिक्ष में जाने वाली थीं।

पूरे वैज्ञानिक जगत में इसे बड़े उत्साह से सराहा जा रहा था, क्योंकि ऐसा पहली बार होने जा रहा था। मगर अंतरिक्ष में जाने के ठीक दो दिन पहले एक महिला अंतरिक्ष यात्री, ऐनी मैक्लीन का नाम हटाकर उसके बदले एक पुरुष अंतरिक्ष यात्री के नाम की घोषणा कर दी गयी। इसका कारण भी अजीब सा था।

नासा के अनुसार उनके पास मीडियम साइज़ के दो ही स्पेस सूट हैं और इनमें से अंतरिक्ष में भेजने लायक एक ही है। दोनों महिला अंतरिक्ष यात्रियों, क्रिस्टीना कोच और ऐनी मैक्लीन, ने अंतरिक्ष में जाने की पूरी तैयारी स्पेस सूट के लार्ज और मीडियम साइज़ के साथ कारने के बाद मीडियम साइज़ को चुना था, पर नासा के पास अंतरिक्ष में भेजने लायक केवल एक ही मीडियम साइज़ का स्पेस सूट था। इस तरह केवल स्पेस सूट के साइज़ उपलब्ध नहीं होने के कारण एक इतिहास बनाने से रह गया।

इस घटना के बाद से पूरी दुनिया में यह बहस छिड़ गयी है कि हरेक जगह कार्य क्षेत्र का विकास केवल पुरुषों को ध्यान में रख कर किया गया है और महिलाओं को इस माहौल को स्वीकारना पड़ता है। कैरलाइन क्रिअदो पेरेज़ एक अमेरिकी पत्रकार हैं और इन्होने कार्यक्षेत्र पर लैंगिक असमानता पर अध्ययन कर एक पुस्तक लिखी है, 'इनविजिबल वीमेन : एक्स्पोसिंग डाटा बायस इन अ वर्ल्ड डीजाइंड फॉर मेन'।

कैरलाइन को इस पुस्तक के लिखने की प्रेरणा तब मिली जब उन्हें पता चला कि दुनियाभर में चिकित्सक हार्ट अटैक को उन लक्षणों से पहचानते हैं जो केवल पुरुषों में पाए जाते हैं। इसका सीधा सा मतलब यह है कि महिलाओं में हार्ट अटैक के विशेष लक्षणों की कभी चर्चा ही नहीं की जाती है, जाहिर है इसका इलाज भी नहीं होता।

कैरलाइन ने नासा की घटना पर कहा, उन्हें दुःख तो है पर आश्चर्य कतई नहीं है। यह दुनिया पुरुषों के अनुसार बनाई गयी है और इसमें महिलाओं को पुरुषों की शर्तों पर ही शामिल होना पड़ता है। नासा में पहले स्पेस सूट एक्स्ट्रा-लार्ज, लार्ज, मीडियम और स्माल साइज़ में उपलब्ध होते थे, पर 1990 के दशक में जब इसके बजट में कमी की गयी तब स्माल साइज़ के सूट गायब हो गए और लगभग एक-तिहाई महिलायें कभी भी अंतरिक्ष में पहुँचाने से वंचित रह गयीं। अब महिलाओं के पास केवल लार्ज और मीडियम साइज़ का ही विकल्प बचा है।

कैरलाइन की पुस्तक में बहुत सारे उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि कार्य स्थल पर महिलायें किन समस्याओं का सामना करती हैं। पुलिस और मिलिटरी में महिलायें अब भारी संख्या में आ रही हैं पर बुलेट-प्रूफ जैकेट, बूट, गॉगल्स, हेलमेट और इस तरह की अन्य आवश्यक वस्तुएं केवल पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए जाते है।

कार निर्माता कार के क्रैश टेस्ट में केवल पुरुषों के डमी से अध्ययन और परीक्षण करते हैं। किसी भी कार निर्माता को यह नहीं पता कि ड्राईवर सीट पर बैठी महिलाओं पर दुर्घटना के समय क्या असर पड़ेगा। इसी कारण बड़ी दुर्घटना के समय ड्राईवर सीट पर बैठी महिलायें पुरुषों की तुलना में 47 प्रतिशत अधिक प्रभावित होतीं हैं, जबकि छोटी घटनाओं में 71 प्रतिशत अधिक प्रभावित हो जाती हैं।

यह अंतर तो सामान्य ऑफिस में भी पता चलता है। जितने भी ऑफिस फर्नीचर होते हैं या फिर कमरे का डिजाईन होता है सभी पुरुषों के लिए ही बने होते हैं। कुर्सियों की बनावट, ऊंचाई और फिर कुर्सी और वर्क स्टेशन या फिर मेज की ऊंचाई भी पुरुषों के हिसाब से ही रखी जाती है। पुरुषों और महिलाओं के शरीर में जितनी भी क्रियाएं होतीं हैं, उनकी दर अलग होती है, इसलिए उनके लिए आरामदेह तापमान भी अलग होता है।

पुरुष 21 डिग्री सेल्सियस के आसपास के तापमान में आराम महसूस करते हैं, जबकि महिलाओं के लिए यह तापमान 25 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। पर दुनियाभर में ऑफिस का तापक्रम 21 डिग्री सेल्सिउस के आसपास ही रखा जाता है, जिसे 40 वर्षीय पुरुष जो 70 किलोभार का हो, के लिए 1990 के दशक से सामान्य माना जाता है।

स्मार्टफोन अब लगभग सबके पास है, फिर भी इसका बाज़ार तेजी से बढ़ रहा है। इसके स्क्रीन का साइज़ भी लगातार बढ़ता जा रहा है। स्मार्टफोन निर्माताओं को शायद यह मालूम ही नहीं है कि महिलाओं की हथेली पुरुषों की तुलना में एक इंच छोटी होती है। यही कारण है कि ज्यादा बड़े स्मार्टफोन पकड़ने में और इस पर एक हाथ से टेक्स्ट लिखने में महिलाओं को बहुत दिक्कतें आतीं हैं। यही नहीं, स्मार्टफोन के साथ तरक्की करते हेल्थ एप्स भी पुरुषों की बीमारियों का ही विस्तार में विश्लेषण करते हैं।

खेलों की दुनिया में भी जितने उपकरण और सामग्री है, उसका विकास पुरुषों को ही ध्यान में रखकर किया गया है। विज्ञान में भी यही समस्या है। नासा की घटना के बाद अमेरिका के केंसास में नदियों पर काम करने वाली वैज्ञानिक जेसिका माउंट्स ने बताया कि पानी में काम करने वाले या फिर चट्टानों पर काम करने वाली महिलाओं को पुरुषों के लिए बनाए गए कपड़े, बूट, उपकरण और हेलमेट का ही उपयोग करना पड़ता है।

यहाँ तक कि साधारण से लैब-कोट भी पुरुषों के ही आकार के उपलब्ध होते हैं, महिलाओं के लिए ताड़ी अलग से मिलते हैं तो वे बहुत महंगे और बैडोल होते हैं।

स्पष्ट है कि महिलायें पुरुषों की बनाई दुनिया में काम करतीं हैं, फिर भी वे पुरुषों की बराबरी कर रहीं हैं और कई मामलों में आगे भी बढ़ रही हैं। इससे इतना तो पता चलता है कि महिलायें अधिक पुरुषों की तुलना में अधिक संघर्ष की क्षमता और आगे बढ़ने का माद्दा रखतीं हैं।

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