'मौनेंद्र' मोदी के मर्सिया पढ़ने से नहीं रुकेगा गौ आतंक

Update: 2017-06-30 10:15 GMT

पहली बार नहीं है कि 'मौनेंद्र' मोदी ने गौ आतंकियों पर जुबान खोली है। पहले भी गौ रक्षकों के वहशीपने पर वह नाक भौ सिकोड़ चुके हैं इसलिए किसी कार्रवाई के मुगालते में रहना अफसोसजनक ही होगा...

वीएन राय, पूर्व आईपीएस

गौ आतंक के विरूद्ध कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ नया कर पाएंगे? संक्षेप में जवाब है - नहीं। स्थिति यह है कि उनके सबसे विश्वस्त, संभवतः एकमात्र पुलिस सलाहकार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अपना पूरा सेवाकाल केंद्रीय आसूचना ब्यूरो में गुजारा है और उन्हें कानून-व्यवस्था का कोई अनुभव नहीं है।

गुजरात में जिन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ मोदी ने काम किया है, वे उनके विश्वास की कीमत जेल जाकर चुका आये हैं और अब उनके किसी काम के नहीं रहे।

कौन नहीं जानता कि गौ आतंक आरएसएस का फ्लैगशिप कार्यक्रम है और आरएसएस पर मोदी का बस नहीं। लिहाजा गाँधी-विनोबा के नाम की अपील से कुछ हासिल होना संभव नहीं लगता।

सामरिक विशेषज्ञ हलकों में आशंका जताई जा रही है कि कल को अल-क़ायदा या आइसिस जैसे आतंकी संगठन गौ आतंक की आड़ में अपने लिए नयी भर्तियां न शुरू कर दें। यह भी संभव है कि कोई सिरफिरा संगठन, गौ आतंकियों के विरुद्ध डायरेक्ट एक्शन की कॉल करने पर उतरेे और देश में आपसी खून खराबा बढ़ जाय।

क्या मोदी की आर्थिक, सामरिक और विदेश नीतियों के आलोचकों को खबर है कि आतंरिक सुरक्षा के मामले में वे निरे फिसड्डी हैं। ज्यादा सही तो यह कहना होगा कि कानून-व्यवस्था की उनकी ही नहीं उनके विश्वासपात्र अमित शाह की समझ भी बस विरोधियों को हांकने तक सीमित रही है।

मोदी के गुजरात में मुख्यमंत्री और अमित शाह के गृहमंत्री रहते बीसियों वरिष्ठतम पुलिस अधिकारियों का हत्या और हिंसक दंगों के अपराध में जेल जाना स्वतंत्र भारत की किसी भी सरकार के लिए शर्मनाक रिकॉर्ड है।

मौनेंद्र मोदी ने अमेरिका से लौटकर गौ आतंक पर अपना मुंह जरूर खोला है। आप इसके पीछे विदेश में आतंक विरोध का ढोल पीटने की पृष्ठभूमि कहिये या शायद बापू-विनोबा की धरती की शर्म। हालाँकि, यह भी तय लगता है कि अहमदाबाद में गाँधी जी के साबरमती आश्रम की सौवीं वर्षगाँठ पर उन्होंने गौ भक्तों को कानून हाथ में लेकर खून-खराबा न करने की जो 'चेतावनी' दी है, उस पर अमल कहीं नहीं होगा।

लगभग एक वर्ष पहले मौनेंद्र मोदी ने गौ भक्तों को अपराधियों की जमात बताया था। पर हुआ क्या? बीफ के नाम पर भीड़ से घेरकर मुस्लिमों की हत्याएं दनादन होने लगीं।

ऐसे में मोदी के पास विकल्प क्या हैं? जाहिर है प्रधानमंत्री को आरएसएस की सदिच्छा पर नहीं पुलिस की कानून-व्यवस्था लागू करने की सामर्थ्य पर निर्भर रहना होगा। अगर वही घिसा-पिटा बहाना बनाते रहे कि कानून-व्यवस्था राज्यों का विषय है तो बहुत देर हो जायेगी।

संविधान की पालना कराना हर हाल में केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। तुरंत, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की तर्ज पर प्रधानमंत्री कार्यालय में एक आतंरिक सुरक्षा सलाहकार का पद गठित करना होगा, जो तमाम संवैधानिक मर्यादाओं की रक्षा की दिशा में पुलिस तत्परता को दिशा दे सके। पुलिस की ट्रेनिंग को भी नई संवेदना देनी होगी।

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