नोटबंदी पर देश से माफी मांगें मोदी

Update: 2017-08-31 11:00 GMT

99 फीसदी नोट आरबीआई को मिल जाने के बाद साफ हो गया है कि मोदी सरकार ने देश को एक सनक भरा फैसला मानने को मजबूर किया। समय आ गया है कि मोदी ने इस फर्जी आर्थिक सुधार के नाम पर जो देश का नुकसान किया है, उसके लिए नागरिकों से माफी मांगें...

15 लाख 44 हजार करोड़ की नोटों में 15 लाख 28 हजार नोट भारतीय रिजर्व बैंक को मिल गए। बाकि रह गए 16 हजार करोड़। नए नोट में छापने में लग लग गए 21 हजार करोड़। सवाल है कि यह कैसा आर्थिक सुधार है जिससे देश को इतना भारी नुकसान और नागरिकों को अंतहीन परेशानियां झेलनी पड़ी थीं।

जनज्वार, दिल्ली। जब पिछले साल 8 नवंबर की शाम प्रधानमंत्री मोदी ने जब देश को संबोधित करते हुए कहा कि नोटबंदी लागू करने से भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोट, आतंकवाद, नक्सली हिंसा रुकेगी तो देश को एकबारगी लगा कि मोदी ने मुल्क बदलने की क्रांतिकारी शुरुआत कर दी है।

जनता के व्यापक हिस्से ने 6 महीने तक लाख परेशानियां झेलते हुए भी नोटबंदी को लेकर मोदी के किए फैसले का स्वागत किया। अपना काम छोड़, शादियां टाल, बेरोजगार हो लोग एक—एक नोट के लिए तरसते रहे कि कुछ दिन परेशानी के बाद देश की तकदीर बदलेगी, मुल्क भ्रष्टाचार की लड़ाई में गुणात्मक रूप से सफल होगा।

पर कल जब आरबीआई ने औपचारिक तौर पर नोटबंदी की असफलता की घोषणा कर दी उसके बाद वित्तमंत्री के पास जवाब का टोटा हो गया। उन्हें सरकार की लाज बचानी अब महंगी पड़ रही है और वे सिवाय इसके कुछ नहीं पा रहे कि नोटबंदी के आलोचकों को नोटबंदी समझ नहीं आती। यह कुछ—कुछ वैसा ही बयान जैसे डॉक्टर कहे कि रोगी को नहीं पता कि उसे क्या तकलीफ है।

बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री ने देश को खुद बताया था कि नोटबंदी का सुझाव रिजर्व बैंक था। ऐसे में दो ही बातें हो सकती हैं! एक तो यह कि ऐसे बैंक से क्या फायदा जो देश और नागरिकों की रीढ़ तोड़ दे, मुल्क को बर्बाद करने की ओर ले जाए। या फिर ऐसे झूठे प्रधानमंत्री को देश क्यों झेले जो अपने अहम और सनकपन भरे फैसलों को लागू कराने के लिए देश के संसाधन बर्बाद कराने पर आमादा है।

क्या मोदी देश को हुए खरबों के हुए आर्थिक नुकसान, नोटबंदी में छोटे—बड़े उद्योगों से 4.5 करोड़ लोगों की नौकरी से छंटनी, 50 दिन के भीतर 104 लोगों की गयी जान और 2 प्रतिशत घटे विकास दर के लिए, देश से माफी मांगेंगे, क्या कोई मन का बात करेंगे।

जाली नोटों पर नीति आयोग के सदस्य बिवेक देबोरॉय ने कहा कि जाली नोट 2000 करोड़ हैं, जबकि इंडियन स्टैटिकल इंस्टीट्यूट की 2015 की एक स्टडी के मुताबिक जाली नोट 400 करोड़ हैं। वहीं काले धन पर मोदी ने 15 अगस्त 2017 को लाल किले की प्राचीर से कहा था कि नोटबंदी से 3 लाख करोड़ रुपए का कालाधन बैंकों में आया और करीब 1.75 लाख करोड़ रुपए की राशि जांच के घेरे में है।

जबकि कल आई आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि देश में 500-1000 के 15.44 लाख नोट चलन में थे, जिसमें से 15.28 लाख नोट वापस आ गए। यानी 16000 करोड़ रुपये नहीं आए तो 3 लाख करोड़ काला धन कैसे और कहां से आ गया।

क्या जवाब है इस सरकार के पास। क्या पूरी सरकार ही जाली है या फिर किसी का किसी से तालमेल नहीं है या फिर पूरा देश मोदियापे की चकरघिन्नी में पिस रहा है? 

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