मोदी ने चालाक नीतीश कुमार को 'बेचारा’ बना दिया!

Update: 2017-08-31 11:29 GMT

बाढ राहत के लिए न तो उम्मीद के मुताबिक मदद का ऐलान किया और न ही मुख्यमंत्री के भोजन के न्योते को स्वीकारा

विशेष संवाददाता, पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पूरी सरकार और अधूरी पार्टी के साथ भले ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व स्वीकार कर लिया हो, मगर बिहार विधानसभा के चुनाव में मिली करारी हार और पांच साल पहले नीतीश कुमार द्वारा किए गए अपमान का दंश मोदी अभी भुला नहीं पाए हैं।

यह बात मोदी के हाल में बिहार दौरे के दौरान साफ तौर पर देखने को मिली। प्रधानमंत्री ने न सिर्फ बाढ राहत के लिए केंद्रीय सहायता देने में कंजूसी बरती बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भोजन के न्यौते की उपेक्षा कर उनसे दूरी बनाने का संकेत भी साफ तौर पर दे दिया। मोदी के इस रवैये ने चतुर समझे जाने वाले नीतीश कुमार को एक तरह 'बेचारा’ बना दिया।

प्रधानमंत्री मोदी पिछले सप्ताह बाढ से बेहाल बिहार के दौरे पर गए थे। इस दौरे में उन्हें बिहार के बाढ पीडित इलाकों का जायजा लेना था तथा राज्य सरकार के साथ बैठक भी करना थी। नीतीश कुमार ने मोदी के साथ अपनी नई नवेली दोस्ती का रंग गाढा करने के लिए इस मौके को भुनाने की भरपूर कोशिश की। इस सिलसिले में नीतीश ने पटना में मोदी की आवभगत के लिए हर संभव इंतजाम किए थे।

मुख्यमंत्री निवास के सूत्रों के मुताबिक नीतीश ने प्रधानमंत्री के लिए भोजन का आयोजन भी अपने सरकारी आवास पर ही किया था। उनकी रुचि का भोजन तैयार करने के लिए गुजरात से रसोईए बुलाए गए थे जिन्होंने मोदी की पसंद वाले तरह-तरह के गुजराती व्यंजन तैयार किए थे। सूत्रों के मुताबिक तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक मोदी को बाढ प्रभावित इलाकों का जायजा लेने के बाद पटना लौट कर भोजन करना था तथा राज्य सरकार के साथ बाढ राहत के सिलसिले में बैठक करनी थी।

लेकिन मोदी ने पटना पहुंचते ही अपना कार्यक्रम बदलने के निर्देश दिए। बदले हुए कार्यक्रम के मुताबिक उन्होंने नीतीश कुमार के साथ बाढ प्रभावित इलाकों का दौरा करने के बाद पटना लौटने के बजाय पूर्णिया में ही मुख्यमंत्री तथा राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की और वहीं से सीधे दिल्ली के लिए रवाना हो गए।

मुख्यमंत्री आवास पर भोजन के न्योते को टालने के मोदी के फैसले को पटना के राजनीतिक हलकों में नीतीश कुमार के लिए अशुभ संकेत माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि शायद मोदी अपने उस अपमान को नहीं भूल पाए हैं जो नीतीश कुमार ने पांच साल पहले पटना में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के समय किया था। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और वे भी अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने पटना पहुंचे थे।

गौरतलब है कि उस समय भी राज्य में जनता दल यू और भाजपा की साझा सरकार थी और मुख्यमंत्री की हैसियत से नीतीश कुमार ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों के लिए अपने सरकारी आवास पर भोज का आयोजन रखा था। लेकिन अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि पेश करने तथा मोदी से दूरी बनाए रखने की गरज से ऐनवक्त पर उन्होंने भाजपा नेता तथा अपनी सरकार में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के जरिए भाजपा नेतृत्व को संदेश भिजवा दिया था कि भोज का आयोजन उसी स्थिति में हो सकता है जब नरेंद्र मोदी उसमें शामिल न हों। नीतीश के इस प्रस्ताव को अपमानजनक मानते हुए भाजपा नेतृत्व ने स्वीकार नहीं किया था और अंतत: उस भोज का आयोजन निरस्त कर दिया गया था।

सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार को यह भी उम्मीद थी कि अब चूंकि वे राजग और मोदी की छतरी तले आ चुके हैं, लिहाजा बिहार को इसका फायदा मिलेगा और प्रधानमंत्री बाढ राहत के लिए उदारतापूर्वक केंद्रीय मदद का ऐलान करेंगे। लेकिन ऐसा भी कुछ नहीं हुआ। मोदी ने बाढ से बेहाल बिहार के लिए महज पांच सौ करोड रुपए की सहायता का ऐलान कर सूबे लगभग दो करोड बाढ पीडितों के प्रति अपनी सीमित संवेदना ही जताई।

हालांकि नीतीश ने इस अपर्याप्त मदद के लिए भी औपचारिक तौर पर प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया है लेकिन राज्य सरकार के आला अधिकारी प्रधानमंत्री के इस रुखे व्यवहार पर हैरानी जता रहे हैं। बाढ राहत कार्यों से जुडे एक अधिकारी के मुताबिक इससे ज्यादा केंद्रीय मदद तो चार साल पहले कोसी में आई बाढ के समय तत्कालीन यूपीए सरकार ने की थी। तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बिहार के बाढ पीडितों के लिए केंद्र सरकार की ओर से 1200 करोड रुपए की राहत राशि बिहार सरकार को दी थी।

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