SIR के नाम पर बिहार के बाद यूपी में भी करोड़ों मतदाताओं का मताधिकार से वंचित होना तय, और कितने बीएलओ की जान लेगा चुनाव आयोग : माले

जिस तरह से एसआईआर गणना फार्म भरने और जमा कराने की प्रक्रिया चल रही है, उसमें गरीबों, बेपढ़ेलिखों और कमजोर वर्गों के मतदाताओं का बड़े पैमाने पर बहिष्कृत होना तय लग रहा है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2027 में होने हैं। नवंबर 2025 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव की तरह यहां एसआईआर के लिए समय की कोई मजबूरी नहीं है...

Update: 2025-11-27 15:00 GMT

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लखनऊ। भाकपा (माले) ने केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा कराए जा रहे एक महीने (4 नवंबर-4 दिसंबर) के मतदाता सूची के विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान प्रदेश में अभी तक चार बूथ लेवेल अधिकारियों (बीएलओ) की मौत पर दुख और चिंता व्यक्त की है।

पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने गुरुवार 27 नवंबर को जारी बयान में कहा कि चुनाव आयोग और कितने बीएलओ की जान लेना चाहता है! प्रदेश में 15 करोड़ से ऊपर मतदाताओं के नाम बिल्कुल नए सिरे से मतदाता सूची में जोड़ने के लिए मात्र एक माह का समय बीएलओ पर भारी पड़ रहा है। काम का बोझ, ऊपरी अधिकारियों की लताड़ और समय के दबाव के चलते वे आत्महत्या कर रहे हैं, बीमार होकर मौत के शिकार हो रहे हैं और नौकरी से इस्तीफा दे रहे हैं।

राज्य सचिव ने कहा कि चुनाव आयोग जिस आपाधापी में एसआईआर करा रहा है, उसमें ढेर सारे मतदाताओं के नाम छूट जाने की पूरी संभावना है। एक महीने के एसआईआर में चुनाव आयोग खुद लेट चल रहा है। शुरू में पुराने मतदाताओं का नाम 2003 के एसआईआर की सूची में खोजना हरेक के लिए आसान नहीं था, क्योंकि ढेर सारे मतदाताओं को 2003 का अपना बूथ और यहां तक कि विधानसभा सीट तक याद नहीं थी, क्योंकि उसके बाद हुए परिसीमन में कइयों के विधानसभा क्षेत्र बदल गए। इस समस्या का हल आयोग द्वारा कामचलाऊ तौर पर देने में एक महीने के एसआईआर की तय अवधि के कई दिन निकल गए। कई जगह यह भी देखने में आया कि एसआईआर गणना फार्म भरने के लिए बीएलओ को ठीक ढंग से प्रशिक्षित भी नहीं किया गया है।

माले नेता ने कहा कि जिस तरह से एसआईआर गणना फार्म भरने और जमा कराने की प्रक्रिया चल रही है, उसमें गरीबों, बेपढ़ेलिखों और कमजोर वर्गों के मतदाताओं का बड़े पैमाने पर बहिष्कृत होना तय लग रहा है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2027 में होने हैं। नवंबर 2025 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव की तरह यहां एसआईआर के लिए समय की कोई मजबूरी नहीं है। आखिर आयोग को किस बात की जल्दी है!

राज्य सचिव ने कहा कि बिहार एसआईआर 2025 में करीब 70 लाख मतदाताओं के नाम लक्षित (टारगेटेड) तरीके से मतदाता सूची से हटा दिए गए। इसका असर बिहार चुनाव परिणाम पर भी पड़ा। यह भी स्पष्ट हुआ कि बिहार में ठीक चुनाव से पहले अचानक से हुआ एसआईआर चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की सोची-समझी परियोजना (डिजाइन) का हिस्सा था। बिहार की तुलना में उत्तर प्रदेश में वर्तमान मतदाता संख्या दूनी से भी ज्यादा है। ऐसे में राज्य सचिव ने सवाल किया कि यूपी में कितने करोड़ मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने की योजना है?

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