नेपाल के 30 से ज्यादा बुद्धिजीवियों ने रिलीज जारी कर कहा, जनता में कोरोना से ज्यादा खौफ है सरकार का

Update: 2020-04-19 07:07 GMT

जब कोरोना की भयावहता के चलते बुद्धिजीवियों और लेखकों को रिहा करने की मांग की जा रही थी, उसी दौरान मोदी सरकार ने गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े को डाल दिया जेल में...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। 17 अप्रैल को नेपाल के 30 से अधिक बुद्धिजीवियों, लेखकों और पत्रकारों ने एक प्रेस रिलीज़ जारी कर कहा है कि इस समय नेपाल, भारत और दुनिया के अनेक हिस्सों में जनता कोरोना की तुलना में सरकारों से अधिक भयभीत है। फासिस्ट सरकारें जनता में कोरोना के कारण व्याप्त भय का फायदा उठाकर जनता की आवाज दबा रही हैं और अपने विरुद्ध उठाती आवाज को कुचल रही हैं।

स प्रेस रिलीज़ में नेपाल के एक्टिविस्ट और कलाकार मैला लामा और भारत के प्रोफ़ेसर साईंबाबा, लेखक वरवर राव और एक्टिविस्ट कोबाड गांधी का भी जिक्र किया गया है, जो जेलों में बंद हैं।

नेपाल के इन बुद्धिजीवियों ने तुर्की का भी जिक्र किया है। तुर्की में एक्टिविस्ट हेलेन बोलेक ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्र बहाल किये जाने की मांग को लेकर लगातार 288 दिनों तक भूख हड़ताल की और अंत में 3 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गयी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर ही हेलेन के साथी इब्राहीम गोगेक भी भूख हड़ताल कर रहे हैं और अब उनकी हालत बहुत खराब है।

यह भी पढ़ें : अंबेडकर जयंती पर आज गिरफ्तारी देंगे गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े

रकारों से मांग की गई है कि बुद्धिजीवियों, लेखकों और एक्टिविस्टों को शीघ्र ही जेलों से रिहा किया जाए। इसमें बताया गया है कि, हमें मालूम है कि प्रोफ़ेसर साईंबाबा व्हीलचेयर पर हैं और लगभग 80 प्रतिशत तक शारीरिक विकलांगता के शिकार हैं और लेखक वरवर राव की उम्र 80 वर्ष से अधिक है और अनेक बीमारियों से घिरे हैं।

समें यह भी कहा गया है कि सरकारी आतंक का आलम यह है कि जब बुद्धिजीवियों और लेखकों को रिहा करने की मांग की जा रही थी उसी दौरान भारत सरकार ने गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े को जेल में डाल दिया। नेपाल के इन सभी बुद्धिजीवियों ने दुनिया के सभी लोगों के साथ अपनी एकता जाहिर की है जो बुद्धिजीवियों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को रिहा कराने की मांग कर रहे हैं।

यह भी पढ़ें : संघी नेताओं, भाजपा सरकार और पुलिस की मिलीभगत का परिणाम कोरेगांव—भीमा में दलितों पर हिंसा

गार्डियन में प्रकाशित एक पत्र में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की प्रियम्बदा गोपाल और पेन इंटरनेशनल के सलिल त्रिपाठी ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त की हैं। इन्होंने लिखा है कि भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, जिसकी आड़ में यहाँ लोकतांत्रिक भावनाओं का लगातार हनन किया जाता रहा है। दरअसल सबसे बड़े लोकतंत्र का तमगा केवल सर्वाधिक आबादी के लिए दिया जाता है, पर इसे दुनियाभर में सबसे सशक्त लोकतंत्र का पर्याय माना गया है, जबकि यहाँ अब लोकतंत्र जैसा कुछ बचा नहीं है।

स पत्र में भी प्रोफ़ेसर साईंबाबा, लेखक वरवर राव, एक्टिविस्ट कोबाड गांधी और सुधा भारद्वाज का जिक्र किया गया है। इसमें गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे को जेल में डालने का जिक्र भी किया गया है। द वायर के संस्थापक सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन के ऊपर चल रहे मुकदमे का भी जिक्र इस पत्र में किया गया है।

यह भी पढ़ें : भीमा-कोरेगांव हिंसा के लिए क्या सोशल मीडिया है जिम्मेदार

भारत कभी भी पत्रकारों और लेखकों के लिए सुरक्षित देश नहीं था, पर अब हालात और खराब होते जा रहे हैं। पिछले 6 वर्षों में 14 पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है, जबकि इससे पहले के 10 वर्षों के दौरान 17 पत्रकारों की हत्या की गयी थी। इस पत्र में दुनिया के मानवाधिकार संगठनों और बुद्धिजीवियों से अपील की गयी है कि वे एकजुट हों और जेल में डाले गए सामाजिक आवाजों को बाहर निकालने में मदद करें।

यह भी पढ़ें — जनज्वार एक्सक्लूसिव : पत्रकार आशीष गुप्ता ने व्हाट्सएप जासूसी मामले को लेकर मुंबई पुलिस पर जाहिर किया संदेह

मारे देश का लोकतंत्र कितना हास्यास्पद हो गया है, इसकी बानगी देखिये, इस समय अधिकतर जेलों से कैदी छोड़े जा रहे हैं हैं क्योंकि वहां कोरोना वायरस फ़ैलने का खतरा है, दूसरी तरफ इसी समय पर सामाजिक कार्यकर्ताओं को इसमें ठूंसा जा रहा है, और अब कम से कम यह आश्चर्य नहीं होता कि ऐसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय भी उतना ही भागीदार है, जितना निरंकुश पुलिस और सरकारी तलवे चाटता मीडिया। जिस न्यू इंडिया का शोर सरकार मचाती है, यह वही न्यू इंडिया है।

Tags:    

Similar News