शिवराज सरकार के मंत्रियों को कौन समझाए कि बलात्कार पीड़ितों को पुरस्कार नहीं न्याय चाहिए होता है, इसलिए न्याय दो, बलात्कार को ढकने के लिए पुरस्कार नहीं और जब ऐसी असंवेदनशील बातें करोगे तो व्यंग्य तो होगा ही फिर चाहे पत्रकारों को जेल में डालो या काला पानी की सजा दो...
अनिल जैन, वरिष्ठ पत्रकार
मध्य प्रदेश में पिछले कुछ समय से शासन और प्रशासन के स्तर पर मूर्खता के नित-नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। मूर्खतापूर्ण कारनामों को सरकार के मुखिया और उनके सहयोगी वजीर ही नहीं, बल्कि पुलिस और प्रशासन के उच्च पदों पर काबिज तथा पढे-लिखे समझे जाने वाले मुसाहिब भी बडे मनोयोग से अंजाम दे रहे हैं।
इस सिलसिले में मध्य प्रदेश की पुलिस ने अपने राजनीतिक आकाओं की खुशामद करने के मकसद से नीमच (मध्य प्रदेश) के वरिष्ठ पत्रकार जिनेंद्र सुराना के साथ जो बेहूदगी की है, वह अभूतपूर्व है।
किस्सा यह है कि फिल्म पदमावती को लेकर जारी 'प्रायोजित’ विवाद के सिलसिले में पिछले दिनों मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद को राजपूतों का सबसे बड़ा रहनुमा साबित करने के लिए पदमावती को 'राष्ट्रमाता’ का दर्जा देते हुए ऐलान किया था कि मध्य प्रदेश में पदमावती का स्मारक बनवाया जाएगा तथा पदमावती से संबंधित कहानी को अगले वर्ष से मध्य प्रदेश में स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा।
उनकी इस घोषणा से प्रेरित होकर उनकी सरकार के गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह उनसे कई कदम आगे निकल गए। उन्होंने घोषणा कर दी कि मध्य प्रदेश में गैंगरेप पीडिता को राज्य सरकार 'पदमावती पुरस्कार’ से सम्मानित करेगी। उनकी इस घोषणा को मध्य प्रदेश के तमाम अखबारों ने छापा और कई टीवी चैनलों ने भी इसकी खबर दी।
मध्य प्रदेश के गृहमंत्री की यह घोषणा अत्यंत हास्यास्पद और किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए क्षोभ पैदा करने वाली थी, क्योंकि इस तरह के पुरस्कार से बलात्कार की पीड़ित महिला को न तो इंसाफ मिलना है और न ही सामाजिक सम्मान, बल्कि उलटे उसका नाम और पहचान ही सार्वजनिक होनी है जिससे उसके हिस्से में सिर्फ मानसिक पीडा और शर्मिंदगी ही आना है।
जाहिर है कि कोई न्यूनतम विवेक रखने वाला व्यक्ति भी सूबे के गृह मंत्री की इस घोषणा से सहमत या प्रसन्न नहीं हो सकता। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर इस घोषणा का अलग-अलग तरीके से विरोध दर्ज कराया। इसी क्रम में नीमच के वरिष्ठ पत्रकार जिनेंद्र सुराना ने भी अखबारों में छपी गृह मंत्री की इस घोषणा से उद्वेलित होकर संबंधित खबर की एक कतरन के साथ अपने फेसबुक वाल पर एक पोस्ट लिखी कि 'मध्य प्रदेश में रेप करवाओ और पदमावती अवार्ड पाओ, सरकार की नई घोषणा।’
श्री सुराना की पोस्ट में कुछ भी गलत नहीं था, बल्कि मध्य प्रदेश के गृह मंत्री की संवेदनाहीन, विवेकरहित, महिलाओं के प्रति अपमानजनक और आपराधिक घोषणा की ओर तंजभरा इशारा था। एक जागरुक, जिम्मेदार और संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते श्री सुराना का तंज करना स्वाभाविक था। उनकी इस फेसबुक पोस्ट पर कई लोगों ने लाइक किया और कई ने अपनी-अपनी तरह से प्रतिक्रिया जाहिर की। कई लोगों ने उस पोस्ट को साझा भी किया।
मध्य प्रदेश सरकार या उसके किसी भी कारिंदे में यदि रंच मात्र भी विवेक होता तो गृहमंत्री की मूर्खताभरी घोषणा को तत्काल वापस ले लिया जाता। लेकिन इसके विपरीत मध्य प्रदेश के ही खरगोन जिले की पुलिस ने सुराना की पोस्ट का संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ बलात्कार की धारा सहित कई अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज कर लिया। इस मूर्खतापूर्ण कार्रवाई की जानकारी जिले के पुलिस अधीक्षक ने बाकायदा प्रेस कान्फ्रेंस में दी।
उन्होंने मीडिया को बताया कि जिनेंद्र सुराना के कृत्य को महिलाओं का मानभंग करने की दुष्प्रेरणा मानते हुए प्रकरण दर्ज किया गया है और उनकी गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम को नीमच भेजा गया है।
वैसे पुलिस की यह कार्रवाई ज्यादा हैरान नहीं करती, क्योंकि आपराधिक तत्वों से यारी निभाने वाली पुलिस इसके अलावा और कर भी क्या सकती है! इसी बीच पता चला है कि नीमच में श्री सुराना के निवास पर कुछ स्थानीय असामाजिक तत्वों ने नारेबाजी करते हुए तोडफोड भी की है।
मध्य प्रदेश के मुंहबली मुख्यमंत्री थोडी भी मानवीय संवेदना होती या स्त्री की गरिमा के प्रति उनके मन में जरा भी सम्मान होता तो वे बलात्कार की पीडित महिला को पुरस्कृत करने की घोषणा करने वाले अपने असभ्य गृह मंत्री को तत्काल अपनी कैबिनेट से बाहर रास्ता दिखा देते लेकिन ऐसा न करके उन्होंने बता दिया कि अपने गृह मंत्री की घोषणा को उनकी भी सहमति हासिल है।
पुलिस ने जिनेंद्र सुराना पर जिन धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया है, उन धाराओं में कायदे से तो सबसे पहले मध्य प्रदेश के गृहमंत्री पर प्रकरण दर्ज होना चाहिए, जिन्होंने महिलाओं के प्रति निहायत अपमानजनक और संवेदनहीन घोषणा की। इसी के साथ जिन अखबारों ने उनकी घोषणा को जस का तस छापा उन अखबारों के मुद्रक, प्रकाशक और संपादक पर भी उन्हीं धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया जाना चाहिए।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ और न होगा, क्योंकि जंगल राज में ऐसा नहीं होता। ऐसा सिर्फ वहीं हो सकता है जहां कानून का शासन हो और सरकार के मुखिया का विवेक और संवेदना जैसे शब्दों से थोडा भी नाता हो। 'एमपी अजब है, सबसे गजब है’, यह दावा मध्य प्रदेश सरकार के विज्ञापनों में यूं ही थोड़े ही किया जाता है!
(वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अनिल जैन पिछले तीन दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। उन्होंने नई दुनिया, दैनिक भास्कर समेत कई अखबारों में वरिष्ठ पदों पर काम किया है।)