कोराना में सांसद-विधायक फंड की घोषणा कर रहे ऐसे, जैसे अपनी जमीन-जायदाद बेचकर दे रहे हों दान

Update: 2020-03-30 02:30 GMT

यह निधि होती ही इसलिए कि मौके पर लोगों की मदद की जाये। यह सांसदों का निजी पैसा नहीं होता। यह सही है कि इस फंड को वह खर्च अपनी मर्जी से सकते हैं। इसलिए कोरोना राहत कोष में चंदा देकर वह अहसान नहीं कर रहे हैं...

जनज्वार ब्यूरो। कुछ सांसदों ने कोरोना राहत कोष में सांसद निधि से फंड दिया है। इसे इस तरह से प्रचारित किया है कि जैसा कि उन्होंने बहुत बड़ा त्याग कर दिया हो। जबकि हकीकत यह है कि रकम उन्होंने अपने निजी खाते से नहीं दी है। जो फंड दिया वह था कि ऐसे कामों पर खर्च करने के लिए। एक सांसद को इस निधि में पांच करोड़ रुपये मिलते हैं। यह रकम उन्हें इसलिए दी जाती है, ताकि वह अपने क्षेत्र में विकास कार्य करा सके।

लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों को अपने पूरे कार्यकाल में खर्च करने के लिए 21,125 करोड़ रुपये बतौर सांसद-निधि आबंटित किये जाते हैं। आंकड़ों के मुताबिक इस बार आम लोगों के विकास पर खर्च होने वाली सांसदनिधि के तकरीबन बारह हजार करोड़ रुपये खर्च ही नहीं हुये थे।

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यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि यह सांसद निधि किसी सांसद की निजी संपत्ति नहीं होती। यह सरकारी खजाने से मिलने वाली वह रकम है जो खर्च की जानी है। इस अंतर इतना है कि राशि खर्च करने के लिए सांसद अपनी मंजूरी देता है। यदि किसी भी सांसद ने इस निधि से कोरोना कोष में फंड दिया है तो उन्होंने कोई अहसान नहीं किया। इसके लिए उन्हें त्याग की मूर्ति बनाने की जरूरत नहीं है।

Full View ढुल का कहना है कि क्योंकि मीडिया भी लोगों को सही जानकारी देने की बजाय नेताओं का महिमामंडन करता है। इसलिए भी जनता भ्रम में आ जाती है। इस तहर से लोगों को सच पता नहीं चल पाता। इसका लाभ उठा कर नेता खुद को बहुत बड़ा त्यागी प्रस्तुत कर देते हैं।

राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डाक्टर एसएस शर्मा ने बताया कि सांसद निधि योजना की शुरुआत 23 दिसंबर 1993 को पी. वी. नरसिंहा राव के प्रधानमंत्री काल में हुयी थी। तब इसकी राशि मात्र 5 लाख रुपये सांसद थी। वर्ष 1998-99 से इस राशि को बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये कर दिया। अब इस योजना के तहत हर साल प्रति सांसद 5 करोड़ रुपये दिये जाते हैं।

सांसद निधि योजना केंद्र सरकार द्वारा चलायी गयी योजना है जिसमें सांसदों (लोक सभा, राज्य सभा और मनोनीत) को अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्य कराने के लिए प्रतिवर्ष वितीय सहायता दी जाती है।

राशि को कौन खर्च करता है?

इस योजना की राशि सांसद के खाते में नहीं बल्कि सम्बंधित जिले के जिला कलेक्टर / जिला मजिस्ट्रेट / डिप्टी कमिश्नर या नोडल अधिकारी के खाते में 2.5 करोड़ रुपये की दो किस्तों (वित्त वर्ष के शुरू होने के पहले) में भेजी जाती है. सांसद, जिलाधिकारी को बताता है कि उसे जिले में कहाँ-कहाँ इस राशि का उपयोग करना है।

योजना के तहत मिली राशि को सांसद अपने संसदीय क्षेत्र में स्थानीय लोगों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सार्वजानिक हित के कार्यों जैसे शिक्षा, पेयजल, स्वास्थ्य, स्वच्छता, सड़क, लाइब्रेरी इत्यादि में खर्च करता है।

Full View अलावा स्थानीय आवश्यकताओं के हिसाब से भी कार्यों के निर्माण पर खर्च किया जाता है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, चक्रवात, सुनामी, भूकंप, हिमस्खलन, बादल विस्फोट, कीट हमले, भूस्खलन, बवंडर, सूखा, आग, रासायनिक, जैविक और रेडियोलॉजिकल खतरे को भी शामिल किया सकता है।

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2014 में 16 वीं लोकसभा के कार्यकाल में 545 में से केवल 35 लोकसभा क्षेत्रों में ही सांसद निधि का इस्तेमाल कर स्वीकृत परियोजनाएं पूरी की गई हैं। यानी करीब पांच वर्षों के दौरान 25 करोड़ रुपये खर्च करने वाले केवल 35 लोकसभा सांसद हैं। इनमें सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल के 10 सांसद हैं। उसके बाद उत्तर प्रदेश में छह, मध्य प्रदेश में चार, पंजाब में तीन, असम, गुजरात एवं हरियाणा में दो-दो, राजस्थान, अरुणाचल, मणिपुर, बिहार, नगालैंड और छत्तीसगढ़ में एक-एक सांसदों ने पूरी रकम खर्च की है।

कोरोना राहत कोष में खेलमंत्री किरेन रिजिजू ने देश को कोरोना वायरस प्रकोप के खिलाफ लड़ने के लिए एक करोड़ रुपये दिये हैं। केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर राज्यमंत्र रत्न लाल कटारिया समेत कई सांसदों ने सांसद निधि कोष से कोरोना कोष के लिए एक एक करोड़ रुपये देने की घोषणा की है।

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