उत्तर प्रदेश: कोरोना नहीं इस बीमारी की वजह से हुई थी संभल में बंदरों की मौत, पोस्टमार्टम से हुआ खुलासा

Update: 2020-04-10 06:12 GMT

संभल जिले में पवांसा क्षेत्र है। यहां पिछले एक हफ्ते से बंदरों के बीमार होने और मरने का सिलसिला जारी है। यहां मंदिर के आसपास काफी संख्या में बंदर रहते हैं।

जनज्वार: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संभल जिले में कई बंदरों की मौत निमोनिया के कारण हुई है। इसका खुलासा पोस्टमार्टम (post mortem) रिपोर्ट में हुआ है। संभल के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी(सीवीओ) डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि बरेली के भारतीय पशु चिकित्सा संस्थान (आईवीआरआई) में हुए पोस्टमार्टम के बाद पता चला कि बंदरों की मौत निमोनिया से हुई। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स में 19 बंदरों की मौत बताई जा रही है, लेकिन डॉ. विनोद ने सिर्फ सात बंदरों की मौत की बात कही है।

संभल जिले में पवांसा क्षेत्र है। यहां पिछले एक हफ्ते से बंदरों के बीमार होने और मरने का सिलसिला जारी है। यहां मंदिर के आसपास काफी संख्या में बंदर रहते हैं। बंदरों की मौत के बाद लोग शक जताने लगे कि कहीं मौत का कारण कोरोनावायरस न हो, क्योंकि कुछ दिनों पहले कोरोनावायरस (Coronavirus) से अमेरिका के ब्रूक्स चिड़ियाघर में एक बाघ की मौत हो गई थी।

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बंदरों के मरने का सिलसिला शुरू हुआ तो पशु चिकित्सा विभाग में हड़कंप मच गया। छह अप्रैल को बंदरों के शव को पोस्टमार्टम के लिए देश के सबसे बड़े संस्थान बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान(आईवीआरआई) के सेंटर फॉर एनिमल डिजीज रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक भेजा गया। पोस्टमार्टम के बाद आईवीआरआई ने संभल के पशु चिकित्सा विभाग को रिपोर्ट भेज दी। जिसके मुताबिक बंदरों की मौत निमोनिया के कारण हुई थी।

ईवीआरआई के एक प्रधान वैज्ञानिक ने कहा, "बंदरों के बाएं फेफड़े में निमोनिया के लक्षण मिले। सांस नली में रक्तरंजित स्राव मिला। किडनी और लीवर में समस्या दिखी। बैक्टीरियल इंफेक्शन की भी आशंका है।"

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संभल के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी (सीवीओ) डॉ. विनोद कुमार ने आईएएनएस से कहा, अब तक सात बंदरों की मौत हुई है। स्थानीय मीडिया गलत संख्या पेश कर रहा है। आईवीआरआई से आई रिपोर्ट के मुताबिक, बंदरों की मौत निमोनिया से हुई। अब हमारा फोकस दूसरे बंदरों को बचाने पर है।

डॉ. विनोद ने बताया कि बंदरों की मौत की घटना के बाद से पशु चिकित्सा विभाग की टीम सक्रिय हो गई है। वन विभाग भी इस काम में लगा है। दूसरे बंदरों को बचाने के लिए उनका इलाज किया जा रहा है। बंदरों को केले में टेबलेट दिया जा रहा है। हालांकि कुछ बंदर केले से टेबलेट निकालकर फेंक देते हैं। ऐसे में हम टेबलेट को पीसकर केले में मिला रहे हैं। ताकि अन्य बंदर निमोनिया के प्रभाव से बच सकें।

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