जब एक मामूली परिवार बलात्कारी आसाराम के खिलाफ अडिग खड़ा था तो मैं कैसे मानता हार : पी.सी. सोलंकी
नाबालिग के साथ बलात्कार मामले में स्वघोषित भगवान आसाराम को सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले वकील पी.सी. सोलंकी से जानिए किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा उन्हें इतने लंबे वक्त तक पीड़िता के पक्ष में, कैसे डटे रहे आसाराम के जुर्म साबित करने के लिए...
मनीषा पांडेय
आसाराम बलात्कार मामले में पीड़ित नाबालिग लड़की के वकील पी.सी. सोलंकी कहते हैं, जब एक बेहद साधारण सा परिवार इतने ताकतवर आदमी के खिलाफ इस तरह अटल खड़ा था तो मैं कैसे हार मान सकता था. 2014 में जिस दिन वकालतनामे पर साइन किया, उस दिन के बाद से यह मुकदमा ही मेरी जिंदगी हो गया।
25 अप्रैल, सुबह दस बजे के आसपास का समय था. जोधपुर सेंट्रल जेल मानो पुलिस की छावनी में तब्दील हो गया था. बाहर मीडिया वालों की भीड़ जमा थी, लेकिन भीतर जाने की इजाजत किसी को नहीं थी.
जेल के मुख्य द्वार से तकरीबन पचास मीटर की दूरी पर एक बड़ा सा हॉल है. इसी हॉल से सटे बैरक में पिछले साढ़े चार सालों से आसाराम कैद है. हॉल से कुछ दूरी पर कैदियों की बैरकें हैं. सेंट्रल जेल का यह हॉल आज न्यायालय में तब्दील हो गया था. जज मधुसूदन शर्मा, जज के स्टाफ के 3 लोग, दोनों पक्षों के 14 वकीलों और पुलिस के अलावा हॉल में किसी को आने की इजाजत नहीं थी.
जज मधुसूदन शर्मा ने फैसला सुनाने से पहले बाकायदा उन लोगों की लिस्ट बनाई थी, जिन्हें फैसले के वक्त मौजूद रहने की अनुमति दी गई थी. मैं सुबह सबसे पहले जोधपुर कोर्ट गया, जहां पिछले साढ़े चार सालों से तकरीबन रोज मेरा जाना हो रहा था. वहां से निकलकर ठीक दस बजे सब सेंट्रल जेल पहुंचे.
सुबह कोर्ट जाने से पहले मेरी पीड़िता के पिता से फोन पर बात हुई थी. मैंने उन्हें उम्मीद बंधायी। आप फिक्र न करें. फैसला जरूर हमारे पक्ष में होगा. फोन पर दूसरी ओर बिलकुल सन्नाटा था. कोई आवाज नहीं. अचानक वह फूट-फूटकर रो पड़े. आवाज रुंध गई. मेरी आवाज भी गले में अटक गई थी. मुझसे कुछ बोला न गया. मैंने इतना भर कह सका, 'फैसला आने के बाद फोन करूंगा. एक बार मुस्कुरा जरूर दीजिएगा.'
अपनी जीत का मुझे इतना भरोसा था. हम सेंट्रल जेल पहुंचे. घड़ी ने सवा दस बजाए. हॉल में इस कदर सन्नाटा था कि सूई गिरे तो उसकी भी आवाज सुनाई पड़ जाए. जज ने फैसला सुनाना शुरू किया
सबसे पहले उन्होंने कहा, आरोपी शिवा और प्रकाश को दोषमुक्त करार दिया जाता है. दिल को एक धक्का सा लगा. दोषमुक्त शब्द ही उस पल आत्मा पर किस कदर भारी था.
जज ने आगे बोलना शुरू किया.
- भारतीय दंड संहिता की धारा 342 के तहत अभियुक्त आसाराम को दोषी करार दिया जाता है.
- धारा 354 ए, (सेक्सुअल हैरेसमेंट) के तहत अभियुक्त आसाराम को दोषी करार दिया जाता है.
- धारा 370 ए, (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) के तहत अभियुक्त आसाराम को दोषी करार दिया जाता है.
- धारा 3762एफ, (रेप) के तहत अभियुक्त आसाराम को दोषी करार दिया जाता है.
- धारा 376 डी, (सामूहिक बलात्कार) के तहत अभियुक्त आसाराम को दोषी करार दिया जाता है.
इसके अलावा अभियुक्त को पॉक्सो के तहत भी दोषी करार दिया जाता है.
अभियुक्त आसाराम को प्राकृतिक जीवन की अंतिम सांस तक सश्रम कारावास की सजा सुनाई जाती है.
15 मिनट में जज ने अपना फैसला सुना दिया था. वो 15 मिनट मेरी जिंदगी के सबसे भारी 15 मिनट थे. एक-एक पल जैसे पहाड़ की तरह बीत रहा था. पूरे समय मेरी आंखों के सामने पीड़िता और उसके पिता का चेहरा घूमता रहा.
जज जब फैसला सुनाकर उठे तो लोग मुझे बधाइयां देने लगे. मेरा गला रुंध गया था. मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी. मैं वकील हूं, मुकदमे लड़ना, कोर्ट में पेश होना मेरा पेशा है. लेकिन जिंदगी में आखिर कितने ऐसे मौके आते हैं, जब आपको लगे कि आपके होने का कोई अर्थ है. उस क्षण मुझे लगा था कि मेरे होने का कुछ अर्थ है. मेरा जीवन सार्थक हो गया.
मेरा जन्म राजस्थान के एक साधारण परिवार में हुआ था. घर में तीन बहनें थीं और आर्थिक तंगी. पिता रेलवे में मैकेनिक थे. हम जाति से दर्जी हैं. मैंने भी बचपन से सिलाई का काम किया है. मां एक दिन में 30-40 शर्ट सिलती थीं. पिता बेहद साधारण थे और मां अनपढ़. लेकिन दोनों की एक ही जिद थी कि बच्चों को पढ़ाना है और सिर्फ लड़के को नहीं, लड़कियों को भी. मेरी तीनों बहनों ने आज से 30 साल पहले पोस्ट ग्रेजुएशन किया और नौकरी की. मेरी एक बहन नर्स और एक टीचर है.
जब मैंने इस पेशे में आने का फैसला किया तो मेरे गुरु ने कहा था कि वकालत बहुत जिम्मेदारी का काम है. इस पेशे की छवि समाज में बहुत अच्छी नहीं, लेकिन अपनी छवि हम खुद बनाते हैं और अपनी राह खुद चुनते हैं. हमेशा ऐसे काम करना कि सिर उठाकर चल सको और किसी से डरना न पड़े.
जब मैंने आसाराम के खिलाफ पीडि़ता की तरफ से यह मुकदमा लड़ने का फैसला किया तो बहुत धमकियां मिलीं. पैसों का लालच दिया गया. तमाम कोशिशें हुईं कि किसी भी तरह मैं ये मुकदमा छोड़ दूं. लेकिन हर बार मुझे वह दिन याद आता, जब पीड़िता के पिता पहली बार मुझसे मिलने कोर्ट आए थे. साथ में वो लड़की थी. बेहद शांत, सौम्य और बुद्धिमान. उसकी आंखें गंभीर थीं और चेहरे पर बहुत दर्द. पिता बेहद निरीह थे, लेकिन इस दृढ़ निश्चय से भरे हुए कि उन्हें यह लड़ाई लड़नी ही है.
मैं यह लड़ाई इसलिए लड़ पाया क्योंकि पीड़िता और उसका परिवार एक क्षण के लिए अपने फैसले से डिगा नहीं. लड़की ने बहुत बहादुरी से कोर्ट में खड़े होकर बयान दिया. 94 पन्नों में उसका बयान दर्ज है. तकलीफ बहुत थी, लेकिन वो गोवर्द्धन पर्वत की तरह अटल रही. लड़की की मां 19 दिनों तक कोर्ट में खड़ी रही और 80 पन्नों में उनका बयान दर्ज हुआ. पिता रोते रहे और बोलते रहे. 56 पन्नों में उनका बयान दर्ज हुआ.
जब एक बेहद साधारण सा परिवार इतने ताकतवर आदमी के खिलाफ इस तरह अटल खड़ा था तो मैं कैसे हार मान सकता था. 2014 में जिस दिन वकालतनामे पर साइन किया, उस दिन के बाद से यह मुकदमा ही मेरी जिंदगी हो गया. साढ़े चार साल ट्रायल चला. इन साढ़े चार सालों में मैं रोज कोर्ट गया. 8 बार सुप्रीम कोर्ट में पेशी हुई. 1000 बार से ज्यादा ट्रायल कोर्ट में पेश हुआ.
जितना मामूली पीड़िता का परिवार था, उतना ही मामूली वकील था मैं. इस तरफ मैं था और दूसरी तरफ थे देश की राजधानी में बैठे कद्दावर वकील. सबसे पहले आसाराम को जमानत दिलवाने के लिए आए राम जेठमलानी. जमानत याचिका रद्द हो गई. फिर आए केटीएस तुलसी, लेकिन आसाराम को कोई राहत नहीं मिली. फिर आए सुब्रमण्यम स्वामी. न्यायालय में 40 मिनट तक इंतजार किया, लेकिन फैसला हमारे पक्ष में आया. फिर आए राजू रामचंद्रन लेकिन जमानत याचिका फिर खारिज हो गई. सिद्धार्थ लूथरा ने अभियुक्त की तरफ से कोर्ट में पैरवी की. इस केस में आसाराम की तरफ से देश का तकरीबन हर बड़ा वकील पेश हुआ. पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने आसाराम की पैरवी की. सुप्रीम कोर्ट के जज यूयू ललित आए. सलमान खुर्शीद, सोली सोराबजी, विकास सिंह, एसके जैन, सबने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. तीन बार सुप्रीम कोर्ट से आसाराम की जमानत याचिका खारिज हुई. कुल छह बार अभियुक्त ने जमानत की कोशिश की और हर बार फैसला हमारे पक्ष में आया.
लोग कहते हैं, तुम्हें डर नहीं लगता. मैं कहता हूं, मेरी 80 साल की मां और 85 साल के पिता को भी डर नहीं लगता. जब आप सच के साथ होते हैं तो मन, शरीर सब एक रहस्यमय ऊर्जा से भर जाता है. सत्य में बड़ा बल है. आत्मा की शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं. उनके पास धन, वैभव, सियासत का बल था, मैं अपनी आत्मा के बल पर खड़ा रहा. मेरा परिवार मेरे साथ था. मेरी मां पढ़ी-लिखी नहीं हैं. वे बस इतना समझती हैं कि एक आदमी ने गलत किया. बच्ची को न्याय मिले. मुझे सच की लड़ाई लड़ता देख मेरे पिता की बूढ़ी आंखों में गर्व की चमक दिखाई देती है. वे मुझसे भी ज्यादा निडर हैं. 85 साल की उम्र में भी बिलकुल स्वस्थ. तीन मंजिला मकान की अकेले सफाई करते हैं. पत्नी खुश है कि मैं एक लड़की के हक के लिए लड़ा.
(मनीषा पांडेय की यह रिपोर्ट न्यूज़ 18 से साभार।)