सड़क निर्माण से निकलने वाले मलबे का उत्तराखंड सरकार के पास नहीं कोई इंतजाम, गहराता जा रहा पर्यावरणीय संकट
प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट आल वैदर रोड के निर्माण के दौरान निकले मलबे को निर्धारित डंपिंग यार्ड्स में फेंके जाने के बजाय, संबंधित ठेकेदार उसे सीधे फेंक रहे हैं जंगलों और नदियों में....
रोहित जोशी की रिपोर्ट
जनज्वार। उत्तराखंड में रोड से जुड़े प्रोजेक्ट्स में पर्यावरणीय नियमों की लगातार धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की सैकड़ों सड़कों के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट आल वैदर रोड के निर्माण के दौरान निकले मलबे को निर्धारित डंपिंग यार्ड्स में फेंके जाने के बजाय, संबंधित ठेकेदार उसे सीधे जंगलों और नदियों में फेंक रहे हैं।
इसके चलते पेड़ों के अलावा जंगलों की दूसरी वनस्पति और वन्यजीवों के साथ ही पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुक़सान हो रहा है, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है। पर्यावरणविद् और एक्टिविस्ट इसे 'बेहद चिंताजनक बताते हुए चेतावनी दी है कि अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो इसके बेहद ख़तरनाक़ परिणाम होंगे।'
पिथौरागढ़ के मुनस्यारी क़स्बे में रहने वाले पर्यावरणविद् एमैनुअल थियोपिलस बताते हैं, 'पहाड़ों में सड़कों के बनने के दो पहलू हैं। पहली बात यह है कि सड़कों के ज़रिए कनेक्टिविटी पहाड़ों के लोगों के लिए अहम है, लेकिन साथ ही पर्यावरणीय पहलुओं को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। अधिकतर परियोजनाओं का आलम यह है कि इनसे निकले मलबे को सीधे नदियों और जंगलों में फेंका जा रहा है क्योंकि यह ठेकेदारों के लिए आसान और सस्ता तरीक़ा है। लेकिन पर्यावरण को इसकी बहुत महंगी क़ीमत उठानी पड़ रही है।'
सिर्फ़ पर्यावरणविद् और एक्टिविस्ट ही नहीं बल्कि आम लोग भी ग़ैरज़िम्मेदारी से बनाई जा रही इन सड़क परियोजनाओं के ख़िलाफ़ आक्रोशित हैं। उन्हें भी यह अंदेशा है कि प्रकृति के साथ यह छेड़छाड़ उनके भविष्य के लिए नुक़सानदेह साबित होगी। अल्मोड़ा ज़िले के भैसियाछाना गांव के ग्रामप्रधान, जगत सिंह बानी भी इसे लेकर चिंतित हैं। वे कहते हैं, 'हम बिल्कुल चाहते हैं कि सड़कें गांवों तक पहुंचें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पूरे इलाक़े को दहशत में डाल दिया जाए। कोई भी निर्माणकार्य हो तो वह प्रकृति सम्मत हो, दूरदृष्टिपूर्ण हो और ज़िम्मेदारी के साथ हो। नदियों जंगलों को तबाह किए बग़ैर हो। हमारे पुरखों ने हमेशा ऐसा ही किया। उन्होंने जंगलों और नदियों का हमेशा ख़याल रखा।'
हाल ही में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की एक सड़क परियोजना के निर्माण के दौरान मलबे को निर्माणकर्मियों ने सीधे नीचे बह रही जैगन नदी में फेंक दिया, जिससे जगह जगह नदी का बहाव बाधित हो गया है। नदी में अस्थाई झीलें बन जाने के चलते, नदी के निचले इलाक़ो में बसे भैंसियाछाना और दूसरे गांवों पर ख़तरा मंडराने लगा है।
पर्यावरणविद् थियोफ़िलस कहते हैं, '2013 की उत्तराखंड आपदा के दौरान हमने देखा कि सड़क परियोजनाओं से उपजे जिस मलबे को सीधे नदियों में फेंक दिया गया था, उसने बाढ़ को और भीषण बना दिया था।'
वे आगे कहते हैं, 'इस तरह से ग़ैर ज़िम्मेदारी के साथ मलबे को निस्तारण करने का मतलब है कि आप आने वाली बाढ़ों के हमलों के लिए ख़ुद ही असलहा इकट्ठा कर दे रहे हैं ताकि जब बाढ़ आए तो वह आप पर और आक्रामक हमला करे।'
उत्तराखंड में सड़क निर्माण के लिए ग़ैर ज़िम्मेदारी से फेंके जा रहे मलबे की चपेट में महज जंगल और नदियां ही नहीं आ रही हैं, बल्कि इसने एतिहासिक धरोहरों को भी नहीं बख्शा है। नैनीताल के ख़ीनापानी में, जो कि कुमाऊं की लाइफ़लाइन माने जाने वाले अल्मोड़ा हल्द्वानी मुख्य मोटर मार्ग पर ही स्थित है, एक ऐतिहासिक सराय के लिए भी पीएमजीएसवाई के एक रोड प्रोजेक्ट ने ख़तरा पैदा कर दिया है।
इस सराय को ब्रिटिश दौर में उच्च हिमालयी क्षेत्रों के रंग समुदाय की जसुली शौक्यानी नाम की विधवा महिला ने बनवाया था। भारत-तिब्बत व्यापार के व्यापारियों, राहगीरों और तीर्थ यात्रियों की लंबी पैदल यात्राओं में विश्राम के लिए इस पूरे इलाक़े में 350 से अधिक सराएं बनाई गईं थी और इतिहासकार मानते हैं कि इनमें से 150 से अधिक सराएं जसुली शौक्यानी ने बनवाई थीं।
खीनापानी में ऐसी दो सराएं बनवाई गईं थीं जिनमें से एक मौजूदा राष्ट्रीय राजमार्ग से ऊपर और एक दूसरी सराय राजमार्ग के नीचे है। ये सरायें ठीक ऊपर से गुज़र रही निर्माणाधीन पीएमजीएसवाई की सड़क निर्माण के मलबे से ख़तरे में आ गई हैं। राजमार्ग से ऊपर की ओर बनाई गई सराय का रास्ता सीधे नीचे फेंके गए मलबे से दब गया है और वहाँ पहुँचना अब सम्भव नहीं रहा।
उत्तराखंड में सड़क निर्माण में इस तरह की आपराधिक लापरवाही पीएमजीएसवाई की छोटी परियोजनाओं में ही नहीं बरती जा रही है, जबकि ठीक इसी तरह पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट 'ऑल वैदर रोड्स' के तहत सड़कों के चौड़ीकरण की परियोजना में भी हो रहा है। यहां तक कि इस बात का संज्ञान लेते हुए ज़िला वन अधिकारी कार्यालय पिथौरागढ़ ने जनवरी 2018 में, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों पर वन्य संपदा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए 12 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
पीडब्लूडी के अधिकारी भी स्वीकार रहे हैं कि पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी से संबंधित बहुत सारी शिकायतें उन्हें मिल रहीं हैं। पीएमजीएसवाई के कुमाऊं क्षेत्र के मुख्य अभियंता गोकरण सिंह पांगती कहते हैं, 'जैसे ही हमें कोई सूचना मिलती है हम तुरंत कार्रवाई करते हैं और संबंधित अधिकारियों और कांट्रेक्टर्स को निर्देश देते हैं कि पर्यावरणीय नियमों की अवहेलना न की जाए।'
हालांकि पूरे प्रदेश में सड़क निर्माण के मलबे को जंगलों और नदियों में फेंकना बदस्तूर जारी है क्योंकि अधिकतर सड़कों के ठेके उन ठेकेदारों के पास हैं जो प्रभावशाली राजनीतिक पार्टियों से संबंध रखते हैं। ऐसे में उनके हितों के सामने पर्यावरण और स्थानीय समाज के हित गौण हैं।