आप पत्नी संग सैर पर पहुंचेंगे। यहां की महिलाओं को देख उनका दिमाग चक्कर खा बैठेगा। न लट सुलझी, न जुल्फ संवरी, होठों पर लाली भी नहीं, तेज कदम ऐसे कि कमर कभी बल न खाती। कपड़ों की उनको सुध नहीं, सिर पर भारी बोझ तले चेहरा देखना मुश्किल होगा। जंगल, रास्ते और जानवरों से सुख-दुख की आवाजें सुन शहरी महिला सिहर उठेगी...
चंद्रशेखर जोशी, वरिष्ठ पत्रकार
हिमालयी इलाकों में रहना है तो जीवट बनना जरूरी है। बचपन से अंतिम दिन तक यहां अथाह संघर्ष है।
...सैलानियो सुनो! सरकार जब विज्ञापनों का आमंत्रण भेजे तो आप बैरंग धिक्कार भेजो। रास्ता है पर्यटकों के कल्पनालोक का। यह सड़क पहुंचाएगी सुंदरढूंगा, कफनी बुग्याल और पिंडारी ग्लेशियर। बागेश्वर जिले के कपकोट से आगे मनोरम दृश्यों की राह यही है। जब आप परिवार के साथ इन इलाकों में आएंगे तो आपके बच्चे विचलित हो उठेंगे।
ऊंची पहाड़ी पर दौड़ती गाड़ी और एक तरफ गहरी खाई, सुरक्षा के लिए कोई दीवार तक नहीं। उल्टियां होंगी और कलेजा मुंह की ओर आएगा। खाई से आंख बचाएंगे तो नजर दूसरी तरफ चट्टान पर टिक जाएगी। लगेगा बड़ा सा पत्थर दुबक कर आपका इंतजार कर रहा है। कई टन मलबा हर पल सड़क की ओर दौड़ने को तैयार है। 40 डिग्री पर झुके वृक्ष का इरादा वाहन की छत पर बैठने का है। बच्चों को कई दिनों तक नीद न आएगी और डरावने सपने आएंगे।
...आप पत्नी संग सैर पर पहुंचेंगे। यहां की महिलाओं को देख उनका दिमाग चक्कर खा बैठेगा। न लट सुलझी, न जुल्फ संवरी, होठों पर लाली भी नहीं, तेज कदम ऐसे कि कमर कभी बल न खाती। कपड़ों की उनको सुध नहीं, सिर पर भारी बोझ तले चेहरा देखना मुश्किल होगा। जंगल, रास्ते और जानवरों से सुख-दुख की आवाजें सुन शहरी महिला सिहर उठेगी।
खेतों में महिला-पुरुषों के साथ काम करते झुंड नाजुक महिला के मन में अजीब खयाल पैदा करेंगे। सुबह से शाम तक का जीवन देखने का मौका मिला तो सैलानी महिला सुधबुध खो बैठेगी। यहां पौ फटते ही भोजन की तैयारी हो जाती है, इसके बाद पेट धोती के पल्लू से बांध दिया जाता है। सुबह से मीलों उतार-चढ़ाई पैदल पार करना, दिन ढले तो घर पर आना। इनका बेखौफ जीवन शहरी महिला के दिलो-दिमागे में खौफ भर देगा।
गोरा वर्ण देखने की चाह में पहुंचने वाला एक लफंगा युवा यहां के 10 युवक-युवतियों को बिगाड़ देगा। इनकी फर्जी चाल-ढाल देख यहां के रहवासियों को अपना जीवन पलभर के लिए तुच्छ नजर आएगा। अगर कोई इन पर आकर्षित हो गया तो अपनी जिंदगी बर्बाद कर बैठेगा, घर ही नहीं बड़ा इलाका कई सालों तक अशांत रहेगा। चोर-उचक्कों के लिए यहां खास गुंजाइश नहीं। बिना ताले के घरों से सामान उठाने की किसी की हिम्मत नहीं। यहां सरकार की सुरक्षा व्यवस्था नहीं है, तब भी गलत इरादों से कोई गांव में पहुंच गया तो उसका बिना पिटे वापस लौटना संभव न होगा।
सैलानियो फिर सुनो! इसे सिर्फ देवभूमि भी न कहो, पूरी दुनिया को समान समझो। प्रकृति ने धरती को जीवन लायक बनाया है, इसमें भेद करना ठीक नहीं। दुनिया में हर जगह देव और दानव तुल्य जीव हमेशा से रहते आए हैं। हिमालयी इलाकों में लोग सदियों से आते रहे हैं, पर वह पर्यटक नहीं थे। कुछ आस्था से आए तो कुछ जीवन को समझने के लिए। तब सबका जीवन लगभग समान था।
कोसों लंबी दूरी पैदल चल कर पहुंचने वालों को यहां कुछ भी अलग नहीं लगता। महीनों की यात्रा करने वाले यहां की बोली-भाषा, रस्मो-रिवाज अपना लेते थे। आबोहवा यहां की बढ़िया है तो हर व्यक्ति समाज में घुल—मिल जाता था। कालांतर में हिमालयी जीवन देखने की चाह रखने वाले बहुतेरे यहीं के होकर रह गए।
सरकार ने गांवों को अब निरीह बना दिया है। शहरों की संस्कृति गांवों को तुच्छ समझती है। यहां रोजगार के साधन नहीं, खेती करना संभव नहीं, स्कूल नहीं और अस्पताल नहीं। चलने को अच्छी सड़कें नहीं। जीवन हर पल खतरे में है। सैलानी इन व्यवस्थाओं को ठीक नहीं कर सकते। पर्यटकों को लूटने वाले व्यवसायी भी इसे सुधारना नहीं चाहते। पर्यटन की आमदनी मूल निवासियों के काम नहीं आती। यहां के बच्चे, युवा और बूढ़े अपनी मेहनत के दम पर जिंदा हैं। इनके जीवन में खलल डालना ठीक नहीं।
कह दो सरकार से- जब तक मूल निवासियों का जीवन न सुधार सको, उन्हें देखने मत बुलाओ...