राहुल सांकृत्यायन : 'दिमागी गुलामी' से लड़ने दुनिया की सैर पर निकला एक 'घुमक्कड़', जिसने रचा कालजयी साहित्य
हिंदी भाषा को समृद्ध बनाने में राहुल सांकृत्यायन का बड़ा योगदान रहा. उन्होंने उन विषयों पर कलम चलाई जिन पर उनके बाद भी बहुत कम लेखक लिखने की हिम्मत दिखा पाए...
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राहुल सांकृत्यायन का नाम जेहन में आते ही एक घुमक्कड़ की छवि आंखों में उतर आती है. लेकिन सिर्फ भ्रमण करना ही उनका लक्ष्य नहीं था और न अपने भ्रमण के कुछ ब्यौरे दर्ज कर लेना उनका जीवन का ध्येय था.
दुनिया के दार्शनिक जिन सवालों को खोजने के लिए पुस्कालयों का रुख करते हैं, उन्हीं सवालों का हल खोजने के लिए वह दुनिया की सैर पर निकल गए थे.
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उन्होंने अपनी यात्राओं के अनुभवों को घुमक्कड़ शास्त्र में दर्ज किया है जो उनकी घूमने की लत के पीछे की वजह पर कुछ रोशनी डालता है. वह लिखते हैं- 'घुमक्कड़ क्यों दुनिया की सर्वश्रेष्ठ विभूति है? इसलिए क्योंकि उसी ने आज की दुनिया को बनाया है. हां घुमक्कड़ के लिए जंजाल तोड़ कर बाहर आना पहली आवश्यकता है, कौन सा तरुण है जिसे आंख खुलने के समय दुनिया घूमने की इच्छा न हुई हो? मैं समझता हूं जिसकी नसों में गर्म खून है उनमें कम ही ऐसे होंगे जिन्होंने किसी समय घर की चारदीवारी तोड़ कर बाहर निकलने की इच्छा नहीं की हो. उनके रास्ते में बाधाएं जरूर हैं. बाहरी दुनिया से अधिक बाधाएं आदमी के दिल में होती है.'
वह उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के कनेला गांव में जन्मे थे. अपने जीवनकाल में उन्होंने श्रीलंका, तिब्बत, जापान, कोरिया, मंजूरिया, सोवियत संघ (रूस), ईरान और कई यूरोपीय देशों की यात्रा की.
अपनी घुमक्कड़ी प्रवृति के चलते उन्होंने किशोर अवस्था में ही घर बार त्याग दिया था और साधु का वेष धारण कर संन्यासी, वेदांती, आर्य समाजी, किसान नेता से लेकर बौध भिक्खु तक का एक लंबा सफर तय करते हुए उनके व्यक्तित्व ने ऐसा बहुआयामी रूप ले लिया जो युगों-युगों तक ज्ञान के खोज में निकले लोगों के लिए एक प्रकाश स्तंभ बना रहेगा.
अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने अनेक देशों की कला, संस्कृति, भाषा, साहित्य और समाज का गहन अध्ययन किया. उनका लिखा साहित्य किसी एक विधा तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने उपन्यास, कहानी, आत्मकथा, जीवनी, संस्मरण, राजनीति आदि कई विषयों पर लिखा. ज्ञान प्राप्त करते रहने की लालसा उनमें हमेशा बनी रही, यही कारण है कि उनके नाम 155 कृतियां दर्ज है.
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हिंदी भाषा को समृद्ध बनाने में उनका बड़ा योगदान रहा. उन्होंने बहुत पहले कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्टालिन की जीवनियां लिखी जिन पर हिंदी में उनके बाद बहुत ही कम लिखा गया.
इसी के साथ उन्होंने वोल्गा से गंगा जैसी किताब भी लिखी जो स्त्री वर्चस्व की बेजोड़ रचना है. यह किताब 20 कहानियों का संग्रह है. हर एक कहानी एक विशेष कालखंड को दर्शाती है.
बहुत से लोग उन्हें हिंदी यात्रा साहित्य के जनक के रूप में भी जानते हैं. उन्होंने स्त्रियों, दलितों, पीड़ितों के बारे में भी बहुत लिखा है. समाज को शिक्षित करना, क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए तैयार करना ही उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था.
अपनी पुस्तक 'दिमागी गुलाम' में राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं- 'जिस जाति की सभ्यता जितनी पुरानी होती है, उसकी मानसिक दासता के बंधन भी उतने ही अधिक होते हैं'