महिला सशक्तीकरण का दंभ भरते मोदीराज में भारत पिछड़े देशों की जमात में शामिल, दुनिया में हर दो मिनट में प्रसव के दौरान एक महिला की मौत !

1 अरब से अधिक प्रजनन आयु-वर्ग की महिलायें कुपोषण की त्रासदी झेल रही हैं, सवाल यह नहीं है कि चिकित्सा के क्षेत्र में महिलाओं के स्वास्थ्य से संबंधित तरक्की नहीं हुई है, बल्कि सवाल यह है कि केवल विकासशील देश की नहीं बल्कि लैंगिक समानता का पाठ पढ़ाने वाले औद्योगिक देश भी महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह क्यों हैं...

Update: 2024-10-17 10:50 GMT

Women Health News : महिलाओं में गर्भपात और मृत शिशु के जन्म के बाद बढ़ रहा है स्ट्रोक का खतरा, जानिए कारण और बचाव

महेंद्र पांडेय की टिप्पणी

मेलिंडा गेट्स ने हाल में ही कहा है कि दुनियाभर में महिलाओं के स्वास्थ्य की उपेक्षा की जा रही है। हरेक दिन औसतन 700 महिलाओं की मृत्यु प्रसव के दौरान हो जाती है, यानि हरेक दो मिनट से भी कम समय में एक महिला की मृत्यु दुनिया में कहीं न कहीं प्रसव के दौरान होती है। गर्भपात पर अमेरिका समेत अनेक देशों में प्रतिबंध लगाने के बाद अवैध गर्भपात के दौरान भी महिलाओं की मृत्यु का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।

दुनिया में 1 अरब से अधिक प्रजनन आयु-वर्ग की महिलायें कुपोषण की त्रासदी झेल रही हैं। अब सवाल यह नहीं है कि चिकित्सा के क्षेत्र में महिलाओं के स्वास्थ्य से संबंधित तरक्की नहीं हुई है, बल्कि सवाल यह है कि केवल विकासशील देश की नहीं बल्कि लैंगिक समानता का पाठ पढ़ाने वाले औद्योगिक देश भी महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह क्यों हैं?

हमारे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार महिलाओं के मामले में विकास पर अपनी पीठ थपथपाते हैं, पर हकीकत यह है कि महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में हमारा देश दुनिया के सबसे पिछड़े देशों की जमात में शामिल है। महिलाओं की स्थिति केवल झारखंड या दूसरे परंपरागत पिछड़े राज्यों में ही खराब नहीं है, बल्कि तथाकथित विकास का उदाहरण बने गुजरात में भी खराब है।

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वर्ष 2019 से 2021 के बीच किए गए पांचवें नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे के निष्कर्षों के अनुसार देश में 15 से 49 की आयुवर्ग की 18.7 प्रतिशत महिलाओं का वजन सामान्य से काम है, यानि इतनी प्रजनन आयु-वर्ग की महिलायें कुपोषित हैं। राष्ट्रीय औसत से भी अधिक कुपोषण वाले राज्यों में बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र का नाम शामिल है। इन सभी राज्यों में तथाकथित डबल इंजन की सरकारें हैं। इससे पहले के चौथे फॅमिली हेल्थ सर्वे (2015-2016) में 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में सामान्य से काम वजन वाली महिलाओं की संख्या 22.9 प्रतिशत थी।

दोनों फॅमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों से इतना तो स्पष्ट है कि वर्ष 2016 से 2021 के बीच के 5 वर्षों के दौरान तमाम सरकारी प्रचारों और तथाकथित योजनाओं के बाद भी महज 4.2 प्रतिशत महिलाओं का वजन सामान्य श्रेणी तक पहुंचा। यदि सरकारी योजनाएं इसी तरह चलती रही, तब भी सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही सभी महिलाओं को सामान्य वजन की श्रेणी में लाने में अगले 24 वर्ष और लगेंगे। हमारे देश में प्रसव के दौरान मरने वाले महिलाओं के संख्या वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक में एक है। लगभग 5 करोड़ महिलायें प्रजनन संबंधी समस्याओं की चपेट में हैं, और 15 से 49 वर्ष की आयु की सभी महिलाओं में से 50 प्रतिशत से अधिक खून की कमी से ग्रस्त हैं।

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लेंसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल में मार्च 2024 में प्रकाशित एक विस्तृत अध्ययन में बताया गया था कि वैश्विक स्तर पर महिलाओं की उम्र पुरुषों की तुलना में अधिक है, पर महिलायें अपने जीवन का अधिक समय बीमारी में व्यतीत करती हैं। असामयिक मृत्यु दर पुरुषों में अधिक है, पर सामान्य बीमारियों को महिलायें अधिक समय तक झेलती हैं।

पिछले 30 वर्षों के दौरान स्वास्थ्य विज्ञान ने सतही तौर पर बहुत प्रगति की है, पर महिलाओं के स्वास्थ्य में कोई बाद बदलाव नहीं आया है। महिलाओं के स्वास्थ्य की उपेक्षा का आलम यह है कि दुनिया के अधिकतर देश महिलाओं के स्वास्थ्य और उनकी बीमारियों के बारे में अलग से आँकड़े भी नहीं रखते हैं।

संदर्भ

1. https://www.theguardian.com/society/2024/oct/09/women-health-neglected-worldwide-melinda-french-gates

2. https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1781673

3. https://www.bmj.com/content/385/bmj.q999.full

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