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विमर्श

पाकिस्तानी मूल के इतिहासकार ने क्यों कहा, जो इतिहास को जानते हैं वे ही भविष्य तय करते हैं?

Nirmal kant
12 Feb 2020 7:13 AM GMT
पाकिस्तानी मूल के इतिहासकार ने क्यों कहा, जो इतिहास को जानते हैं वे ही भविष्य तय करते हैं?
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इतिहास का अध्ययन न केवल हमें बीते हुए कल का ज्ञान देता है बल्कि हमें यह समझने का मौका भी देता है कि खुद हमारा और दूसरे लोगों का समाज अस्तित्व में कैसे आया और उसका विकास कैसे हुआ। विगत की घटनाओं का वर्तमान पर प्रभाव पड़ता है और भविष्य भी प्रभावित होता है...

खिज़र हुमायूँ अंसारी

क इतिहासकार के रूप में ये बात मैं अच्छी तरह समझता हूं कि मनुष्यों की पिछली गतिविधियों का अगर ज्यादा नहीं तो एक बड़ा हिस्सा दर्ज किये बिना ही छूट जाता है और इतिहास का हिस्सा बन जाता है। ज्यादातर मानवीय रिश्तों और संवादों की रोजमर्रा प्रकृति, उनका साधारण चरित्र और उनमें निहित ओछेपन का मतलब है कि उन्हें दर्ज नहीं किया जा सकता और उन्हें दर्ज किया भी नहीं गया है। उन्हें संग्रहित करने की बात तो बहुत दूर है।

मैं ये भी अच्छी तरह समझता हूं। हममें से बहुत से लोग भी समझते हैं कि बीता हुआ समय जो दर्ज किया गया है वो पहले भी और अभी भी सोच-समझ कर चुनने, वर्गीकरण किये जाने, खांचों में ढाले जाने और प्राधिकरण किये जाने का शिकार रहा है और इसीलिये अपने-आप में इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है क्योंकि इस तरह से उपलब्ध कराये गए और सुरक्षित रखे गए दस्तावेज कभी भी स्वायत्त, खुद-ब-खुद पैदा हुए, सार्वभौम और पूरी तरह से व्याख्यायित नहीं होते हैं।

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कोई आश्चर्य नहीं कि ऐतिहासिक दस्तावेजों का निर्माण, उन्हें सही रूप में ढालना, उनका संग्रहण और उन्हें नष्ट करना कभी भी निष्पक्ष कार्रवाई नहीं हो सकती है। उल्टे इस तरह की कार्रवाइयां किसी भी समाज या समुदाय, यहाँ तक कि किसी व्यक्ति के सरोकारों और चिंताओं की ही अभिव्यक्ति होती है।

तरह राजनीतिक सत्ता में ये निहित है कि वो दस्तावजों और याददास्त पर भी नियंत्रण बनाये रखती है। यह बात मशहूर उपन्यासकार जॉर्ज ऑरवेल ने अपने भविष्यसूचक उपन्यास '1984' में कहा था- 'जिनका वर्तमान पर नियंत्रण होता है वो ही विगत को भी नियंत्रित करते हैं और जो विगत पर नियंत्रण रखते हैं वो ही भविष्य को अपनी मुट्ठी में बंद रखते हैं।'

जैसाकि फ्रांसिसी इतिहासकार और दार्शनिक फोकाल्ट ने कहा है कि ज्ञान और सत्ता के बीच द्वंदात्मक एवं सहजीवी रिश्ता होता है। दुनियाभर के देश और सरकारें इसे अच्छी तरह समझती हैं। विद्वान भी इसे समझते हैं। उदाहरण के तौर पर अभी पिछले दिनों ही कराची में मेरी मुलाकात कुछ विद्वानों से हुई। उन्होंने मुझसे कहा कि जब कभी भी वे प्रांतीय अथवा राष्ट्रीय अभिलेखागार जाते हैं तो उन्हें प्रासंगिक सामग्री तक पहुंचने में बहुत रोक-टोक का सामना करना पड़ता हैं। दस्तावेजों का अध्ययन करने के पीछे उनके मकसद को ले कर गहन पूछताछ होती है। निसंदेह उनके इरादे संदेह से घिरे होते हैं।

ब्रिटेन जैसे देशों में भी इसी तरह की कड़ी निगरानी नहीं होती है। हमें ये जानकारी रखनी पड़ती है कि अभिलेखागार बहुत सी ऐसी जानकरियों से वंचित कर देते हैं जो इनके संरक्षकों के सीधे मतलब की नहीं होती है। दूसरे शब्दों में अभिलेखागार याद करने के स्थल के साथ-साथ भूल जाने की परियोजना भी है।

सी के चलते मैं आपको सलाह दूंगा कि अभिलेखागारों में हम जो साक्ष्य पाते हैं वो केवल बीते समय का 'वर्णन'ही नहीं होता है बल्कि यह भी तय करता है कि लोग अपने वर्तमान को कैसे समझते हैं और बाद की पीढ़ियों द्वारा इसे कैसा समझते देखना चाहते हैं। अक्सर यह प्रतिबन्ध लगाने वाला भी हो सकता है खासकर उन पर जो इसका इस्तेमाल अपने इतिहास की जड़ें ढूंढने के प्रयास में करते हैं।

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स सन्दर्भ में मैं उस घटना का जिक्र करूंगा जब मैं ब्रिटेन में मुस्लिम जीवन के अवशेषों सम्बन्धी सामग्री को इकट्ठा कर रहा था। यही मेरी चालू रिसर्च का विषय है। सरकारी अभिलेखागार ब्रिटेन में मुस्लिम जीवन के अवशेषों पर ज्यादा रोशनी नहीं डालते। चूंकि ये सरकारी दस्तावेज थे। इसलिए मुझे महसूस हुआ कि बतौर एक गंभीर इतिहासकार अगर मुझे एक सार्थक ऐतिहासिक विमर्श तैयार करना है तो मुझे उनकी 'तटस्थता' और 'निष्पक्षता' को चुनौती देनी होगी।

मुझे ये भी महसूस हुआ कि आज के ब्रिटेन में ऐसे अभिलेखागार बहुत कम हैं जो ब्रिटेन में रह रहे मुसलमानों और उनके समुदायों के इतिहास का दस्तावेजीकरण करते हैं जबकि इन लोगों का इतिहास सदियों पुराना है। दुर्भाग्य से ब्रिटिश मुसलमानों की पीढ़ियों की आवाज बमुश्किल सुनी जाती है और उनकी कहानियां ज्यादातर अनकही रह जाती हैं।

निराशा तब होती है जब हम अक्सर उनके अनुभवों को पूरी तरह इसलिए नहीं सुन पाते क्योंकि जरूरी ठोस ऐतिहासिक साक्ष्य या तो मौजूद नहीं है या फिर पहुंच के बाहर है। इसलिए अक्सर मुझे इन समुदायों के ऐतिहासिक अनुभवों को उन स्त्रोतों पर विश्वास कर गढ़ना पड़ा जो अभिजात्यों या उनसे जुड़े लोगों द्वारा उपलब्ध कराये गए थे जिन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ते हुए विभिन्न रूपों में बिखरे अनुभवों को संजोना पड़ा।

हा जा सकता है कि हम सीमित उपलब्ध स्त्रोतों से आम आदमियों और हाशिये पर फेंक दिए गए समूहों की जिन्दगियों और अनुभवों के बारे में जान तो सकते हैं लेकिन साथ ही हमें ये भी स्वीकार करना होगा कि हम जो भी सीखते हैं वो ज्यादातर कल्पना, अटकलबाजी और व्याख्या का काम है और इसलिए निश्चय ही विवाद एवं असहमति को जन्म देता है जैसा कि अधिक या कम स्तर पर बेहतर स्त्रोतों पर आधारित ऐतिहासिक कार्य के साथ भी होता है। क्योंकि इतिहासकार एतिहासिक बिंदुओं को जोड़ने का काम करते हैं, ना कि एक अनवरत रेखा खींचने का। ये स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि जब मैं 'कल्पना' शब्द का इस्तेमाल करता हूँ तो मेरा मतलब इतिहास की आलोचना करने से नहीं है बल्कि मेरा मतलब है कि हमें उसी का इस्तेमाल करना है जिसे हम जानते हैं और हमें कम स्पष्टता से दिखाई देने वाले तथ्यों के बारे में शिक्षित परिणाम निकालने हैं।

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में ये भी समझना होगा कि एक विषय के रूप में इतिहास सदियों के दौरान बदला है। कुछ समय पहले तक इतिहासकार इतिहास को एक वैज्ञानिक विषय मानते थे। वे ये मानते थे कि उन्हें अनुभव के आधार पर यह दिखाना है कि विगत जीवन कैसा था। हालांकि यह नजरिया ये मानकर चलता था कि एक अन्य दुनिया का भी वजूद है जो इतिहासकारों की अपनी चेतना के इतर निष्पक्ष तथ्यों पर आधारित है। लेकिन आधुनिक इतिहासकार अब ये स्वीकार करते हैं कि 'तथ्य' खुद-ब-खुद सच्चाई बयां नहीं करते हैं। तथ्य तभी कुछ कहते हैं जब उनका इस्तेमाल इतिहासकार द्वारा होता है।

तिहासकार ही यह तय करते हैं कि किन तथ्यों का इस्तेमाल करना है और किस क्रम अथवा सन्दर्भ में। वे महसूस करते हैं कि विगत में अनेक घटनाएं घटित हुई हैं और कदम उठाये गए हैं जिनकी बहुत बड़ी संख्या से इतिहासकार अनभिज्ञ ही हैं और जिनमें से ज़्यादातर खो गयी हैं या भुला दी गयी हैं। उदहारण के तौर पर 1757 में बंगाल में लड़ा गया प्लासी का युद्ध है जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत हुई थी।

इतिहासकार ही थे जिन्होंने अपने तर्क के आधार पर ये तय कर लिया था कि ये युद्ध ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है और इसीलिए ये दर्ज करने लायक है। उसी समय पर घटित हुई दूसरी अनेक सामाजिक एवं राजनीतिक घटनाओं, तथ्यों और कार्रवाइयों को नजरअंदाज कर दिया गया और इसीलिये उनका दस्तावेजीकरण नहीं हो पाया। हालांकि वे भी उतने ही वास्तविक थे जितने इतिहासकारों को नजर आये दूसरे तथ्य लेकिन जिन्हें ऐतिहासिक सच में परिवर्तित नहीं किया गया।

विचारों से जो बात निकल कर आती है वो ये मुख्य अहसास है कि पिछला जो भी घटित हुआ है उसे सीधे-सीधे नहीं देखा जा सकता है। लिहाजा इतिहासकार ने विगत काल की किसी घटना,या प्रक्रिया का ठोस सबूत और लिखित स्त्रोतों की मदद से पुनर्निर्माण किया है। हम कह सकते हैं कि 'इतिहास' पिछली घटनाओं का ज्ञान है या ऐसा तौर-तरीक़ा है जिसके माध्यम से विगत काल का ज्ञान हासिल किया जा सकता है।

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हालांकि इतिहास के बारे में अनेक विचार और व्याख्याएं हैं। इस बात को लेकर अलग-अलग नज़रिये हैं कि इतिहास में कौन से कारक महत्वपूर्ण होते हैं। याद रखे जाने वाली मुख्य बात ये है कि हम बीते हुए काल के बारे में अलग-अलग इतिहासकारों की मध्यस्तता के माध्यम से ही जान पाते हैं और इसीलिये इतिहास तथाकथित 'वास्तविक' विगत काल से अलग होता है। यह वास्तविकता विगत काल की विभिन्न, यहां तक कि परस्पर प्रतियोगी व्याख्याओं का अध्ययन करने को और अधिक महत्वपूर्ण बना देती है। साथ ही ये विभिन्न व्याख्याएं जिन अलग-अलग तरह के साक्ष्य पर आधारित होती हैं उन पर विचार करने की ज़रुरत को भी अधिक महत्वपूर्ण बना देती है।

इतिहास क्यों पढ़ा जाये ?

लिए अब हम इन सवालों से रूबरू हों - इतिहास पढ़ने का मक़सद क्या होता है और इसका व्यावहारिक इस्तेमाल क्या है ? यह सवाल मुझसे भावी विद्यार्थियों और ग़ैर-शिक्षाविदों द्वारा कई बार पूछा गया है। पढ़े जाने वाले किसी भी विषय की तरह इतिहास पढ़ने का भी कोई न कोई औचित्य होना चाहिए। इसके पैरोकारों को बताना चाहिए कि इस पर ध्यान देना जरूरी क्यों है ?

लोग वर्तमान में जीते हैं। वे भविष्य को ले कर चिंतित रहते हैं और भावी योजनाएं बनाते हैं। हालांकि इतिहास तो बीत गए समय का अध्ययन है। कहा जाता है कि वर्तमान में जीते हुए और भविष्य का अनुमान लगाते रहते हुए क्या जरुरत है कि जो बीत गया उसके बारे में सोचा जाये ?

ये सही है कि इतिहासकार ह्रदय प्रत्यारोपण नहीं करते। राजमार्ग के डिजाइन को बेहतर नहीं बनाते और ना ही अपराधियों को पकड़ते है (हालांकि इतिहास में स्नातक ये सब काम कर सकते हैं) शिक्षा द्वारा उपयोगी उद्देश्यों की पूर्ति की अपेक्षा रखने वाले समाज में इतिहास के क्रिया-कलाप संभवतः इंजीनियरिंग या चिकित्सा से ज़्यादा कठिन होते हैं। मैं स्वीकार करता हूं कि कुछ दूसरे विषयों की तुलना में इतिहास के अध्ययन के परिणाम उतने ठोस और फौरी नहीं होते हैं। फिर भी सच्चाई यही है कि इतिहास बहुत उपयोगी होता है, सच कहें तो बहुत जरूरी होता है।

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वास्तव में बहुत से अच्छे कारण हैं जिनके चलते इतिहास पढ़ा जाना चाहिए। इतिहास का अध्ययन न केवल हमें बीते हुए कल का ज्ञान देता है बल्कि हमें यह समझने का मौका भी देता है कि खुद हमारा और दूसरे लोगों का समाज अस्तित्व में कैसे आया और उसका विकास कैसे हुआ। निसंदेह विगत की घटनाओं का वर्तमान पर प्रभाव पड़ता है और भविष्य भी प्रभावित होता है। इतिहास का अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे अलग-अलग काल में विभिन्न लोगों और विभिन्न समाजों ने तरह-तरह की समस्याओं और संघर्षों का निदान निकाला था। सत्ता संघर्षों में इस ज्ञान का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में किया जाता है। इतिहास का अध्ययन समसामयिक संघर्षों की गतिशीलता के विभिन्न पहलुओं को समझने में सहायता करता है।

इतिहास लोगों और समाजों की समझ बढ़ाता है

बसे पहले तो इतिहास लोगों और समाज के व्यवहार और क्रियाकलापों के बारे में ढेर सारी जानकारियां देता है। उदाहरण के तौर पर अगर राष्ट्र शांति के पथ पर अग्रसर है तो हम युद्ध का आंकलन कैसे कर सकते हैं ? ऐतिहासिक सामग्री का इस्तेमाल कर के ही ऐसा किया जा सकता है। अगर हम पहले के अनुभवों के बारे में जो कुछ जानते हैं उसका इस्तेमाल नहीं करते तो हम ये कैसे समझेंगे कि पारिवारिक जीवन को एक आकार देने में प्रतिभाशाली व्यक्ति, तकनीक की नई पद्धति के इस्तेमाल या आस्था एवं विश्वास की क्या भूमिका होती है?

इतिहास ही है जो इस बात पर विचार और विश्लेषण करने के व्यापक साक्ष्य उपलब्ध कराता है कि आखिर समाज चलता कैसे है ? और समाज के चलने की समझ होना लोगों के लिए इसलिए ज़रूरी है ताकि वे अपना जीवन चला सकें।

बदलाव और अपने समाज के अस्तित्व में आने को समझना

बीता कल वर्तमान को जन्म देता है और वर्तमान भविष्य को। जब कभी भी हम ये जानने की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्यों हुआ। जैसे अगर ताजा घटनाओं की बात करें तो भारत में कश्मीर के हालात, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आदेश पर ईरानी जनरल कासिम सुलैमानी की हत्या, ईरान द्वारा मुंहतोड़ जवाब देना और यूक्रेन के जहाज को मार गिरा देना, तो हमें ऐतिहासिक कारकों की शरण में ही जाना पड़ता है ताकि हम ये समझ सकें कि हुआ क्या, हो क्या रहा है और भविष्य में क्या होगा।

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भी-कभी हालिया ऐतिहासिक जानकारी ही काफी होती है किसी बड़ी घटना को समझने के लिए। लेकिन अक्सर बदलाव के कारणों की पहचान के लिए हमें अधिक पीछे तक जाना होता है। इतिहास पढ़ कर ही हम समझ सकते हैं कि बदलाव कैसे आता है। केवल इतिहास के माध्यम से ही हम उन कारकों को समझना शुरू कर सकते हैं जो बदलाव लाते हैं। हम ये केवल इतिहास के माध्यम से ही समझ सकते हैं कि किसी भी संस्था या समाज के वो कौन से तत्व होते हैं जो बदलाव के बावजूद बने रहते हैं।

नैतिक समझदारी

तिहास हमें सिखाता है उन लोगों की गाथाएं सुनाकर जिन्होंने वास्तविक ऐतिहासिक परिस्थितियों में संकटों पर जीत हासिल की है और इस तरह हमें प्रेरित करता है। इतिहास ना केवल ऐसी महिलाओं और पुरुषों के उदहारण पेश करता है जो नैतिक उपापोह की स्थिति से खुद को सफलतापूर्वक बाहर निकाल पाए हैं बल्कि ऐसे साधारण लोगों की भी बात करता है जो साहस, मेहनत और रचनात्मक विरोध का सबक सिखाते हैं।

अच्छी नागरिकता

तिहास हमें राष्ट्रीय संस्थाओं के उदय, उनकी समस्याओं और मूल्यों के बारे में आंकड़े उपलब्ध कराता है। इस तरह के आंकड़े उपलब्ध कराने का ये अकेला गोदाम है। यह इस बारे में भी साक्ष्य उपलब्ध कराता है कि देश दूसरे समाजों से किस तरह का संवाद करते हैं और इस तरह अंतर्राष्ट्रीय एवं तुलनात्मक नजरिया उपलब्ध कराता है जो ज़िम्मेदार नागरिकता के लिए जरूरी है। इसके अलावा इतिहास का अध्ययन हमें ये समझने में मदद करता है कि नागरिकों की जिंदगी को प्रभावित करने वाले हालिया, वर्तमान और भावी बदलाव कैसे पैदा हो रहे हैं या हो सकते हैं और इन्हें पैदा करने वाले कारण क्या हैं।

(लेखक पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिक हैं और लन्दन में प्रोफ्रेसर हैं। यह लेख पकिस्तान के अखबार 'डॉन' से साभार लिया गया है। लेख के अंतिम अंश शामिल नहीं किये गए हैं)

अनुवाद : पीयूष पंत

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