प्रधानमंत्री जी हत्यारे घूम रहे हैं!

Update: 2017-09-06 19:10 GMT

दार्जिलिंग में रहने वाले कवि रवि रोदन की कविता 'प्रधानमंत्री जी हत्यारे घूम रहे हैं!' गोर्खालैण्ड कि मांग में अब तक शहीद हुए आंदोलनकारियों को समर्पित है। उनकी यह कविता आंदोलनकारियों के बीच बहुत पसंद की जा रही है।

कुछ दिनों से एक बात
मन में खटक रही है
शहर की सबसे उँची और सफेद दीवारों पर
क्यों लाल रंग के धब्बे दिख रहे हैं पर...?
क्यों गोलियों की निशान दिख रहे हैं?

अभी कुछ दिनों पहले
एक जुलूस निकला था
वे सब एक ही आवाज में एक साथ कुछ मांग रहे थे
आजादी की बातें कर रहे थे
अहिंसा के पथ पर चल रहे थे
और तभी लाठीचार्ज और बंदूकों से गोलियाँ चलीं
देखते ही सड़कें लहूलुहान बन गई
सुना है उन लोगों को हिदायतें दी गई हैं
लोकतंत्र और अपनी स्वाभिमान की बातें यदि कोई भी करे तो उसे गोली मार दो।

हत्यारे अपने नाखून और लम्बी दाढ़ी बढ़ा कर
हमारे शहर में बेखौफ घूम रहे हैं
बेरहमी से मुक्ति की लकीरें खींचकर चलने वाले को
दोड़ा दौड़ा के मार रहे हैं।

अपने हिस्से का सपना
अपने हिस्से की रोटियां
अपनी अस्तित्व के लिए लड़ना
क्या बहुत बुरा है??

गोलियां दागने के बाद भी
बम गिराने के बाद भी
वे लोग तनिक भी सहमे नहीं हैं
डरना तो मानो वे लोग भूल चुके हैं
टीवी पर सब दिखाया जाता है
पर क्यों नहीं दिखाये जाते
हमारे मारे हुए निर्दोष लोगों के चेहरे?

प्रधानमंत्री जी,
अब तक आपके वायदे पर टिके हुए हैं
अच्छे दिन आयेंगे
इन शब्दों के जादू में हम सब टिके हुए हैं
शब्दों में ताकत है सच्चाई की तस्वीर बनाने की
कुछ करो बेबस और मासूमों को बचाओ
हत्यारे लाल आँखें और खून से सने हुए हाक लिए ताक रहे हैं
मुक्तिबोध विचारों की गठरियों पर फिर से गोली दागने को
मूर्ख हत्यारा साबुन से अपने हाथ तो धो लेगा
पर लहू जैसा सत्य विचारों को वह मौत नहीं दे पाएगा।

प्रधानमंत्री जी,
हत्यारे घूम रहे हैं।

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